उषा उथुप ने कैसे की थी पॉप गायन की शुरुआत?

1968 में दुनिया की सबसे मशहूर अमेरिकी गॉस्पेल सिंगर महालिया जैक्सन एक समारोह में बम्बई आई हुई थीं। वे ‘क्वीन ऑव गॉस्पेल’ के नाम से मशहूर थीं। उषा को उनके गॉस्पेल सॉन्ग बहुत अच्छे लगते थे। उषा उस दिन कार्यक्रम शुरू होने से पहले बैक स्टेज गईं और महालिया जैक्सन को उनके मशहूर गाने ‘इट डॉट कॉस्ट वेरी मच’ की कुछ पंक्तियाँ गाकर सुनाईं। सुनकर महालिया जैक्सन इतनी ख़ुश हुईं कि उन्होंने उषा से कहा, “तुम यही सॉन्ग मेरे साथ स्टेज पर अभी गाओगी।” हालाँकि, संकोच से दोहरी होती हुई उषा ने उनसे कहा, “मैं आपके स्केल में शायद ही गा पाऊँगी।” पर महालिया जैक्सन को भी जाने क्या धुन चढ़ गई थी, वे अड़ी रहीं, “मुझे यक़ीन है, तुम गा लोगी। कम विद मी ऐंड सिंग।” 

भारतीय पॉप संगीत की महारानी उषा उथुप को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, विकास कुमार झा द्वारा लिखित उषा उथुप की जीवनी ‘उल्लास की नाव’ का एक अंश जिसमें उनके पॉप गायन की शुरुआत की घटनाओं का वर्णन है। 

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वर्ष 1967 के जून मध्य की वह बारिश भरी एक शाम थी, जब उस समय के मद्रास के माउंट रोड स्थित तीन सिनेमा थियेटरों— एमरल्ड, ब्लू डायमंड और सफ़ायर के बहुत बड़े-से परिसर के तलघर में चलनेवाले एक नाइट क्लब ‘नाइन जेम्स’ में जैज स्टैंडर्ड बैंड के संग नितम्ब स्पर्शी सघन बालों, गहरी भावप्रवण आँखों और दीप्त गेहुएँ रंग की सुहागमग्न 21-22 साल की लम्बी-छरहरी उषा अपने सम्पूर्ण स्त्रियोचित भारतीय परिधान यानी केले के दलों से परिपूर्ण हरित रंगवाली साड़ी-ब्लाउज, माँग में माणिक सरीखे सिन्दूर और नव पल्लवों जैसी चूड़ियों में आदिम तलस्पर्शी झूम के संग सामान्य से अलग विस्मयपूर्ण भारी आवाज में एक अंग्रेज़ी गाना गा रही थीं—

नेवर नो हाउ मच आइ लव यू 

नेवर नो...हाउ मच आइ केयर, 

वेन यू टच...यू गिव मी फ़ीवर... 

दैट् सो हार्ड टू बेअर…

कभी नहीं जाना कि मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ। कभी नहीं जाना कि मैं तुम्हारी कितनी परवाह करती हूँ। तुम जब मुझे छूते हो, मुझे ज्वर देते हो। यह झेलना मेरे लिए बहुत कठिन है। बेहद मुश्किल।

शाम रात में दाखिल हो रही थी। नाइट क्लब में जैज स्टैंडर्ड के तेज़ मदिर लय पर तन्मय डूबकर असम्भव प्रभुत्व स्वर में उषा गा रही थीं। जीवन के लिए, वसन्त के लिए, अपनी आतप्त आवाज में मन का सारा उद्वेलन भरकर समुद्र से संवाद करते हुए आशा के तट पर आत्मा का पराग बिखेर रही थीं। कुछ इस तरह जैसे पूछ रही हों— ‘क्या सपने सच होते हैं? क्या दुख का भी सुगन्ध होता है?’ सुर में गुम हो चुकी उषा की लम्बी वेणी में मदुरई मल्ली के नन्हे-नन्हे सफ़ेद फूलों की माला नाइट क्लब की मद्धिम नशीली नीली रोशनी में तारों की तरह कौंध रही थी। सुर की ऐसी ग़ज़ब गमक, जैसे सांद्र कज्जल गीली क्यारी में रजनीगन्धा खिल रही हो। भीतर से उन्मुक्त होती फूटकर खिल रही उषा के आलिंगन में बरबस पूरा समग्र था।

