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मजदूर दिवस पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, अभिमन्यु अनत के उपन्यास ‘लाल पसीना’ का एक अंश। यह उपन्यास उन भारतीय मजदूरों के जीवन संघर्ष की कहानी है, जिन्हें चालाक फ्रांसीसी और ब्रिटिश उपनिवेशवादी सोने का लालच देकर मॉरिशस ले जाते थे। इस उपन्यास की भूमिका नोबेल पुरस्कार पुरस्कार ज्याँ मेरी गुस्ताव लेक्लेज़ियो ने लिखी है। उन्होंने अपने ‘नोबेल वक्तव्य’ में तीन बार इसके फ्रेंच अनुवाद का उल्लेख विस्तार से किया था।Read more
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राही मासूम रज़ा की पुण्यतिथि पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उनके उपन्यास ‘टोपी शुक्ला’ का एक अंश। व्यंग्य-प्रधान शैली में लिखा गया यह उपन्यास आज के हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों को पूरी सच्चाई के साथ पेश करते हुए हमारे आज के बुद्धिजीवियों के सामने एक प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
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क़ुर्रतुल ऐन हैदर की जयंती पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उनके उपन्यास ‘अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो’ का एक अंश। इस उपन्यास में नाचने-गानेवाली दो बहनों की कहानी है, जो बार-बार मर्दों के छलावों की शिकार होती हैं।
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रांगेय राघव की जयंती पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उनके उपन्यास मुर्दों का टीला का एक अंश। इस उपन्यास में लेखक ने एक रचनाकार की दृष्टि से मोअन–जो-दड़ो का उत्खनन करने का प्रयास किया है। प्राचीन भारत की सिन्धु घाटी सभ्यता के स्वरूप, उस समाज के लोगों की जीवन-शैली, शासन व्यवस्था आदि का अद्वितीय विवरण इस उपन्यास में मिलता है।
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शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के जन्मदिवस पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उनके उपन्यास ‘क़ब्ज़े ज़माँ’ का एक अंश। उर्दू से इसका अनुवाद रिज़वानुल हक़ ने किया है। यह छोटा-सा उपन्यास उर्दू क़िस्सागाेई की बेहतरीन मिसाल है।