परिवार नियोजन : नसबन्दी से जनसंख्या विस्फोट तक
राजकमल ब्लॉग के इस अंक में पढ़ें, सुदीप ठाकुर की किताब 'दस साल : जिनसे देश की सियासत बदल गई' का अंश।

लाल तिकोन वाला हाथी

आज़ादी मिलने के बाद सरकार और नीति-नियंताओं को यह एहसास हो गया था कि आने वाले समय में बढ़ती आबादी बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन और रॉकफ़ेलर फ़ाउंडेशन जैसी संस्थाएँ सरकार को न सिर्फ़ परिवार नियोजन कार्यक्रम में तेज़ी लाने का सुझाव दे रही थीं, बल्कि नए तरीक़े भी सुझा रही थीं। फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन ने लोगों को जागरूक करने के लिए अनूठा तरीक़ा निकाला। उसने परिवार नियोजन के प्रचार के लिए एक हाथी का इस्तेमाल किया और उसे नाम दिया—लाल तिकोन। हाथी की पीठ पर बड़ा-सा बैनर लटका होता था, जिस पर रोचक नारे लिखे होते थे : बस दो से तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे; हर बच्चा तीन साल बाद; दो या तीन बस; मेरा नाम है लाल तिकोन, मेरा काम है ख़ुशियाँ फैलाना इत्यादि। इस हाथी को गाँव-गाँव में घुमाया जाता था और वह अपनी सूँड़ से लोगों को परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता फैलाने वाले पैम्फ़लेट तथा निरोध बाँटता आगे बढ़ता जाता था।

इस अभियान के साथ ही लाल तिकोन परिवार नियोजन का पर्याय बन गया। इस लाल तिकोन की कहानी भी रोचक है। यह एक युवा सहायक जनसंख्या आयुक्त धर्मेंद्रपाल त्यागी के दिमाग़ की उपज था। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के रतनगढ़ गाँव के थे। उन्हें दीप त्यागी के नाम से भी जाना जाता था बल्कि इसी नाम से वह इतिहास में दर्ज हो गए। जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री की सरकारों के साथ ही और इन्दिरा गांधी के शुरुआती वर्षों में दीप त्यागी ने परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए जनसंचार की कई तकनीक ईज़ाद की। यह लाल तिकोन उन्हीं में से एक था। 1969 में महज़ 41 साल की उम्र में दीप त्यागी का निधन हो गया, लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं गया। नियति की क्रूरता देखिए कि जिस शख़्स ने परिवार नियोजन कार्यक्रम में अमूल्य योगदान दिया, उनके ख़ुद के कोई बच्चा नहीं था। 1989 में उनके नाम पर एक अन्तरराष्ट्रीय ग़ैर सरकारी संस्था की स्थापना की गई : डीकेटी इंटरनेशनल। यह संस्था परिवार नियोजन और एड्स/एचआईवी के प्रति दुनियाभर में जागरूकता फैलाने का काम करती है।

परिवार नियोजन कार्यक्रम में आई तेज़ी और जागरूकता अभियान के साथ 1970 के दशक की शुरुआत तक सरकार का ज़ोर दो से तीन बच्चों तक रहा। इसके बावजूद 1971 में देश की आबादी 54.82 करोड़ हो गई यानी क़रीब 24 वर्षों के बाद आबादी में 20 करोड़ की वृद्धि हो गई यानी लगभग ढाई दशक में देश की आबादी में एक उत्तर प्रदेश और जुड़ गया। देश के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की आबादी अभी क़रीब 20.4 करोड़ है।

1971 का वर्ष अपने आप में बहुत से दूसरे घटना-क्रमों से भरा रहा। इसी वर्ष इन्दिरा गांधी ने समय से पहले आम चुनाव करवा लिए थे। इसी साल के अन्त तक बांग्ला मुक्ति संग्राम बांग्लादेश के निर्माण के साथ ही अपनी निर्णायक परिणति तक पहुँच गया। इसके बाद अगले दो-तीन वर्षों में देश की सियासी फ़िज़ा भी बदलने लगी। गुजरात और बिहार के छात्र आन्दोलन, 1974 की रेल हड़ताल और आख़िर में जयप्रकाश नारायण के ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के आह्वान के साथ हुए आन्दोलन से देश की प्राथमिकताएँ ही बदल गईं। ऐसे हालात में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने 26 जून, 1975 को देश में आपातकाल लागू कर दिया, जिसने सब कुछ उलट-पुलट दिया।

