अरुंधति रॉय की किताबों की विषयवस्तु क्या है?

अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक अरुंधति रॉय को ‘निर्भीक और मुखर’ लेखन के लिए प्रतिष्ठित पेन पिंटर पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। यह पुरस्कार इंग्लैंड की पेन संस्था द्वारा नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नाटककार हेरोल्ड पिंटर की स्मृति में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए दिया जाता है। राजकमल ब्लॉग के इस विशेष अंक में जानें, अपने दमदार और बेजाेड़ लेखन से दुनियाभर में अपना लोहा मनवाने वाली लेखक अंरुधति रॉय की किताबों की विषयवस्तु क्या है? 

***

आज़ादी (Azadi)

आज़ादी—अरुंधति रॉय की नवीनतम कृति है। इसमें रॉय के नौ स्वतंत्र निबंध संकलित है जो 2018 की शुरुआत और 2020 की शुरुआत के बीच लिखे गए थे। इनके कुछ हिस्से मूल रूप से ब्रिटेन या अमेरिका में उनके द्वारा दिए गए व्याख्यान हैं। रोमांचित कर देनेवाले इन लेखों में वह एक चुनौती देती हैं कि हम दुनिया में बढ़ती जा रही तानाशाही के दौर में आज़ादी के मायनों पर ग़ौर करें। इन लेखों में, हमारे बेचैन कर देनेवाले इस वक़्त में निजी और सार्वजनिक ज़ुबानों पर बात की गई है। रॉय के मुताबिक़, महामारी (कोविड-19) एक नई दुनिया की दहलीज़ है। जहाँ आज यह महामारी बीमारियाँ और तबाही लेकर आई है, वहीं यह एक नई क़िस्म की इंसानियत के लिए दावत भी है। यह एक मौक़ा है कि हम एक नई दुनिया का सपना देख सकें। 

***

मामूली चीजों का देवता (The God of Small Things)

यह अरुंधति रॉय के पहले और बहुचर्चित उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ का अनुवाद है जिसके लिए उन्हें 1997 के अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस उपन्यास ने दुनियाभर में सुर्खियाँ बटोरी और अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। उपन्यास की कहानी केरल के एक शहर आयमेनम के धनी, सीरियाई ईसाई इपे परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी की ज़्यादातर घटनाएँ 1969 और 1993 के दृश्यों के बीच आगे-पीछे घटती हैं, और पूरी कहानी बिखरी हुई है। यह कहानी ऐसी कई अनकही चीजों को उजागर करती है जो कई बार बड़ी पारिवारिक त्रासदियाँ लेकर आती है। रॉय के लिए यह उपन्यास एक मील का पत्थर साबित हुआ और इसने उन्हें एक प्रतिष्ठित कैरियर और दुनियाभर में सम्मान दिलाया। 

***

एक था डॉक्टर एक था संत (The Doctor and The Saint)

वर्तमान भारत में असमानता को समझने और उससे निपटने के लिए, इस किताब के माध्यम से अरुंधति रॉय ज़ोर देकर कहती हैं कि हमें राजनीतिक विकास और मोहनदास करमचन्द गांधी का प्रभाव, दोनों का ही परीक्षण करना होगा। सोचना होगा कि क्यों बी. आर. आंबेडकर द्वारा गांधी की लगभग दैवीय छवि को दी गई प्रबुद्ध चुनौती को भारत के कुलीन वर्ग द्वारा दबा दिया गया। रॉय के विश्लेषण में, हम देखते हैं कि न्याय के लिए आंबेडकर की लड़ाई, जाति को सुदृढ़ करनेवाली नीतियों के पक्ष में, व्यवस्थित रूप से दरकिनार कर दी गई, जिसका परिणाम है वर्तमान भारतीय राष्ट्र जो आज ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र है, विश्वस्तर पर शक्तिशाली है, लेकिन आज भी जो जाति व्यवस्था में आकंठ डूबा है। 

***

अपार खुशी का घराना (The Ministry of Utmost Happiness)

यह उपन्यास हमें कई वर्षों की यात्रा पर ले जाता है। यह एक कहानी है जो पुरानी दिल्ली की तंग बस्तियों से खुलती हुई फलते-फूलते नए महानगर और उससे दूर कश्मीर की वादियों और मध्य भारत के जंगलों तक जा पहुँचती है, जहाँ युद्ध ही शान्ति है और शान्ति ही युद्ध है और जहाँ बीच-बीच में हालात सामान्य होने का एलान होता रहता है।

अंजुम, जो पहले आफ़ताब थी, शहर के एक क़ब्रिस्तान में अपना तार-तार कालीन बिछाती है और उसे अपना घर कहती है। एक आधी रात को फुटपाथ पर कूड़े के हिंडोले में अचानक एक बच्ची प्रकट होती है। रहस्यमय एस. तिलोत्तमा उससे प्रेम करनेवाले तीन पुरुषों के जीवन में जितनी उपस्थित है उतनी ही अनुपस्थित रहती है। 

