Rajkamal Prakashan Group

हिन्दी के शीर्षस्थ प्रकाशन के रूप में समादृत राजकमल प्रकाशन की स्थापना 28 फरवरी 1947 को दिल्ली में हुई। राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड जो पहले ‘राजकमल पब्लिकेशंस लिमिटेड’ था, हिन्दी में एक उद्यम के बतौर स्थापित होनेवाला पहला संस्थान है, जिसने एक सर्वांगपूर्ण प्रकाशनगृह की कल्पना को मूर्त रूप दिया। इसकी प्रकाशन-प्रवृत्तियों, पुस्तकों के चयन और प्रकाशन की गुणवत्ता को देखते हुए शुरू से ही इसकी तुलना दुनिया के श्रेष्ठ प्रकाशनों से की जाती रही है। अब राजकमल प्रकाशन एक समूह के रूप में प्रकाशन उद्योग में मजबूती के साथ उपस्थित है जिसमें राधाकृष्ण प्रकाशन, लोकभारती प्रकाशन, बनयान ट्री और अनबाउंड स्क्रिप्ट सहित 12 प्रकाशन शामिल हैं।

राजकमल प्रकाशन समूह ने देश की आजादी से लेकर अब तक प्रत्येक समय-काल के श्रेष्ठ साहित्यकारों की अनेक उत्कृष्ट कृतियों का प्रकाशन किया है। इनमें 25 विधाओं और 45 से अधिक विषयों की 25000 हजार से अधिक पुस्तकें शामिल हैं। समूह ने 25 से अधिक भारतीय और भारतीयेतर भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया है।

राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित हिन्दी भाषा की 33 कृतियाँ और 10 अन्य भारतीय भाषाओं की 18 कृतियाँ ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ और 28 लेखकों की कृतियाँ ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित हो चुकी हैं। ‘अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार’ से सम्मानित दक्षिण एशियाई भाषाओं से एकमात्र पुस्तक ‘रेत समाधि’ और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित 11 लेखकों की कृतियाँ राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित है। उपलब्धियों की इस कड़ी में अब समूह के लेखक विनोद कुमार शुक्ल को अंतरराष्ट्रीय साहित्य में उपलब्धि के लिए पेन/नाबोकोव अवॉर्ड का मिलना भी जुड़ गया है।

राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित चित्रलेखा, राग दरबारी, महाभोज, सारा आकाश, साये में धूप, मैला आँचल, रश्मिरथी, आधे अधूरे, लहरों के राजहंस, दिव्या, उर्वशी, संस्कृति के चार अध्याय, बाणभट्ट की आत्मकथा, साकेत, भारत-भारती, तमस, यशोधरा आदि पुस्तकों में से प्रत्येक की छह लाख से अधिक प्रतियों की बिक्री हो चुकी है। बदलते समय के अनुसार राजकमल प्रकाशन समूह ई-बुक के रूप में किंडल पर 1500 सौ से अधिक पुस्तकों और ऑडियो बुक के रूप में 150 पुस्तकों के साथ डिजिटल दुनिया में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कर रहा है।.

Back to Top