अशफाक का आखिरी खत अपनी माँ के नाम
राजकमल ब्लॉग के इस अंक में पढ़ें, अशफाक उल्ला ख़ाँ का उनकी माँ के नाम लिखा आखिरी खत। यह बनारसीदास चतुर्वेदी की किताब 'अमर शहीद अशफाक उल्ला ख़ाँ' में संकलित है।

आखिरी खत अपनी माँ के नाम

अज जिन्दान फैजाबाद, फाँसी की कोठरी

15 दिसम्बर, 1927

 

दुखिया और बूढ़ी माँ की खिदमत मे उसके मरते हुए फरजन्द का सलाम पहुँचे, जो इसी हफ्ते में इस फानी दुनिया को अलविदा कहकर उस मुल्के जावेदाँ को जा बसाएगा, जहाँ कि इससे पहले भी सब जा चुके हैं और हर रूह इसके बाद भी जाएगा―

फना है सबके लिए हमपे कुछ नहीं मौकूफ,

बका है एक फकत जाते किब्रिया के लिए।

आप भी बखूबी वाकिफ हैं और तालीमयाफ्ता हैं मगर यह जरूर है कि बूढ़ी सिनरसीदा दुखिया माँ के लिए यह सदमा जरूर बड़ा है कि उनका जवान बेटा नामुराद दुनिया से उठ जाए और वह उसकी लाश पर दो आँसू भी न डाल सके या उसकी मरी हुई सूरत देख सके। मगर यह तो बताओ यह हुक्म किसका है? क्या दुनिया के किसी इंसान का हुक्म है? क्या कोई मुझे उसके हुक्म के बिला मार सकता है? उसने रोजेअज़ल से ऐसा ही लिखा था कि अशफाक तुझको फाँसी पर मरना है और जब तू मरेगा तो कोई तेरे पास तेरे आइज्जा व अकरुबा (रिश्तेदार) व अहबाब में से न होगा। पस हुक्म खुदावन्दी पूरा होकर रहेगा और ऐसा ही होता चला आया है। मैं यह लिख देना चाहता हूँ कि मैं बइत्मीनान और पुरसुकून (शान्ति से) मौत मर रहा हूँ। हुक्मे खुदा ऐसा ही था और वह अटल है, होकर रहेगा। मौत सबके लिए है और सब मरेंगे। दुनियावी तकालीफ, माद्दी बन्दिशें, इंसानी कयूदात सब पीर के रोज तक खत्म हो जाएँगी और मेरी रूह इस कफसे–अंसरी से आजाद हो जाएगी।

अब दूसरी मंजिल सामने है, देखिए वहाँ कैसी गुजरे। यह उसकी बखशीश-व-करम पर मुनहसिर है। सफर दरपेश है, जादेराह (रास्ते का सामान) पास नहीं। बस उसी की उम्मीदे करम पर खुश-खुश मर रहा हूँ। मैं तो आप सबको अलविदा कहता हुआ आप सबको और खसूसन आपको बक्या जिन्दगी में वक्फे नौहा व बुका करके उस तरफ जा रहा हूँ, जहाँ से आया था और फिर वापस जाने का वायदा था। वायदा पूरा करना है। आप सबके सामने राहे अमल क्या है? मैंने तो बुरा किया या अच्छा। मैं इकरार करता हूँ.. कि मेरी जिन्दगी की इतनी बरसें गुमराही, मासियत, सियाकारी (गुनाह) और गुनाहों में गुज़री, उसके लिए मेरे दोस्त, मेरे अजीज, मेरे भाई और मुख्तसिर यह कि हर हमदर्द मुसलमान दुआए मगफिरत (आत्मा की शान्ति के लिए) करे और आप सब लोग सब कीजिए। सब्र तल्ख अस्त व लेकिन बरे शीरीं दारद (फल मीठा)― मुझे डर है कि आप घबरा न उठें और यह न कह बैठें कि जिसकी जवान औलाद मर जाए वह कैसे सब करे तो सुनिए, मेरी प्यारी माँ! खुदा ने मुझको आपके शिकम से पैदा किया था। मेरी पैदाइश पर खुशियाँ मनाई गई थीं। शुकराने अदा किए गए थे। और किस्सा मुख्तसर यह कि मुझको आँखों का नूर और दिल का सुरूर समझा जाता था। आपने इस सिले में खुदा को क्या दिया कि उसने आपको एक इंसान की शक्ल में औलाद दी। आपसे जो भी पूछता था आप यही कहती थीं कि खुदा का बन्दा है, खुदा ने दिया है। उसी की अमानत है और मैं अमानतदार हूँ। पस अब मालिक अपने गुलाम को तलब करता है। अमानत रखनेवाला अपनी अमानत तलब करता है। आप खयानत न करें, न आपकी चीज थी न आपसे छीनी गई। इतने दिन के वास्ते आपको दी गई थी कि रखो, बाद को हम वापस लेंगे, अब वापस लिया जा रहा हूँ फिर आपको क्या हक है कि रद्दोकद करें। क्या आपने हमेशा से यह सोचा था कि मुझे मौत कभी न आएगी? अरे! तुम भी जानती थीं और मुझे भी मालूम था कि हम तुम सब मरेंगे कोई आगे कोई पीछे। या तो मुझको रोना पड़ता तुम्हारे लिए, या तुम्हें मेरे लिए। उसका मन्शा यह था कि बूढ़ी माँ जवान औलाद को रोएगी और बकिया तीन भाई अपने छोटे भाई का मातम करेंगे। तो क्या कोई आज इस दुनिया में इतनी ताकतवाला है कि खुदावन्द के अहकाम पलट दे? कोई नहीं!

