धरती आबा
बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, उन पर आधारित हृषीकेश सुलभ के नाटक 'धरती आबा' का एक अंश।

करमी : तू इतना बेचैन क्यों है रे बेटा?...तुझे नींद नहीं आती क्या? तू रात-रात भर जागता है...। सारी-सारी रात छटपट करता है तू बिन पानी की मछरी जैसे...।

बिरसा  : मैं मछरी नहीं हूँ माँ।

करमी  : हाँ रे जानती हूँ...बाघ है तू...बाघ। इसीलिए फन्दे में फँसे बाघ की तरह छटपटाता है तू। अब तो तू धरती का आबा है रे।

बिरसा  :  तुझे कैसे मालूम कि मैं सारी-सारी रात जागता हूँ...सोता नहीं हूँ? क्या तू भी जागती है सारी रात?

करमी  :  हाँ रे...जब से तू धरती का आबा बना, मेरी नींद चली गई।...तू भी मेरे कलेजे का दुख नहीं समझता। तुझे क्या लेना-देना मेरे इस दुख से। तू तो अब सारी दुनिया का दुख लिये घूम रहा है।...कल तक इस करमी को कोई नहीं जानता था।...चीन्हते नहीं थे सब। अब सब देखते ही उठकर खड़े हो जाते हैं। बनिया...महाजन...पहान, सब कहते हैंµतू तो भगवान की माँ है...।

बिरसा :  तुझे अच्छा नहीं लगता?...बुरा लगता है?

करमी  :  मैं अच्छा-बुरा नहीं जानती रे। मैं तो बस यही चाहती कि हूँ कि तू कोमता जैसा होता! बहू आती। बच्चे होते तेरे। पर तू तो आबा बन गया। भगवान हो गया। क्यांे बना रे भगवान? इतना बड़ा हो गया कि अब मेरी गोद में ही नहीं अँटता। मेरी छाती में नहीं समाता। बार-बार कहता है कि तू चला जाएगा।...कहाँ जाएगा रे मेरे आबा? क्यों तेरे जनमते ही मेरे घर के ऊपर तीन तारे जले-बुझे?

बिरसा  :  सो जा माँ।...सो जा।

करमी  :  सब सो रहे हैं। सब सो रहे हैं अपने धरती आबा के भरोसे...अपने भगवान के भरोसे। सिरफ मेरे पास नींद नहीं। मैं भगवान की माँ जो हूँ। मैं सो गई तो मेरे भगवान की कौन देख-रेख करेगा? बस, इसी डर से जागती रहती हूँ। सोती नहीं हूँ...रोती रहती हूँ।

बिरसा  :  चल माँ। चल, तुझे सुला दूँ।

करमी  :  मैं एक दिन रोते-रोते पत्थर हो जाँऊँगी रे। अब समझ गई हूँ मैं कि तू मुझे बहुत सताएगा। मैंने तुझे गोद में सुलाया है।...

बिरसा  :  आ, मेरी गोद में आ...

करमी  :  जब-जब मन में पीड़ा होती, तुझे गोद में भरकर, अँकवार में बाँधकर रोती थी मैं। अब तो तेरी देह की गंध ही बदल गई है। (बिरसा को सूँघती है)...तू तो बिलकुल बदल गया रे।

बिरसा  :  (करमी को सुलाता है) सो जा माँ, सो जा। आँखें मूँद ले। देख, मैं तेरे माथे पर हाथ फेर रहा हूँ।

करमी  :  हाँ रे, फेर। आज तो सचमुच मुझे नींद आ जाएगी।

बिरसा  :   बहुत मेहनत करती है। क्यों इतना खटती है?

करमी  :  भगवान की माँ हूँ रे।...धरती आबा के घर की देख-रेख करती हूँ। इतने सारे लोगों को भात-पानी देना...घर को लीप-पोतकर साफ-सुथरा रखना।...बहुत काम है रे...मेरे आबा...बहुत...का...म...

 

[करमी सो जाती है। नेपथ्य से पुकारने की आवाज़ आती है।]

 

नेपथ्य-स्वर : आबा!...आबा!...

बिरसा  :  कौन है? धीरे बोल ।

धानी :  मैं आबा...मैं।...धानी बूढ़ा।

बिरसा :  धीरे बोल। माँ सो रही है।

 

​[बिरसा घर से बाहर निकलने का नाट्य करता है। करमी के ऊपर से प्रकाश सिमटता है। मंच के अग्रभाग में प्रकाश। बिरसा के सामने धानी बूढ़ा, माझिया मुंडा, बुधू मुंडा, परान आदि खड़े हैं।]

 

परान  :  सरदार लोग तुम्हें फँसा रहे हैं। वे लोग अपनी लड़ाई सारे मुंडाओं और तुम पर थोपना चाहते हैं आबा।

माझिया : वे तो अर्जीदार हैं। वे लोग तो सरकार के कानून को मानते हैं और सिरफ़ जमींदारों के खिलाफ लड़ रहे हैं। वे मुंडा सरदार हैं, मुंडा नहीं।

बिरसा  :  मैं सब समझता हूँ। वे लोग ज़मींदारी कषनून के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं और इसमें उनका हित है, तो सब मुंडाओं का भी हित है। अब उन्होंने मिशनवालों का सहारा भी छोड़ दिया है। वे अब समझ गए हैं कि सरकार और मिशन दोनों मुंडाओं का हित नहीं चाहते।

बुधू  :  सरदार बीर सिंह मुंडा चाहता है कि आबा की लड़ाई शुरू हो और वह उसमें शामिल हो।

धानी  :  सरदार बीर सिंह मुंडा ने पहले भी लड़ाई लड़ी है। उसका परदादा कोलों के साथ मिलकर लड़ा था। कई गाँवों की मिल्कियत थी उसके पास। लड़ाई में रहने के चलते उसकी मिल्कियत सरकार ने छीन ली,...घर-दुआर तक अपना नहीं रहा।

बिरसा  :  परान!

