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Posted: December 11, 2023
यात्रा वृतान्त : महातीर्थ के अंतिम यात्री
चारों ओर भयंकर सन्नाटा था और उस निस्तब्ध प्रांतर में मैं अकेला प्राणी था। रात जैसे सरक ही नहीं रही थी, मुझे लग रहा था कि मैं अनंत रात्रि के बीच से गुजर रहा हूँ। धरती के कोलाहल से दूर भागकर मैं अनजान अनंत रात्रि के फंदे में अटक गया हूँ जहाँ से मैं निकल नहीं पा रहा हूँ। रात कितनी लम्बी हो सकती है यह मैं आज ही जान सका। मैं लगातार चल रहा था किन्तु ठंड भी क्रमशः बढ़ती ही जा रही थी और रात भी मानों कभी न खत्म होने वाली रात थी।
पर्वत दिवस पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, घुमक्कड़ पर्वतारोही भू-पर्यटक बिमल दे के यात्रा वृतान्त ‘महातीर्थ के अंतिम यात्री’ का एक अंश। इसमें लेखक की 15 वर्ष की उम्र में अकेले की गई ल्हासा-कैलाशनाथ-मानसरोवर यात्रा के अनुभवों का लेखा-जोखा है।
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सांपो की घाटी तक पहुँचते सांझ हो गयी थी। नदी तक पहुँचने में और एक घंटा लग गया। तब तक अंधेरा हो गया था और तारे दिखने लगे थे। रास्ता लगभग समतल
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राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उदय प्रकाश की ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ संग्रह से उनकी कहानी ‘असत्य का भौतिक प्रमाण’
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राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, अशोक कुमार पांडेय की किताब ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ का एक अंश
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Posted: December 07, 2023
पुस्तक अंश : इंतजार हुसैन का उपन्यास 'बस्ती'
राजकमल ब्लॉग में आज पढ़ें, पाकिस्तान के शीर्षस्थ कथाकार इंतिजार हुसैन के उपन्यास ‘बस्ती’ का एक अंश। विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह उपन्यास मानवीय संवेदनाओं का एक महाआख्यान है। इस उपन्यास के लिए लेखक को पाकिस्तान के सबसे बड़े पुरस्कार ‘आदमजी एवार्ड’ से सम्मानित किया गया, जिसे उन्होंने वापस कर दिया।
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महार जाति में पैदा होनेवाला आदमी इतना तेजस्वी हो सकता है, इस बात पर मुझे विश्वास ही न होता। उजला व्यक्तित्व, ऊँचा माथा। पूरे सूर में थे। सिर पर हैट भी। परन्तु उनका चेहरा बीमारी के कारण बहुत क्लान्त दिख रहा था। उन्हें पैरों में तकलीफ़ थी। चलते समय दूसरे लोगों की मदद लेनी पड़ती। एक बार कुलाबा में घूमते हुए मैंने देखा कि बाबासाहब धीरे-धीरे छड़ी के सहारे नीचे उतर रहे हैं। हम लड़के बाबासाहब को ऐसे देख रहे थे, जैसे कोई महान आश्चर्य देख रहे हों।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, मराठी के शीर्षस्थ दलित लेखक दया पवार के आत्मकथात्मक उपन्यास ‘अछूत’ से एक संस्मरणात्मक अंश।...मैंने बाबासाहब को बहुत बचपन में देखा था। स्पष्ट याद न रहते। बोर्डिंग में जब था, तब ख़बर आती है कि बाबासाहब