अपने खानदान ही में कितनी ऐसी माएँ हैं जो बुढ़ापे में जवान औलाद का दाग खाए बैठी हैं और कितने ही ऐसे भाई हैं, जो अपनी आँखें अपने भाई के लिए सुर्ख कर चुके हैं और कितनी ही बहनें, भावजें, भतीजियाँ, भतीजे, भानजियाँ, भानजे हैं जो कि अपने भाई, देवर, चचा, मामू के लिए सीनाकोबी कर चुके हैं। दुनिया का यही धन्धा है। दुनिया नाम ही उसका है। अगर मरना न होता तो जिन्दगी का फायदा ही क्या था? अगर रात न हो तो दिन में लज्जत ही क्या? अगर गम न हो तो शादी-ब-मंजिले गम है। गरज के दुनिया एक माजूने मुरक्कब है। जिसमें सब जायके हैं। ऐशोमसर्रत, गमो अन्दोह, आराम व तकलीफ, गफलत व बेदारी, नेकी व बदी, मौत व जीस्त, गरज कि हर चीज यहाँ मिलेगी। पस खुशकिस्मत वह है जिसने अच्छी बातें कबूल कीं और बुराइयों से परहेज किया। गफलत पर होशियारी को तरजीह दी और माबूदे हकीकी की याद में लगा और होशियार रहा अपने फराइज की अदायगी में। नेकी कबूल किया बदी ठुकराया। अबदी आराम की खातिर तकलीफ बरदाश्त की और इबादत में मसरूफ रहा, मौत को पेशे-नजर रखा और जीस्त ही में सामाने आखिरत जमा कर लिया। ऐश व इशरत में पड़कर गफलत नहीं की और पेश आनेवाले गम व अन्दोह का खटका महसूस करता रहा। पर जिसने इन बातों को अख्तियार किया और हर मुसीबत व तकलीफ व आराम व राहत को मिनजानिब अल्लाह तसव्वुर किया और उसकी निआमतों का शुक्रिया अदा किया। मसाइब व तकालीफ पर सब किया और कहा कि यह सब मिनजानिबअल्लाह हैं।

दोस्त का दिया हुआ जहरेहलाहल भी शहद मुसफ्फा खयाल किया और सब्र किया, शुक्र किया पस राजी कर लिया उसे जो कौनेन का मालिक और मशरिक व मगरिब का रब है। क्या तुम इसके ख्वाहिशमन्द नहीं हो कि खुदा तुम्हारा पैदा करनेवाला है और जिसके सामने तुम्हें जाना है, तुम्हें अपना दोस्त कहकर पुकारे? अरे दुनिया उसकी मुतमन्नी है और वह हमको अपना दोस्त कहे। आज मौत के सामने बैठा हुआ अशफाक कुछ ख्वाहिश नहीं रखता, मगर हाँ वह कह दें कि अशफाक मैं तुझसे राजी हूँ और तू मेरा बन्दा है मैंने बन्दगी में कबूल किया। वह कहता है, ऐ ईमानवालो! बेशक अल्लाह सब्र करनेवालों के साथ है। दूसरी जगह फरमाता है यानी खुशखबरी सुना दो उन सब्र करनेवालों को कि जब उनको कोई मुसीबत पहुँचती है तो कहते हैं कि बेशक हम अल्लाह ही के हैं और बेशक हम उसकी तरफ लौटने वाले हैं। फिर फरमाता है। यानी यही हैं जिन पर बरकात हैं उनके रब की तरफ से और रहमत है। यही लोग हिदायतवाले हैं। यह कौल आपको जनाबे बारी के लिख दिए। अब समझना न समझना आपका काम है।