सुर के रंग और आवेगप्रवण भावों की बारीकियों के पंख लहराती जब वह अपने गाने के चरम पर थीं, तो नाइट क्लब के एक पुराने बुजुर्ग श्रोता से रहा नहीं गया। भावातिरेक में उन्होंने उठकर कहा, “फ़ॉलकन्...! सो डॉमिनेटिंग ऐंड असर्टिव वॉइस! वज्र के शब्दों का नाश करती हुई अद्भुत आग्रही आत्मविश्वासी आवाज! माइ गॉड! यह लड़की अपने सुर में बाज की तरह उड़ती है। बाज के ताक़तवर-तेज़ पंख इसकी आवाज़ में लहराते हैं।” लोकप्रिय पश्चिमी जैज़ संगीत के एक दूसरे दीवाने ने लगे हाथ कहा, “अभी जो ‘फ़ीवर’ सॉन्ग यह गा रही है, वह वर्षों पहले मैंने मशहूर अमेरिकन जैज़ पॉप सिंगर पेग ली का भी सुना है। यह लड़की आज इस गाने में पेग ली को मात दे गई है।”

बाहर बारिश थम गई थी। पर नाइट क्लब ‘नाइन जेम्स’ के भीतर का कलरव-कोलाहल थमने का नाम नहीं ले रहा था। एक लड़की का ऐसा विस्मयकारी प्रभुत्व स्वर भी हो सकता है क्या! सुर के धागों को लय में बुनते हुए यह किस तीव्रता से हृदय की घाटियों में उल्लास उड़ाती है कि जंगली हवाएँ वन फूल की पंखुड़ियों की तरह उन्हें समेट दसों दिशाओं में पागलों की तरह बिखेरती-सी लगती हैं। गुलाब के फूलों से चारों तरफ़ मीठी महक-सी उड़ती हुई लगती है। जैज स्टैंडर्ड बैंड का बजना थमा। उषा अपने परिजनों के पास आकर बैठ गईं। ‘नाइन जेम्स’ के मालिक यशवन्त विकमसी खुशी से हैरान थे। कई होटलों व रिजॉर्ट्स के मालिक विकमसी का महाबलीपुरम में भी एक शानदार रिजॉर्ट था। पर ज्यादातर वे ‘नाइन जेम्स’ में बैठते थे। उत्साह से छलकते यशवन्त विकमसी ने उषा से अनुरोध किया कि क्या कम से कम एक हफ़्ते भी सही, वह उनके नाइट क्लब के वास्ते गा सकती हैं। जवाब में उषा ने वहाँ गुपचुप मुसक रहीं अपनी मामी लीला नादन की तरफ़ चपल नेत्रों से देखा, जिन्हें वह दुलार में ‘जिप्पी माँ’ कहती थीं। दरअसल, मामा-मामी के साथ ही उस शाम वह ‘नाइन जेम्स’ गई थीं। ‘नाइन जेम्स’ में जब वे सब दाखिल हुए थे, उस समय चार लोग एक बैंड पर धुन बिखेर रहे थे। अचानक थोड़ी देर बाद श्रीमती लीला नादन यानी जिप्पी माँ ने लाड़ भरे स्वर में कहा, “उषा! यू गो ऐंड सिंग! जाओ, गाओ।”

सब कुछ एक झटके में हुआ। मेघों के गाढ़े अन्धकार में बिजली की दमक की तरह जैज स्टैंडर्ड की धुन एक पल के लिए सहसा थम गई और फिर तेज हो गई। उषा गा रही थीं। यह एक अद्भुत गहन सांद्र स्वर था, जिसमें मृदुल तीव्रता थी। बारिश की उस शाम ‘नाइन जेम्स’ की मद्धिम रूमानी रोशनी में भारत की पहली महिला पॉप सिंगर उषा उथुप जन्म ले रही थीं।

आज पाँच दशकों बाद भी मनोरम मेघों के प्यार से भीगती वह शाम, ‘नाइन जेम्स’, गर्व और उल्लास के कोमल अंकुरों के संग वहाँ गुपचुप मुसकती जिप्पी माँ, एक सप्ताह के लिए गाने का मुदित अनुरोध करते ‘नाइन जेम्स’ के मालिक यशवन्त विकमसी, एक हफ्ते तक गाने के बाद बतौर प्रथम पारिश्रमिक मिली वह एक प्यारी-सी कांजीवरम साड़ी उषा उथुप भूल नहीं पाई हैं। जीवन की स्वाधीनता का, जीवनोल्लास का संगीत गाते हुए सचमुच कितने वर्ष बीत गए। अविश्वसनीय-सा यह सफ़र कितना उत्तप्त और मधुर! श्रोताओं के विशाल समूह को अभी भी गाने के पहले वे गर्व से कहती हैं, “मैं नाइट क्लब सिंगर रही हूँ। वहीं से मेरी शुरुआत हुई। चलिये... रेडी टू रॉक...?” गहराती शामों में उनको सुनने के उतावलेपन से रोशन दर्शकों को लगता है कि जैसे वह बता रही हैं कि “हाँ, सपने सच हो सकते हैं। कि समुद्र के बवंडरों और थपेड़ों से मछलियाँ कभी नहीं थकतीं।”

