शमशेर के ‘एक बिल्कुल पर्सनल एसे’ में मुक्तिबोध

गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ की जयंती पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, शमशेर बहादुर सिंह की किताब ‘कुछ और गद्य रचनाएँ’ में संकलित ‘एक बिल्कुल पर्सनल एसे’ का एक अंश, जिसमें उन्होंने समझाया है कि मुक्तिबोध उन्हें क्यों प्रिय हैं।

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मुक्तिबोध—गजानन माधव मुक्तिबोध वैज्ञानिक कथा-साहित्य बहुत पढ़ते हैं। निम्न मध्यवर्गीय कटु संघर्षों पर दीर्घकालीन चिंतन की ऊहापोह ने एक विचित्र भुतहे लोक से उनकी कल्पना को भर दिया है। ये कटु संघर्ष अपने ही जीवन और परिवार के रहे है। अत: कल्पना का यह भूतहा (fantastic) लोक अत्यधिक यथार्थ है, जैसा कि उनकी पंक्तियों के स्नायविक तनाव से स्पष्ट है।

यहाँ व्यंजनाएँ हैं गूढ़ सामाजिक विश्लेष्ण की। विश्लेषण है वर्ग-संघर्ष के उस अंश या रूप का, जहाँ निम्न मध्यवर्ग जूझता है। उसको पस्त करने वाली रुढ़ियों और शोषक शक्तियों को मुक्तिबोध प्रतीकों के रूप में खड़ा करते हैं।

ये प्रतीक प्राचीन गाथाओं के टुकड़े जान पड़ते हैं। मगर इन टुकड़ों में संदर्भ आधुनिक होता है। यह आधुनिक यथार्थ कथा का भयानकतम अंश होता है।

ये भयानक अंश निम्न वर्गों का सार्वभौम शोषण है। यह है ‘ब्रह्मराक्षस’। एक व्यापक विद्रूप जो व्यक्ति को आंतकित रखता है।

निम्नमध्यवर्ग का शिक्षित व्यक्ति अजब-सी सूली पर लटका रहता है और फिर भी जिंदा रहता है, नरक में जाने के लिए। और अपने परिवार के साथ नरक ही भोगता है।

इसी वर्ग का, हार न मानने वाला, ब्रह्मराक्षस और नरक को विद्रूप से ललकारने वाला कवि है, यह है महाराष्ट्र परिवार की तगड़ी हिन्दी प्रतिभा— मुक्तिबोध।

मुक्तिबोध की लंबी कविताओं का पैटर्न विस्तृत होता है। एक विशाल म्योरल पेंटिंग—आधुनिक प्रयोगवादी; अत्याधुनिक। जिसमें सब चीजें ठोस और स्थिर होती हैं; किसी बहुत ट्रेजिक संबंध के जाल में कसी हुई।

मुक्तिबोध के साथ मेरी समस्या होती है (अक्सर ही पाठकों की होती है; मैं भी एक साधारण ही पाठक हूँ) अव्वल तो पढ़ने की! (ईमानदारी की बात) रचना की दीर्घकाय विराटता हताश करती है। ए ग्रिम् रियलिटी; अंदर-बाहर सब ओर से। वस्तु और शिल्परूप और अंतरात्मा, रचना-प्रक्रिया और पाठक की प्राथमिक प्रतिक्रिया सबमें एक अजब ग्रिमनेस। मैं बचकर कहाँ जा सकता हूँ। घिर ही जाता हूँ, फँस ही जाता हूँ। कोलरिज के ‘एन्शेंट मैरिनर’ के ‘मेहमान’ की भाग्य-दशा तो याद होगी पाठकों को। निस्तार नहीं, तभी मुक्ति है—मुक्ति-बोध है।

दूसरी समस्या होती है समझने की। होती थी... कहना चाहिए। क्योंकि पढ़ लेने, और अर्थ और भाव-व्यंजनाएँ हृदयंगम कर लेने के बाद कविता हृदय पर, चेतना पर हावी हो जाती है। आप मुक्तिबोध के चित्रों के पैटर्न समझ लेने के बाद उन्हें उम्र भर नहीं भूल सकते।

अगर किसी ने स्वयं मुक्तिबोध की जबानी उनकी कोई रचना सुनी हो, तो सारी कठिनाइयाँ आरंभ से ही हवा हो जाती है, और कविता समाप्त होने पर ऐसा लगता है जैसे हम कोई आतंकित करने वाली फिल्म देखने के बाद एकाएक होश में आये हों।

मुक्तिबोध की कविता जो कथानक होती है, इसमें विद्रूप और क्रूर भाव रूपक को भरपूर नाटकीय बनाने के लिए आवश्यक होता है। चित्रों में जो खुरदरी स्पष्टता आँखों में चोट-सा करती है, वह पूरी कविता में, अपने विस्तार-क्रम के कारण, रूपक-भाव को कुछ बिखरा देती है। फिर भी कवि की बेपनाह नर्वस शक्ति का आभास पद-पद में मिलता है। 

एक चट्टानी कड़ापन, एक खुर्री नग्नता, हिंस्र चाँदनी, अपशकुनों से भरा मानव-लोक, रात का या दिन का, जिंदगी जो विद्रूप और कूर व्यंग्य है।

मुक्तिबोध का वास्तविक मूल्यांकन अगली, यानी अब आगे की पीढ़ी निश्चय ही करेगी; क्योंकि उसकी करुण अनुभूतियों को, उसकी व्यर्थता और खोखलेपन को पूरी शक्ति के साथ मुक्तिबोध ने ही व्यक्त किया है। इस पीढ़ी के लिए शायद यही अपना खास महान कवि हो।

मुझे मुक्तिबोध एक पेंटर की चेतना से अच्छा लगता है। उसकी कविताएँ स्थिर चित्रों का एक आतंकित करने वाला grim संग्रहालय होती है।

हर वस्तु में भार है। छाया और प्रकाश भी ठोस और भारी है। हर वस्तु grim है।

मुक्तिबोध एक अजब मार्क्सवादी व्यंग्यरूपकार कवि है। चूँकि वह पेंटर और मूर्तिकार है अपनी कविताओं में—और उसकी शैली बड़ी शक्तिशाली, कुछ यथार्थवादी मैक्सिकन भित्तचित्रों की-सी है, वह मुझे प्रिय है।

वह एक-एक चित्र को मेहनत से तैयार करता है, और फिर उसके अंबार लगाता चलता है। एक तार-तम्य। जैसे किसी ट्रैजिक नाट्य-मंच पर एक उभरती भीड़ का दृश्य—पूर्वनियोजित प्रभाव के साथ खड़ी।

मुक्तिबोध समाज के शोषक शत्रु को पेंट करते हैं। उसके अहं को, उसके बाह्य आतंक को—मगर जो खोखला है, और मात्र निर्जन का-सा आतंक है : मगर इसी आतंक से कवि का वर्ग-व्यक्ति पीड़ित, शामिल है। मुक्तिबोध उसी पीड़ा और शाप को व्यक्त करते हैं, खुली आँखों उसे देखते, और कूर निर्मम शब्दों में उसे रूपाकार देते हैं। उनके यहाँ हास्य भी, grim है, कठोर और भयावह।

 

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