आपका सब्र व शुक्र आपको उसके दरबार में मकबूल व मुकर्रब करेगा। और अगर खुदा ना ख्वास्ता आप हद से आगे बढ़ गई तो आप खुद समझदार और पढ़ी-लिखी हैं। आपका नाल-ओ-शेवप, आहवजारी, सीनाकोबी, मुझको जिन्दा नहीं कर सकती, न मौत से बचा सकती है। हाँ सब्र करना, कलमा व दरूद पढ़ना और बख्शना मेरे लिए कुछ सूदमन्द साबित हो सकते हैं। पस मेरी अच्छी माँ मेरी खताएँ माफ फरमाकर मशगूले-खुदा हो जाओ। उसकी मर्जी यही थी और कौन है जो उसके हुक्म को टाल सके। मुझसे आपको दुख पहुँचा। आपका बुढ़ापा बर्बाद हो गया। आपकी जिन्दगी जीक में पड़ गई, मैंने की। हाँ जाहिर असबाब में से एक मैं भी हूँ। मगर मौला की मरजी और उसका हुक्म पोशीदा रहता है। समझदार मिनजानिब अल्लाह हर बात को समझते हैं और नासमझ इंसानों की तरफ खयाल दौड़ाते हैं। इससे कब्ल एक कार्ड फैसले के मुतअल्लिक मिला होगा। कैसे मजे की बात है कि मैं अपने कलम से अपनी मौत की खबर आपको भेज रहा हूँ। मैंने एक किताब लिखना शुरू की थी और वह तकमील को न पहुँच सकी। खैर मालिक की मरजी ही न थी जिसमें मेरा मकसद बच्चों के लिए नसीहत करना था। खैर उनके लिए जो मैदाने अमल है और जो सामने आए उस पर गामजन हों।

मुझे जो लिखना है थोड़ा-थोड़ा सब लिख दूंगा क्योंकि अब वक्त मेरे पास मजमून निगारी व कलम फरसाई का नहीं है। मुख्तसर-मुख्तसर सबको लिख दूँगा। सब अपना-अपना मतलब निकाल लें। मुझे तो सबसे जरूरी आपको लिखना था। और यूँ तो ये मजमून वाहिद तसव्वुर किया जाए। सभी से सब्र की गुजारिश है और सब्र ही खुशी की कुंजी है। मुझे बूबू की भी परेशानियों का इल्म है और आप सबकी कोफ्त में ऐसे वक्त इजाफा नए गम का है। मगर क्या मौला की मर्जी टाली जा सकती है? नहीं हरगिज नहीं। वह हर सूरत से आजमाइश कर रहा है। तुम सब हाथ से न जाने दो। जो दोस्त की तरफ से खुशी व गम मिले मुस्कुराते हुए चेहरे और मुतमईन दिल के साथ कबूल करो कि फलाहे दीनी व दुनयावी हासिल कर सको। मैं कोशिश करूँगा कि यह खत तुमको मेरी मौत से पहले ही मिल जाए ताकि तुम्हारे दुख में कमी हो जाए और तुम सोच सको कि मरनेवाला क्या बात है कि मरते हुए भी मुतमइन व खुश है–फना है सबके लिए हमपे कुछ नहीं मौकूफ, बका है एक फकत जाते किब्रिया के लिए। आदम अलैहिस्सलाम से लेकर इस वक्त तक कौन ऐसा है जो मरा न हो? जिसने बसाते-आलम पर जिन्दगी के मोहरे बसाए और और मौत के हाथों के सामने जरूर मात खाई, पस उसका गम बेकार है और आनेवाली और जरूर आनेवाली बात के लिए परेशान होना सरासर गलती है। अब रहा मुहब्बत, डाह, मोह, प्रेम–ये सब दुनियावी धन्धे हैं। खुदा से मुहब्बत करो। उसको पूजो जो हमेशा जिन्दा व कायम रहेगा। तुम्हें अपनी बकीया जिन्दगी में कभी भी उसके लिए रोना नहीं पड़ेगा। बस उसी से मुहब्बत करो और उसी को समझो। अक्ली-दलाइल, मजहबी मसाइल, फलसफियाना बहस दुखे हुए दिल पर नमक-मिर्च का काम करते हैं।

