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Posted: March 27, 2024
रंग याद है : होरी का संग खेलूँ, बालम हमरो बिदेस
‘अमर देसवा’ उपन्यास के लेखक प्रवीण कुमार होली से जुड़ी यादों में अपनी टोली के साथ बचपन में की गई उन कारस्तानियों को याद कर रहे हैं, जिन्हें अंजाम देते समय वे गाँव के ओझा से लेकर मास्टर जी तक किसी को नहीं छोड़ते थे। आज उनकी टोली के सभी साथी बड़े शहरों में जाकर बस गए हैं लेकिन होली आने पर उनका मन बचपन के उन्हीं दिनों की याद में खोया रहता है। राजकमल ब्लॉग के इस अंक में पढ़ें, उनकी रंगयाद।
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Posted: March 27, 2024
रंग याद है : किस घर की गुझिया अच्छी किसने चाट खिलाई
‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में पढ़ें, सविता पाठक की होली से जुड़ी यादें… उन्होंने पूर्वांचल के गाँव से लेकर शहरों में मनाई गई होली की खट्टी-मीठी यादों को लिखा है। बुकुआ लगाने और होरका के प्रसाद से लेकर ठंडई के तरंग से सराबोर किस्से जो हर किसी को अपने ही घर की कहानी से लगें। प्रस्तुत हैं यह रंगयाद।Read more -
Posted: March 26, 2024
रंग याद है : जमात-ए-होली—में घर नहीं गए
‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में राजकमल ब्लॉग पर पढ़ें, विनीत कुमार की रंगयाद : “जमात-ए-होली—में घर नहीं गए”Read more -
Posted: March 26, 2024
रंग याद है : गली में ढफ बजने लगे थे
‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में राजकमल ब्लॉग पर पढ़ें, कृष्ण कल्पित की रंगयाद : “गली में ढफ बजने लगे थे”Read more -
Posted: March 26, 2024
रंग याद है : गोरी सींकिया कजरवा जनि करs हो
‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में राजकमल ब्लॉग पर पढ़ें, हृषीकेश सुलभ की रंगयाद : “गोरी सींकिया कजरवा जनि कर हो”Read more