रघुवीर सहाय की पाँच कविताएँ

रघुवीर सहाय की पुण्यतिथि पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें उनके कविता संग्रह ‘हँसो हँसो जल्दी हँसो’ से पाँच कविताएँ… इस संग्रह में शामिल कविताएँ बार-बार पढ़ी गई हैं और बार-बार पढ़े जाने की माँग करती हैं, क्योंकि हमारे समूह-मन की जिन दरारों की ओर इन कविताओं ने संकेत किया था, आज वे और गहरी हो गई हैं।

01.

हा हा हा

 

हा हा हा

तुमने मार डाले लोग 

हा हा हा

 

क्योंकि वे हँसे थे 

तुमने मार डाले लोग 

तुमने मार डाले लोग 

हा हा हा

 

क्योंकि वे सुस्त पड़े थे 

तुमने मार डाले लोग 

तुमने मार डाले लोग

हा हा हा

 

क्योंकि उनमें जीने की आस नहीं रही थी

तुमने मार डाले लोग

तुमने मार डाले लोग

हा हा हा

तुमने मार डाले लोग

 

क्योंकि वे बहुत सारे लोग थे 

इसी तरह के बहुत सारे लोग।

 

02.

दो अर्थ का भय

 

मैं अभी आया हूँ सारा देश घूमकर 

पर उसका वर्णन दरबार में करूँगा नहीं 

राजा ने जनता को बरसों से देखा नहीं 

यह राजा जनता की कमजोरियाँ न जान सके इसलिए मैं 

जनता के क्लेश का वर्णन करूँगा नहीं इस दरबार में

 

सभा में विराजे हैं बुद्धिमान 

वे अभी राजा से तर्क करने को हैं 

आज कार्यसूची के अनुसार 

इसके लिए वेतन पाते हैं वे 

उनके पास उग्रस्वर ओजमयी भाषा है

 

मेरा सब क्रोध सब कारुण्य सब क्रन्दन 

भाषा में शब्द नहीं दे सकता 

क्योंकि जो सचमुच मनुष्य मरा 

उसके भाषा न थी

 

मुझे मालूम था मगर इस तरह नहीं कि जो 

ख़तरे मैंने देखे थे वे जब सच होंगे 

तो किस तरह उनकी चेतावनी देने की भाषा 

बेकार हो चुकी होगी 

एक नई भाषा दरकार होगी

 

जिन्होंने मुझसे ज्यादा झेला है 

वे कह सकते हैं कि भाषा की जरूरत नहीं होती 

साहस की होती है 

फिर भी बिना बतलाए कि एक मामूली व्यक्ति 

एकाएक कितना विशाल हो जाता है 

कि बड़े-बड़े लोग उसे मारने पर तुल जाएँ 

रहा नहीं जा सकता

 

मैं सब जानता हूँ पर बोलता नहीं 

मेरा डर मेरा सच एक आश्चर्य है 

पुलिस के दिमाग़ में वह रहस्य रहने दो 

वे मेरे शब्दों की ताक में बैठे हैं 

जहाँ सुना नहीं उनका ग़लत अर्थ लिया और मुझे मारा

 

इसलिए कहूँगा मैं 

मगर मुझे पाने दो 

पहले ऐसी बोली 

जिसके दो अर्थ न हों।

 

03.

हँसो हँसो जल्दी हँसो

 

हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही है

 

हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट 

पकड़ ली जाएगी और तुम मारे जाओगे 

ऐसे हँसो कि बहुत ख़ुश न मालूम हो 

वरना शक होगा कि यह शख्स शर्म में शामिल नहीं 

और मारे जाओगे

 

हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो 

सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त होकर 

एक अपनापे की हँसी हँसते हो 

जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाय

 

जितनी देर ऊँचा गोल गुम्बद गूँजता रहे, उतनी देर 

तुम बोल सकते हो अपने से 

गूँज थमते थमते फिर हँसना 

क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फँसे 

अन्त में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे

 

हँसो पर चुटकुलों से बचो 

उनमें शब्द हैं 

कहीं उनमें अर्थ न हों जो किसी ने सौ साल पहले दिये हों

बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो 

ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे 

और ऐसे मौकों पर हँसो 

जो कि अनिवार्य हों 

जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार 

जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता 

उस ग़रीब के सिवाय 

और वह भी अक्सर हँसता है

 

हँसो हँसो जल्दी हँसो 

इसके पहले कि वह चले जाएँ 

उनसे हाथ मिलाते हुए 

नज़रें नीची किए 

उसको याद दिलाते हुए हँसो 

कि तुम कल भी हँसे थे।

 

...

04.

राष्ट्रीय प्रतिज्ञा

 

हमने बहुत किया है 

हम ही कर सकते हैं 

हमने बहुत किया है 

पर अभी और करना है 

हमने बहुत किया है 

पर उतना नहीं हुआ है 

हमने बहुत किया है 

जितना होगा कम होगा 

हमने बहुत किया है 

जनता ने नहीं किया है 

हमने बहुत किया है 

हम फिर से बहुत करेंगे 

हमने बहुत किया है 

पर अब हम नहीं कहेंगे 

कि हम अब क्या और करेंगे 

और हमसे लोग अगर कहेंगे कुछ करने को 

तो वह तो कभी नहीं करेंगे।

 

...

05.

आपकी हँसी

 

निर्धन जनता का शोषण है 

कह कर आप हँसे

लोकतंत्र का अन्तिम क्षण है 

कह कर आप हँसे

सब के सब हैं भ्रष्टाचारी 

कह कर आप हँसे

चारों ओर बड़ी लाचारी 

कह कर आप हँसे

कितने आप सुरक्षित होंगे 

मैं सोचने लगा

सहसा मुझे अकेला पाकर 

फिर से आप हँसे।

 

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