“क्या कहा? मेरी साड़ी अच्छी लगी आपको? मेरी बिन्दी और मेरी चूड़ियाँ भी?” माइक को अपने आँचल की कोर से लपेट वे शुरू हो जाती हैं और लोगों की पलकें नहीं झपकतीं। पोर-पोर में अपने देश की सम्पूर्ण पारम्परिकता से छलकती एक भारतीय स्त्री अफ्रीकी-अमेरिकी उद्भव के पश्चिमी जैज संगीत को जिस लाड़-झोंक से झूमते हिंडोले पर पींगे दिलाती है कि पूरे माहौल में आतिशबाजी की रौनक-सी आ जाती है। सुननेवालों की रगों में बरबस जलती हुई मदिरा दौड़ने लगती है। उषा उथुप का पूरा शिल्प आतिशबाजी के धूम भरे शिल्प से जगमग है। एक अनूप मौलिक मुखरित शैली। यह अपलक उल्लास और आत्मा की अहर्निश झूम लोगों को चकित-मोहित करती है। श्रोताओं की ओर से तालियों के असंख्य शंख गूँजते हैं। धरती से आकाश तक मानो आह्लाद का विशाल गुलाबी घेरा चक्कर काटता है। जीवन की असह्य तप्त व्यथा के बीच जैसे अनायास आकाश का बादलों से घिरना। फिर सुखदाई वर्षा के स्पर्श का विचित्र आवेश! सिंहल सिंधु से मलय सागर तक बिखरे-छितराये क्लान्त प्राण! आतप की मर्मांतक गन्ध! और ऐसे में उषा के आदि-आनन्द गीतों की बौछार। “क्या कहा? उल्लास नहीं है? स्वप्न मूर्छित हैं? पानी राख हो रहा है? पिऐनो का स्वर काँप रहा है? अरे नहीं, जरा देखिए, मन के आकाश में दूब की तरह उल्लास के बादल घने हो रहे हैं। धरती पर कदम्ब वृक्ष विलास में झूम रहे हैं। केतकी वनों में अनुराग सिहर रहा है। अर्जुन की मंजरियाँ मुसक रही हैं। पृथ्वी की इस आनन्द-गली से गुजरिये! यहाँ है उत्सव का आह्वान।

कॉल ऑव हैप्पीनेस! उल्लास की नाव! उषा उल्लास उधुप! मिथक, यथार्थ और आनन्द का मधुरित आवेगपूर्ण तरंगित मिश्रण। ‘गाने से भी बेहतरीन बात है और गाते रहना’ कहती थीं 50 वर्षों से भी अधिक समय तक अपनी निष्पाप आविष्कारक सुर-शैली में गाती रहीं अमेरिका की मशहूर जैज सिंगर एला फिज़गेराल्ड। उषा बैद्यनाथ सोमेश्वर सामी से उषा उथुप तक की यह अहर्निश सुर-यात्रा भी कुछ ऐसी ही है— सोचती हैं उषा।

1968 का वर्ष देश और पूरी दुनिया के लिए मानो बवंडर और विजय का वर्ष था। दरअसल, इसी साल मानवाधिकार के लिए अनवरत अहिंसक संघर्ष करनेवाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर और रॉबर्ट एफ़ केनेडी की हत्या हुई। बिट्ल्स की सांगीतिक फ़िल्म ‘येलो सबमैरिन’ बनी। इसी साल अपोलो-8 चाँद पर पहली बार गया। ये और ऐसी अनेक घटनाएँ। इन्हीं घटनाओं के बीच भारत की प्रथम पॉप सिंगर भी उदित होकर आकार ले रही थीं। स्कूल पास करते ही वर्ष 1965 में मात्र 18 साल की कच्ची उम्र में ब्याह दी गईं सरल-सीधी और खिलन्दड़ी उषा, जो दुनिया के छल-छद्मों से सर्वथा दूर मेहराबदार सपनों की दुनिया में खोयी बम्बई के ‘जे.जे. स्कूल ऑव आर्ट्स’ से डिग्री कोर्स कर रही थीं। संगीत उनकी रगों और धमनियों में था। इसलिए ‘जे. जे. स्कूल ऑव आर्ट्स’ में पढ़ाई करने के बावजूद उनकी छठी इन्द्रिय उन्हें रह-रहकर उकसाती थी कि उनका भविष्य रंगों नहीं बल्कि सुरों की दुनिया में है। इसलिए संगीत को लेकर आशा की परछाई उनके मन में सुबह की कच्ची धूप की तरह फिसलती रहती थी। 

