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महात्मा गाँधी कहते हैं: “स्त्री को चाहिए कि वह स्वयं को पुरुष के भोग की वस्तु मानना बन्द कर दे। इसका इलाज पुरुष की अपेक्षा स्वयं स्त्री के हाथों में ज्यादा है। उसे पुरुष की ख़ातिर, जिसमें पति भी शामिल है, सजने से इनकार कर देना चाहिए। तभी वह पुरुष के साथ बराबर की साझीदार बन सकेगी।”
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‘‘इस छल और कपट के भार को लेकर तुम कैसे सो सकोगी ? जब तक तुम अपना अपराध स्वीकार न कर लोगी, तब तक तुम्हें शान्ति न मिलेगी। तुमने जो कुछ किया है, वह पाप है, एक जघन्य पाप ! उस पाप को तुम बिना प्रायश्चित किए न धो सकोगी। आज तुमने जो कुछ कर डाला है, उसे तुम्हें प्रोफेसर को बतलाना ही होगा।’’
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Posted: August 26, 2023
वैशाली की नगरवधू बनने को क्यों मजबूर हुई आम्रपाली?
"समय पाकर रूढ़ियाँ ही धर्म का रूप धारण कर लेती हैं और कापुरुष उन्हीं की लीक पीटते हैं। स्त्री अपना तन-मन प्रचलित रूढ़ि के आधार पर एक पुरुष को सौंपकर उसकी दासी बन जाती है और अपनी इच्छा, अपना जीवन उसी में लगा देती है। वह तो साधारण जीवन है। पर देवी अम्बपाली, तुम असाधारण स्त्री-रत्न हो, तुम्हारा जीवन भी असाधारण ही होना चाहिए।” -
...किसी समूची जनजाति या कबीले अथवा परिवार को अपराधी बताना दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारी जानकारी में दुनिया का ऐसा कोई भी देश नहीं है जहाँ की जनता अपना व्यवसाय समझ कर अपराध करती हो।
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राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, मेवात की भौगोलिक-सांस्कृतिक अस्मिता पर आधारित भगवानदास मोरवाल के उपन्यास 'ख़ानज़ादा' का एक अंश। इसमें बाबर के खिलाफ़ राणा सांगा और हसन ख़ाँ मेवाती की एकता का वर्णन है।