- सिनेमा की परोसी चीजें हकीकत नहीं, वह केवल काल्पनिक दुनिया है : अनुराधा बेनीवाल
- समाज के स्तर पर अभी हमें बहुत बदलाव करने की जरूरत : अनुराधा बेनीवाल
- तीसरे दिन Read, Write and Publish और ‘साथ सीखें-सुन्दर लिखें’ सुलेख कार्यशालाओं का आयोजन
- 100 से अधिक युवाओं ने एकसाथ पेपर रोल पर कैलिग्राफी करके किया कला का प्रदर्शन
22 नवंबर, 2024 (शुक्रवार)
नई दिल्ली/जालंधर. राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में आयोजित तीन दिवसीय किताब उत्सव का शुक्रवार को समापन हुआ। किताब उत्सव के तीसरे दिन पहले सत्र में स्पीकिंग टाइगर के एडिटर इन चीफ रवि सिंह के निर्देशन में Read, Write and Publish कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस दौरान रवि सिंह ने युवाओं को किताबें पढ़ने में रुचि पैदा करने से लेकर लेखन के लिए विषयों के चुनाव और किताबों के प्रकाशन तक की प्रक्रिया समझायी। साथ ही उन्होंने किताबों के प्रकाशन को लेकर युवाओं के मन में उठने वाले कई सवालों के जवाब दिए।
दूसरे सत्र में कैलिग्राफर और फॉण्ट डेवलपर राजीव प्रकाश खरे के निर्देशन में ‘साथ सीखें-सुन्दर लिखें’ सुलेख कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस दौरान उन्होंने युवाओं को कैलिग्राफी करने के लिए जरूरी कौशल विकास और इस क्षेत्र में करियर की संभावनाओँ के बारे में बताया। इसके साथ ही कार्यशाला में भाग लेने वाले 100 से अधिक युवाओं ने 50 मीटर लंबे पेपर रोल पर कैलिग्राफी करके अपनी कला का प्रदर्शन किया।
तीसरा सत्र यायावर लेखक अनुराधा बेनीवाल से ‘आज़ादी मेरा ब्रांड : जीने की समझ’ विषय पर सुदीप्ति की बातचीत का रहा। इस दौरान अनुराधा ने कहा, आज मैं जहाँ हूँ वहाँ तक पहुँचने में मेरे पिता की बड़ी भूमिका है। मेरे पिताजी मानते हैं कि शिक्षा प्राप्त करने का मकसद परीक्षा देना नहीं बल्कि ज्ञान प्राप्त करना है। उन्होंने मेरी परवरिश भी इसी अनुसार की है।
इसके बाद सुदीप्ति ने अनुराधा की किताब की कुछ पंक्तियाँ उद्धरित करते हुए भारतीय महिलाओं की जिंदगी में गरम खाने के प्रभाव के बारे में पूछा। इसका जबाब देते हुए अनुराधा ने कहा कि भारत में महिलाएँ अपने परिवार के लिए बिना किसी वेतन के श्रम करती है। उनके श्रम का कोई मूल्य नहीं समझा जाता। बातचीत के दौरान अनुराधा ने कहा कि हमारे समाज में जिन मुद्दों पर खुलकर बात होनी चाहिए उन्हें उल्टे दबा दिया जाता है फिर चाहे वो प्रेम संबंध हो या सेक्स एजुकेशन पर बात करना हो। हम आधुनिक होने के नाम पर सिनेमा की परोसी हुई चीजों को फॉलो करते हैं और वैसा ही बनना चाहते हैं, लेकिन वह हकीकत नहीं है, केवल काल्पनिक दुनिया है। उन्होंने कहा कि हम खानपान और पहनावा तो पश्चिमी देशों की देखा देखी बदल रहे हैं लेकिन जो चीजें असल में हमें पश्चिमी समाज से सीखनी चाहिए उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। हमें समाज में हर किसी को बराबरी का हक दिलाने के लिए बहुत बदलाव करने की जरूरत है।
अगला सत्र काव्य पाठ का रहा जिसमें बलवेन्द्र सिंह, संजय चौहान, अनुराग कुमार, विनोद कुमार शर्मा, दिया तोमर और रम्या ने कविताएँ प्रस्तुत कीं। सत्र का संचालन अशोक कुमार ने किया। इसके बाद अतिथियों को सम्मानित किया गया और राजकमल प्रकाशन के निदेशक आमोद महेश्वरी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही किताब उत्सव का समापन हुआ।