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कमलेश्वर की जयंती पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उनके उपन्यास ‘लौटे हुए मुसाफिर’ का एक अंश। वर्ष 1961 में प्रकाशित इस उपन्यास में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ गम्भीर रूप धारण करती साम्प्रदायिकता की समस्या और भारत विभाजन के नाम पर बेघर-बार हुए मुस्लिम समाज के मोहभंग और उनकी वापसी की विवशता को दर्शाया गया है।Read more
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गोवा लिबरेशन-डे पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, विकास कुमार झा के उपन्यास राजा मोमो और पीली बुलबुल का एक अंश। इस उपन्यास के जरिए हिन्दी साहित्य में पहली बार देश के सबसे छोटे राज्य को बड़े फ़लक पर लेकर केन्द्रीय विमर्श में लाने की पेशकश की गई है।Read more
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कई राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री के पद को लेकर अभी तक राजनीतिक गहमागहमी बनी हुई है। राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, नवीन चौधरी के उपन्यास ‘ढाई चाल’ का एक अंश जो इसी तरह के माहौल की एक रोमांचक कहानी कहती है।
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Posted: December 07, 2023
पुस्तक अंश : इंतजार हुसैन का उपन्यास 'बस्ती'
राजकमल ब्लॉग में आज पढ़ें, पाकिस्तान के शीर्षस्थ कथाकार इंतिजार हुसैन के उपन्यास ‘बस्ती’ का एक अंश। विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह उपन्यास मानवीय संवेदनाओं का एक महाआख्यान है। इस उपन्यास के लिए लेखक को पाकिस्तान के सबसे बड़े पुरस्कार ‘आदमजी एवार्ड’ से सम्मानित किया गया, जिसे उन्होंने वापस कर दिया।
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Posted: September 15, 2023
मैयतों और क़ब्रों के बीच जनमती-पलती ज़िन्दगियों की कहानी
आजकल इस लड़की को भी पाँख निकल आए थे। यह भी छोटी की तरह इन दिनों लहराती रहती थी। बात-बेबात ज़ुबान चलाती रहती। इसकी भी गज भर की ज़ुबान निकल गई थी। झूठ तो इस सफाई से बोलने लगी थी कि रसीदन को उस पर अब रत्ती भर भरोसा नहीं होता था। पहले बे-परवाह रहती थी, पर इन दिनों उसे भी छोटी की तरह हर घड़ी आईने के सामने खड़ा रहने का रोग लग गया था। ठीक है। होता है इस उम्र में, पर इसका मतलब यह नहीं कि बिना आगा-पीछा देखे जो जी में आए करो और दूसरों की आँखों में धूल झोंकती रहो।