उषा याद करती हैं शुरू 1968 के उस समय को जब दुनिया की सबसे मशहूर अमेरिकी गॉस्पेल सिंगर यानी ईसा मसीह का सन्देश गानेवाली महालिया जैक्सन एक समारोह में बम्बई आई हुई थीं। वे ‘क्वीन ऑव गॉस्पेल’ के नाम से मशहूर थीं। उषा को उनके गॉस्पेल सॉन्ग बहुत अच्छे लगते थे। अमेरिकन सेंटर, वी.ओ.ए. और यू.एस.आइ.एस. ने बम्बई में महालिया के संगीत का यह विशेष आयोजन रखा हुआ था। इन आयोजकों से अनुरोध कर उषा उस दिन कार्यक्रम शुरू होने के पहले बैक स्टेज यानी मंच के पीछे गईं, जहाँ महालिया जैक्सन बैठी हुई थीं और कुछ ही देर बाद अपनी प्रस्तुति देनेवाली थीं। उषा ने उनके मशहूर गाने ‘इट डॉट कॉस्ट वेरी मच’ की कुछ पंक्तियाँ गाकर उन्हें सुनाईं। सुनकर महालिया जैक्सन इतनी ख़ुश हुईं कि उन्होंने उषा से कहा, “तुम यही सॉन्ग मेरे साथ स्टेज पर अभी गाओगी।” हालाँकि, संकोच से दोहरी होती हुई उषा ने उनसे कहा, “मैं आपके स्केल... स्वरक्रम में शायद ही गा पाऊँगी।” पर महालिया जैक्सन को भी जाने क्या धुन चढ़ गई थी, वे अड़ी रहीं, “मुझे यक़ीन है, तुम गा लोगी। अब कोई सुनवाई नहीं। कम विद मी ऐंड सिंग।” मुस्कराते समय उषा के गाल पर पड़नेवाले गड्‌ढे को लाड़ से निहार महालिया ने कहा, “डिम्पलवाले लोगों को ईश्वर ब्रह्मांड में विशेष दैवी कार्यों के लिये ही बनाते हैं।”

और वह एक अद्भुत विरल क्षण था जब महालिया जैक्सन ने मंच से कहा, “यह उषा है— बेटी है मेरी... माइ डॉटर...! आज यह मेरे साथ गायेगी।” उस दिन की प्रस्तुति का वह अलौकिक स्वाद-सुवास उषा के मन-प्राण में आज भी अक्षुण्ण है। ‘टेक माइ हैंड, प्रेशस लॉर्ड’ गाकर गहन-दारुण करुणा उत्पन्न करनेवाली महालिया जैक्सन वह पहली प्रोत्साहक थीं, जिन्होंने बड़े लाड़ और अनायास भरोसे से विशाल दर्शक समूह से उषा का परिचय कराया था, “माइ डॉटर... यह बेटी है मेरी..! शी विल सिङ्ग विद मी टुडे... आज यह मेरे साथ गायेगी।” ईसा मसीह का उपदेश-आशीष अपने संग गवा कर महालिया ने एक तरह से उषा को विधिवत गुरुमुख किया था। उषा की नाभि में छिपे इन्द्रधनुष को जगा दिया। यों उषा ने इसके पहले बच्चों के वास्ते कई जिंगल भी गाये थे। घर में भाई-बहन और बाहर उनके दोस्त-अहबाब उनकी सामान्य से अलग हटकर भारी आवाज़ को लेकर अक्सर चुहल करते थे कि उषा की आवाज़ दारा सिंह जैसी है।

फ़िल्मों में यह दारा सिंह के लिये गाने गायेगी। पर महालिया जैक्सन के कार्यक्रम ने सारे परिदृश्य को हैरान कर दिया। जाहिर है कि महालिया के ममत्व ने उषा के आत्मविश्वास को परवान चढ़ा दिया। इसलिए वर्ष 1972 के जनवरी माह में जब महालिया गुज़रीं, तो उषा के आँसुओं का ओर-छोर न था। पर बीते चार वर्षों में भारत जैसे पारम्परिक देश की प्रथम स्त्री पॉप सिंगर अपने कैरियर के वसन्त में दाखिल हो चुकी थीं। वर्ष 1968 आज की उषा की निर्मिति में चुपचाप लेकिन जोर से जुटा था। अटूट लगन से उन्होंने अपना नायाब ‘वॉयस कल्चर’ सिद्ध कर एक नई राह बनाई।

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