शाह आयोग और श्रीमती गांधी की गिरफ्तारी
क्या था जनता पार्टी की सरकार द्वारा इंदिरा गांधी का सरकारी आवास खाली करवाने का मामला? राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, पूर्व-प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की आत्मकथा 'जीवन जैसा जिया' का एक अंश। 

शाह आयोग का गठन एक गलती थी। मैं मानता था कि चुनाव में हराने के बाद इंदिरा गांधी को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए था। मैं इस राय का था कि चुनाव में हार जाना ही सबसे बड़ी सजा है। उसके बाद हम लोगों को अपनी ओर से कुछ नहीं कहना चाहिए। लेकिन कई लोग सरकार में इस राय के खिलाफ थे। खुद गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और जार्ज फर्नांडीज वगैरह। ये लोग इंदिरा गांधी को जेल भी भेजना चाहते थे। इसकी बात चल रही थी। शाह आयोग बनाते वक्त किसी ने मुझसे बात नहीं की। मैंने एक दिन सुना कि इंदिरा गांधी को जेल भेजने की तैयारी हो रही है। मैं प्राण सब्बरवाल के दफ्तर में था। वहाँ कई पत्रकारों ने मुझसे पूछा कि क्या इंदिरा गांधी को जेल भेजने की तैयारी चल रही है? मैंने उन्हें कहा कि मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है। उसी दिन मैंने इंदिरा जी के एक प्रेस वक्तव्य के विरुद्ध कड़ा जवाब दिया था जो समाचार-पत्रों में छपा था। पत्र-प्रतिनिधियों ने मुझसे कहा कि आजकल गृह-मंत्रालय में यह चर्चा जोरों पर है। मैंने वहाँ कुछ नहीं कहा, वहाँ से सीधे मोरारजी भाई के घर गया और उनसे पूछा कि क्या गृहमंत्री इंदिरा जी को जेल भेजने की तैयारी कर रहे हैं? प्रधानमंत्री जी ने इस संभावना को नकारा। इसके राजनीतिक दुष्परिणामों से मैंने मोरारजी भाई को आगाह किया। इसके बाद मैं मुम्बई चला गया। मैं विधायक निवास में ठहरा हुआ था। शरद पवार के यहाँ रात्रिभोजन के लिए गया था, सूचना वहीं मिली कि इंदिरा जी को गिरफ्तार कर लिया गया। मुझे बुरा लगा। मैं दूसरे दिन सवेरे के हवाई जहाज से दिल्ली वापस आने ही वाला था। विधायक निवास में अपना सामान लाने गया। वहाँ से जब सामान लेकर नीचे आया तो कुछ युवक खड़े थे, उनमें से एक ने पूछा कि क्या इंदिरा गांधी गिरफ्तार कर ली गईं? मैंने उनसे कहा कि मैंने सुना है, पर विवरण मुझे मालूम नहीं। वे युवक कांग्रेस के थे। वे इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी पर अपना विरोध जताने के लिए वहाँ जमा थे। उन्हें पता था कि मैं वहाँ ठहरा हुआ हूँ। जब मैं गाड़ी में बैठ गया तो उन्होंने कुछ नारे लगाए। गाड़ी मेरे मित्र की थी। उनका बेटा गाड़ी चला रहा था। एक सरकारी अधिकारी का बेटा, वह थोड़ा घबराया। मैंने उसे आश्वस्त किया।

मैं रात को बम्बई एयरपोर्ट पर ही रुका। दिल्ली पहुँचने पर सीधे मोरारजी भाई के यहाँ गया और उनसे पूछा कि यह कैसे हो गया? आपने तो यह कहा था कि इंदिरा जी को गिरफ्तार करने का कोई फैसला नहीं है? उनका कहना था कि फैसला गृहमंत्री जी का है, पर मैंने फाइल देख ली है। मैंने जब आरोप की जानकारी चाही तो उन्होंने कहा कि आर. पी. गोयनका से उन्होंने दो सौ जीपें ली हैं। मैंने कहा, चार जीपें तो गोयनका जी ने मेरे पास भी भेजी थीं। इसमें क्या अपराध बनता है? दूसरा आरोप किसी विदेशी कम्पनी को ठेका देने का था। जिसका टेंडर दूसरे देश की कंपनी से शायद दस करोड़ अधिक था। मैं उनकी बात सुनकर हैरान रह गया। दूसरे दिन मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत लिए इंदिरा जी को रिहा कर दिया। उस दिन किसी मंत्री के यहाँ केंद्रीय मंत्रिमंडल की अनौपचारिक मीटिंग थी, उसमें मैं भी आमंत्रित किया गया था। मीटिंग के बीच से बार-बार चौधरी साहब बाहर जाकर यह पता लगा रहे थे कि उस केस में इंदिरा जी का क्या हुआ। एक बजे जब वे फिर गए और लौटकर आए तो बहुत उदास थे। उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत लिए इंदिरा गांधी को रिहा कर दिया। अपने वकालत के दिनों में उन्हें ऐसी कोई मिसाल नहीं मिली। सब लोग भोजन के लिए उठे। मैं थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर गया, जब लौटकर आया तो चौधरी साहब और राजनारायण जी की बात सुनकर हैरान रह गया। राजनारायण जी कह रहे थे कि उसे मीसा में बन्द करा दीजिए। चौधरी साहब ने अपनी राय बताई कि वे तो चाहते हैं, पर प्रधानमंत्री तैयार नहीं होंगे। मीसा अभी समाप्त नहीं हुआ था। मैंने दूसरे कमरे में जाकर मोरारजी भाई से पूछा कि क्या ऐसा भी कोई इरादा है? उन्होंने कहा, बिलकुल नहीं। गृहमंत्री जी की योजना असफल हुई, वे उससे परेशान हैं और कोई बात नहीं। मैं सोचता रहा, पहले तो कह रहे थे कि गिरफ्तारी सही है। मजिस्ट्रेट की हैसियत से उन्होंने जो अनुभव प्राप्त किए हैं, उनका हवाला दे रहे थे और आज ऐसी बातें! इन दो बुजुर्गों के बीच काम करना बहुत कठिन था। उनसे कितनी बार मुझे बातें सुननी पड़ती थीं।