‘अपार ख़ुशी का घराना’ एक साथ दुखती हुई प्रेम-कथा और असंदिग्ध प्रतिरोध की अभिव्यक्ति है। उसे फुसफुसाहटों में, चीख़ों में, आँसुओं के ज़रिये और कभी-कभी हँसी-मज़ाक़ के साथ कहा गया है। उसके नायक वे लोग हैं जिन्हें उस दुनिया ने तोड़ डाला है जिसमें वे रहते हैं और फिर प्रेम और उम्मीद के बल पर बचे हुए रहते हैं। इसी वजह से वे जितने इस्पाती हैं उतने ही भंगुर भी, और वे कभी आत्म-समर्पण नहीं करते। यह सम्मोहक, शानदार किताब एक नए अन्दाज़ में फिर से बताती है कि एक उपन्यास क्या कर सकता है और क्या हो सकता है। अरुंधति रॉय की कहानी-कला का करिश्मा इसके हर पन्ने पर दर्ज है।

***

आहत देश (Broken Republic : Three Essays)

वह जंगल जो दण्डकारण्य के नाम से जाना जाता था और जो पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ से लेकर आन्ध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को समेटता हुआ महाराष्ट्र तक फैला है, लाखों आदिवासियों का घर है। मीडिया ने इसे ‘लाल गलियारा’ या ‘माओवादी गलियारा’ कहना शुरू कर दिया है। लेकिन इसे उतने ही सटीक ढंग से ‘अनुबन्ध गलियारा’ कहा जा सकता है। हर पहाड़ी, हर नदी और हर जंगल के लिए समझौता हो गया है। युद्ध, भारत की सीमाओं से चलकर देश के हृदय-स्थल में मौजूद जंगलों तक फैल चुका है। अरुंधति रॉय की यह किताब ‘आहत देश’ कुशाग्र विश्लेषण और रिपोर्टों के संयोजन द्वारा उभरती हुई वैश्विक महाशक्तियों के समय में प्रगति और विकास का परीक्षण करती है और आधुनिक सभ्यता को लेकर कुछ मूलभूत सवाल उठाती है।

***

न्याय का गणित 

किसी लेखक की दुनिया कितनी विशाल हो सकती है, इस संग्रह के लेखों से उसे समझा जा सकता है। ये लेख विशेषकर तीसरी दुनिया के समाज में एक लेखक की भूमिका का भी मानदंड कहे जा सकते हैं। इन लेखों को पढ़ते हुए जो बात उभरकर आती है, वह यह कि वही लेखक वैश्विक दृष्टिवाला हो सकता है जिसकी जड़ें अपने समाज में हों। क्या यह अकारण है कि जिस दृढ़ता से मध्य प्रदेश के आदिवासियों के हक में हम अरुंधति की आवाज सुन सकते हैं, उसी बुलन्दी से वह रेड इंडियनों या आस्ट्रेलिया के आदिवासियों के पक्ष में भी सुनी जा सकती है। ये लेख ये सत्ताओं के दमन और शोषण की विश्वव्यापी प्रवृत्तियों, ताकतवर की मनमानी व हिंसा तथा नव-साम्राज्यवादी मंशाओं के उस बोझ की ओर पूरी तीव्रता से हमारा ध्यान खींचते हैं जो नई सदी के कन्धों पर जाते हुए और भारी होता नजर आ रहा है। अरुंधति रॉय इस अमानुषिक और बर्बर होते खतरनाक समय को मात्र चित्रित नहीं करती हैं, उसके प्रति हमें आगाह भी करती हैं : यह समय मूक दर्शक बने रहने का नहीं है।

***

कठघरे में लोकतंत्र (Listening to Grasshoppers)

यह किताब अरुंधति रॉय के विचारोत्तेजक वैचारिक गद्य लेखों के सिलसिले की अगली कड़ी है। इसमें संकलित लेखों में रॉय ने आम जनता पर राज्य-तंत्र के दमन और उत्पीड़न का जायज़ा लिया है, चाहे वह हिन्दुस्तान में हो या तुर्की में या फिर अमरीका में। जैसा कि इस किताब के शीर्षक से साफ़ है, ये सारे लेख ऐसी तमाम कार्रवाइयों पर सवाल उठाते हैं जिनके चलते लोकतंत्र—यानी जनता द्वारा जनता के लिए जनता का शासन—मुट्ठी-भर सत्ताधारियों का बँधुआ बन जाता है।

अपनी बेबाक मगर तार्किक शैली में अरुन्धति रॉय ने तीखे और ज़रूरी सवाल उठाए हैं, जो नए विचारों ही को नहीं, नई सक्रियता को भी प्रेरित करेंगे। 

***

भूमकाल : कॉमरेडों के साथ (Walking with the Comrades)

यह एक रिपोर्ताज है जिसमें अरुंधति रॉय ने माओवादियों के क्षेत्र में विचरण कर आँखों देखा ब्योरा प्रस्तुत किया है और दन्तेवाड़ा में आदिवासियों के जीवन तथा माओवादियों से की गई मुलाक़ातों और उनकी सोच तथा जीवन स्थितियों को संवेदनशील ढंग से अभिव्यक्त किया है। कॉमरेड कमला, कॉमरेड वेणु सहित अन्य कॉमरेडों के साथ किया यह सफ़र उन स्थितियों और परिस्थितियों से भी अवगत कराता है जो उन्हें माओवादी बनाती हैं। 

 

[अरुंधति रॉय की किताबें यहाँ से प्राप्त करें।]