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कथाकार संजीव को वर्ष 2023 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उनकी ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ से एक कहानी ‘ज्वार’Read more
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गोवा लिबरेशन-डे पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, विकास कुमार झा के उपन्यास राजा मोमो और पीली बुलबुल का एक अंश। इस उपन्यास के जरिए हिन्दी साहित्य में पहली बार देश के सबसे छोटे राज्य को बड़े फ़लक पर लेकर केन्द्रीय विमर्श में लाने की पेशकश की गई है।Read more
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भिखारी ठाकुर निम्नवर्गीय कला, भाषा और वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। नाटकों में भीड़ इसी वर्ग के दर्शकों के कारण होती थी। भिखारी का तमाशा इसी वर्ग का भोगा हुआ यथार्थ था।
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शैलेन्द्र के गीतों से मुहब्बत करने वाले बहुत कम लोग जानते हैं कि 'हर जोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है' जैसा सुप्रसिद्ध आस्थान गीत शैलेन्द्र की ही रचना है। जिसके ये सिर्फ रचयिता ही नहीं थे, गायक भी थे–मंचों से जागृत प्रस्तोता। जो विद्वान कहते हैं कि शैलेन्द्र फिल्मों में नहीं गये होते तो हिन्दी काव्य संसार उन्हें सिर माथे पर बिठाता तो कुछ गलत नहीं कहते हैं। पर एक बार फिल्मों से नाता जोड़ लेने के बाद वे समूचे सिनेमा के हो गए।
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कई राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री के पद को लेकर अभी तक राजनीतिक गहमागहमी बनी हुई है। राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, नवीन चौधरी के उपन्यास ‘ढाई चाल’ का एक अंश जो इसी तरह के माहौल की एक रोमांचक कहानी कहती है।