शाह आयोग के गठन और आरोप लगने से लोगों को लगा कि सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है। चुनाव नतीजे के बाद मैं एक बार इंदिरा गांधी से मिला। मुझे वहाँ सब जानते थे। सुरक्षा में तैनात अफसर और कर्मचारियों ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कोई भूत आया हो। यह बात लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद की है। उन दिनों इंदिरा जी सफदरजंग की अपनी सरकारी कोठी में ही थीं। 12, विलिंग्डन क्रिसेंट में तो वे बाद में गईं। मैंने इंदिरा जी से पूछा, आप कैसी हैं? हताश निराश इंदिरा गांधी ने करुणा-भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा। मुझसे पूछा कि आप कैसे हैं? मैंने उनसे कहा कि जेल से छूटने के बाद कई बार मैंने सोचा कि आपसे मिलकर पूछूँ कि आपने यह भयानक काम क्यों किया? इमरजेंसी लगाने की सलाह आपको किसने दी थी? इमरजेंसी थोपना देश के साथ क्रूर मजाक था। यह फैसला आपने क्यों किया?

बात करते हुए मैंने महसूस किया कि इंदिरा गांधी बेहद परेशान हैं। उनको अपनी और परिवार की चिंता सता रही है। कहने लगीं कि बहुत परेशानी है, लोग आकर बताते हैं कि संजय गांधी को जलील किया जाएगा। दिल्ली में घुमाया जाएगा। मुझे मकान नहीं मिलेगा। हमारी सुरक्षा खत्म कर दी जाएगी। मैंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा। मैने ईमानदारी से यह बात कही, क्योंकि मैं यही महसूस करता था। इंदिरा गांधी की बात सुनकर मुझे हैरानी हुई। सोचने लगा कि क्या यह वही महिला हैं जिन्हें देश का पर्याय बताया जाता था? जिसे कुछ लोगों ने दुर्गा मान लिया था?

मैं सीधे वहाँ से मोरारजी भाई के यहाँ गया। उनका रुख समझना चाहा। उन्हें बताया कि आशंका है कि सरकार इंदिरा गांधी की सुरक्षा हटा रही है, मकान खाली करवा रही है। मैंने उनसे कहा कि लोगों में गुस्सा है, कुछ कर देंगे तो आप पर मुश्किल आएगी। मैंने उनसे पूछा कि क्या आप उनको मकान भी नहीं देंगे? मोरारजी भाई ने कहा कि नहीं देंगे, नियम में नहीं आता। मैंने उन्हें बताया कि जाकिर हुसैन, लाल बहादुर शास्त्री, ललित नारायण मिश्र आदि के परिवार को मकान मिला हुआ है। मोरारजी भाई ने कहा कि उनका भी कैंसिल कर दूँगा। मैंने उनसे कहा कि जिस परिवार ने स्वराज भवन और आनन्द भवन देश को दे दिया, जो महिला 17 साल प्रधानमंत्री रही, उनको रहने के लिए आप मकान तक नहीं देंगे? मोरारजी भाई से बड़ी बहस हुई। अन्त में वे माने, यह कहते हुए कि जब आप कहते हैं तो मकान दे दूँगा।

मोरारजी भाई ऐसी बातों में भी अड़ जाते थे। एक किस्सा तो मुझसे ही जुड़ा हुआ है। मैं उनसे मिलने गया था, जब उठकर चलने लगा तो वे बिना कारण बोले, चंद्रशेखर जी, यह एक फाइल है, जरा देखिएगा। मैंने पूछा, कौन-सी फाइल है? मैंने गाड़ी में उस फाइल को सरसरी तौर पर देखा। राजनारायण ने वह फाइल प्रधानमंत्री को दी थी। मैं पलटा और प्रधानमंत्री से पूछा कि मोरारजी भाई, आपने यह फाइल मुझे क्यों दिखाई? मोरारजी भाई ने कहा कि मेरे पास आई थी तो मैंने सोचा कि आपको दे दूँ। आपकी जानकारी में रहनी चाहिए। मैंने उनसे कहा कि मोरारजी भाई, किसी और के साथ यह तमाशा करिएगा। आपको जाँच करवानी है तो करवा लीजिएगा। ऐसी फाइलें मैंने बहुत देखी हैं। आप क्या समझते हैं कि मैं इस पर सफाई दूँगा?

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