आपातकाल के लागू होने से पहले तक परिवार नियोजन कार्यक्रम सुचारु रूप से चल रहा था। यहाँ तक कि आपातकाल लागू किए जाने के बाद के कुछ महीनों तक भी इसमें कोई बदलाव नहीं आया था। उस समय डॉ. कर्ण सिंह देश के स्वास्थ्य और परिवार नियोजन मंत्री थे। दरअसल यह डॉ. कर्ण सिंह ही थे, जिन्होंने नई जनसंख्या नीति तैयार की थी, जिसे सरकार ने 16 अप्रैल, 1976 को जारी किया था। मुझे दिए साक्षात्कार में डॉ. कर्ण सिंह ने कहा, “मैंने नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी ख़ुद तैयार की। उसके 18 पैराग्राफ़ थे। बड़े ग़ौर से मैंने पॉलिसी लिखी और उसे संसद के सामने रखा। इसमें कोई शक नहीं कि उसमें हमने टारगेट रखे थे, पुरुषों के इतने और महिलाओं के इतने। मैंने जो लक्ष्य रखे थे, वे बहुत व्यावहारिक थे। बिना किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती के वो टारगेट पूरे हो रहे थे। दुर्भाग्य यह हुआ कि संजय गांधी ने इसे अपने पाँच सूत्री कार्यक्रम से जोड़ दिया। तब उत्तर भारत के मुख्यमंत्रियों ने सोचा कि संजय गांधी को ख़ुश करने का एक ही तरीक़ा है कि नसबन्दी के लक्ष्य को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाए।”

नई जनसंख्या नीति में देश की बढ़ती आबादी पर चिन्ता जताई गई थी। इसमें बताया गया था कि 1 जनवरी, 1976 को देश की आबादी ने 60 करोड़ का आँकड़ा पार कर लिया है। इसमें बताया गया था कि सरकार लड़कियों और लड़कों के लिए शादी की उम्र क्रमशः 18 और 21 वर्ष करने के लिए क़ानून लाने जा रही है। जैसा कि डॉ. सिंह ने कहा, “नसबन्दी के लिए लक्ष्य ज़रूर निर्धारित किए गए थे, मगर वे बहुत व्यावहारिक थे। इससे आबादी को नियंत्रित करने में मदद मिलती। नई जनसंख्या नीति में 1974 (चौथी पंचवर्षीय योजना) की प्रति हज़ार में 35 की जन्म-दर को कम कर 1984 (छठी पंचवर्षीय योजना) तक प्रति हज़ार 25 करने का लक्ष्य रखा गया था।”

मगर संजय गांधी के परिदृश्य में आने के साथ ही सब कुछ उलट-पुलट गया। आपातकाल लागू करने के साथ ही इन्दिरा गांधी ने देश में सुधार और विकास के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इन 20 सूत्रों में परिवार नियोजन शामिल नहीं था। लेकिन इसी के समानान्तर संजय गांधी ने अपना बहुचर्चित और बाद में विवादास्पद हो गया पाँच सूत्री कार्यक्रम पेश कर दिया। संजय के ये पाँच सूत्र थे : साक्षरता, परिवार नियोजन, वृक्षारोपण, जाति प्रथा का उन्मूलन और दहेज प्रथा की समाप्ति। सुनने और पढ़ने में ये आज बहुत आदर्श लगते हैं। संजय के परिवार नियोजन में दिलचस्पी दिखाने के साथ ही यह कार्यक्रम सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर आ गया।

'दस साल : जिनसे देश की सियासत बदल गई' पुस्तक यहाँ से प्राप्त करें।