मैं खूब जानता हूँ कि आप सोचेंगी कि मैंने अपनी करतूतों से आपका बुढ़ापा खराब किया और भाइयों और दीगर अइज्जा की जिन्दगी दुख की जिन्दगी बना दी। मैंने क्या किया? मैंने कुछ नहीं किया। उसका हुक्म रोजेअज़ल से ऐसा ही था, होकर रहा। जो बात होनेवाली होती है असबाब उसके पेशतर से होना शुरू होते हैं और असबाब जब पाय-ए-तकमील को पहुँच जाते हैं, बात पूरी हो जाती है। पस लिए यह मौत और यह दिन था। सो मुझे मिला। और तुम्हारे लिए दुख, बुढापे का धक्का और सीनाकोबी लिखी थी वह तुम्हें मिल रही है। जो जिसके लिए उसने मुनासिब समझा वह उसे तकसीम कर दिया। पस कौन है जो शिकवा करे और लब शिकायत के वास्ते खोले–

हम रजाकार हैं हम पर है बहरहाल यह फर्ज,

शुक्रे हक लब पे रहे शिकवए आदा न करे।

मान लें फैसलाए दोस्त को बेचूनोचरा,

फिके इमरोज ही रखें, गमे फर्दा न करें।

तुम सबको गम उठाने के लिए इन्तखाब किया और मुझे मंसूरे वक्त बनाने को चुन लिया। अगर तुमको गिरियए याकूब अता किया तो मुझको सुन्नते यूसफी अदा करने के लिए पुकारा। अगर तुमको मातम कुन मिस्ल खानदाने नबवी बनाना चाहा, बना दिया और मुझे मुत्तबए हुसैन शहीदे तेगेजफा के खिताब से नवाजा। उसकी शान निराली। उसकी अदा अनोखी, हर जगह नए रंग में हर तरफ नए रूप में जलवागर है। जो कुछ हुआ और जो होगा और रहा है उसकी मरजी से हो रहा है और होगा। इस कौन है जो सरताबी करे। और कौन है जो उसके हुक्म से बाहर जा सके? बस उसी पर नजर रखो और सब व करार हाथ से न जाने दो। शुक्र करो उसकी अमानत उसकी तरफ जा रही है। और सानआ अपने मसनूअ को बिगाड़ना चाहता है। फिर तुम कौन रोनेवाली, तुम कौन तड़पनेवाली? उसकी चीज थी उसको अखतियार है। सब करो, सब्र करो और बकिया जिन्दगी का वेश-बहा वक्त मेरे लिए रोने में न सर्फ करो बल्कि उस सफर की तैयारी में लगाओ को एक दिन दरपेश है। इबादत में मगफिरत है। गुनाहों में वक्त न गुजार दो क्योंकि यही काम आएगा। गफलत छोड़ो और उसको पकड़ो। दुनिया फना होनेवाली है और तुम्हारा भी बुढ़ापा है । अच्छा मेरी खताएँ माफ करो और मुझे अपने हकूक से सुबुकदोश करो। तुमको खुदा की अमान में दिया। तुम्हें नेक बीवी और साबिरा बीवी बनाए। आमीन!

भावजो और भाइयो! अलफराक बीनी व बीनकुम–तुम आपस में मिल-जुलकर रहना और दुखिया व बदकिस्मत माँ की खिदमत में लगी रहना और बकिया जिन्दगी को सुकून से गुजारने का मौका देना। अगर तुम लोग ऐसे ही आपस मे शिकवा व शिकायत करते रहे और शकररन्जी तुम्हारे दरमयान में रही तो कुछ लुत्फ नहीं। शीरोशकर बनकर रहना और जुदा न होना। मेरी तो यही ख्वाहिश है और मुझे खुदा की मरजी यही थी।

भाइयो! तुमने इन्तहाई कोशिश की मगर मौत और खुदा का हुक्म टाले नहीं टलता और पूरा होकर रहेगा। तुम भी मजबूर हो रहे। सब्र-शुक्र करो। खुदा की मरजी ही यह है। मैं बताए देता हूँ कि मैं एक पुरसकून मौत मर रहा हूँ। मैं नहीं कह सकता कि कौन खयाल मुझे मस्त व खुश बनाए हुए है। दिल अन्दर से फूला चला आता है। मुझे कतई खयाल ही नहीं गुजरता कि मुझे फाँसी दी जाएगी। मरेंगे तो सभी कुछ, मैं ही नहीं मर रहा हूँ। तुम खुदा पर नजर रखो और बजाय रोने-धोने के मेरे ईसाले सवाब में लगे रहना कि वहाँ काम आए। अब ज्यादा क्या लिखूँ? खुदा तुम सबको सब्रे जमील अता फरमाए और मुझ गुनाहगार को जवारे रहमत में जगह दे।

―फकत अशफाक उल्ला खाँ

 

बनारसीदास चतुर्वेदी की किताब 'अमर शहीद अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ' यहाँ उपलब्ध है।