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राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, हिन्दी के मूर्धन्य व्यंग्य शिल्पी शरद जोशी के राजनीतिक व्यंग्यों के संकलन ‘वोट ले दरिया में डाल’ से एक व्यंग्य। इसमें उन्होंने राजनीति की कई अलग-अलग परिभाषाएँ यह समझाया है कि राजनीति की दरअसल क्या होती है?Read more
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राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, मनोहर श्याम जोशी के प्रतिनिधि व्यंग्य से उनका एक व्यंग्य― जिस देश में जीनियस बसते हैंRead more
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पिछले कुछ दिनों से परिवार में बैंगन की ही बात होती है। जब भी जाता हूँ, परिवार की स्त्रियाँ कहती हैं—'खाना खा लीजिए। घर के बैंगन बने हैं।' जब वे 'भरे भटे' का अनुप्रास साधती हैं, तब उन्हें काव्य-रचना का आनन्द आ जाता है। मेरा मित्र भी बैठक से चिल्लाता है-'अरे भई, बैंगन बने हैं कि नहीं!' मुझे लगता है, आगे ये मुझसे 'चाय पी लीजिए' के बदले कहेंगी—' एक बैंगन खा लीजिए। घर के हैं।'राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य 'आंगन में बैंगन'।
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राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, शरद जोशी के व्यंग्य संग्रह 'जीप पर सवार इल्लियाँ' से उनका व्यंग्य 'एक मिनी भ्रष्टाचार।'
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राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, यशवंत व्यास के व्यंग्य संग्रह 'कवि की मनोहर कहानियाँ' से उनका व्यंग्य 'कवि मनाली गया।'