परान :  हाँ आबा।...बोलो भगवान।  

बिरसा :  कई सरदार आए थे। माँगा मुंडा, जन मुंडा, मार्टिन मुंडा और भी दूसरे कई सरदार थे। वे सब हमारे साथ मिलकर लड़ना चाहते हैं।

माझिया :  वे सब हमारे आबा को खिलौना बनाना चाहते हैं।

धानी  :  हमारे आबा को कोई खिलौना नहीं बना सकता। हमारे धरती आबा को कोई धोखा नहीं दे सकता। वे हमारे आबा के पीछे-पीछे चलने को तैयार हैं।

माझिया :  हम तुम्हारे साथ हैं। तुम आबा हो हमारे।

बिरसा :  सुनो, बनिया, महाजन, दिकुओं और ज़मींदारों पर नज़र रखो।...ये सब मुंडाओं के बैरी हैं। इन लोगों को अपनी सभा-संगत में मत आने दो। मैं आज से किसी ज़मींदार, महाजन, बनिया और दिकू से बात नहीं करूँगा।

परान :  ठीक कहते हो भगवान।

बिरसा :  गिडियन, इलायाज़ार, प्रभुदयाल, ये सारे सरदार भी आए थे मेरे पास।

धानी : हाँ आबा, तुम्हारे पास से लौटते हुए वे लोग रास्ते के सारे गाँवों के मुंडाओं से मिलते हुए गए।

माझिया : कह रहे थे, बिरसा भगवान राज का दावा करेगा। मुंडाओं का राज होगा और हमारा धरती आबा उसका मालिक बनेगा...राजा बनेगा। जब हमारा राज होगा, सारे अँगरेज,़ साहब और दिकू बाहर भगा दिए जाएँगे।

परान : दिकू बहुत डरे हुए हैं आबा।

धानी : चाईबासा और राँची में बहुत सारे पुलिसवालों को सरकार ने जमा किया है। साहब और मिशनवाले हमारे आबा को ठग और धोखेबाज कहते फिर रहे हैं।

बुधू  :  वे कहते हैं कि हमारा भगवान नकली है और मुंडाओं को भरमा रहा है, पर हम जानते हैं कि साहब और सरकार सब डरे हुए हैं। अब हमें किसी से डर नहीं लगता आबा। साहब-सरकार, सूखा-अकाल, बीमारी-महामारी किसी से डर नहीं लगता।

धानी :  इस बार के अकाल में एक भी मुंडा मिशन में मदद और भीख माँगने नहीं गया। वे राह जोहते रह गए।

बिरसा : तुम लोगों ने देख लिया कि मैं हर मुसीबत में तुम्हारे साथ हूँ।

बुधू  :  हाँ मेरे आबा, तुम ही हमारे भगवान हो।

माझिया :  तुम हमारा भरोसा हो। अब हम सिरफ तुम्हें पूजते हैं आबा।

परान :  हम तुम्हारे हुकुम की राह देख रहे हैं।

बिरसा :  सुनो, अब सुनो मेरी बात। सारे मुंडा गरदन तक मुसीबत में धँसे हुए हैं। दिकुओं ने मुंडाओं को उधार-करजा-जेहल-कचहरी के चक्कर में फाँसकर रखा है। अब इस हर फाँस को अपने गले से निकालकर बाहर फेंकना होगा। अब हम किसी को कोई लगान नहीं देंगे...कोई सूद नहीं भरेंगे...खेती गिरवी रखकर कोई मुंडा अनाज उधार नहीं लेगा। उधार-करज एकदम बन्द। कुली बनने के लिए जंगल छोड़कर कोई चायबगान नहीं जाएगा। अब मुंडा कोयला के खानों में घुसकर कोयला निकालते हुए जान नहीं देगा। सारे बाहरी लोगों को, अँगरेज़ हांे या दिकू-महाजन, हम जंगल से भगा देंगे। सारे जंगल ले लेंगे। ये जंगल हमारे हैं।

माझिया :  कब से ऐसा करना है भगवान?

बिरसा :  बताऊँगा...। कब लड़ाई शुरू होगी जल्दी ही बताऊँगा।...गाँव-गाँव में तीर पठा दो। बनाओ,...जितने हो सकें तीर बनाओ, और हर गाँव में भेज दो। पहले हथियार जमा करो, फिर उसके बाद मैं हर गाँव को सनेसा भेजूँगा। बता दो लोगों को कि जब पत्ता भेजूँ, तो लोग समझें कि मैंने धरम के काम के लिए बुलाया है और जब तीर भेजूँ, तो लोग समझ जाएँ कि लड़ाई के लिए बुलावा है।

धानी : भेजेंगे...भेजेंगे...भेजेंगे आबा। तीर भेजेंगे आबा।

 

[वह अति प्रसन्न मुद्रा में बाहर निकलता है और तुरंत हाथों में ढेर सारे तीर लिये बाहर आता है।]

                                         लो...लो तीर, ले लो।...विषवाले तीर।...कुचला के विषवाले तीर। मैंने बड़ी जतन से इन्हें तैयार किया है। जंगल-जंगल घूमकर कुचला के फल चुनकर विष निकाला है और इन तीरों की नोक पर लगाया है। मैं जानता था कि एक न एक दिन हमारे आबा को तीरों की ज़रूरत होगी।...वह तीरों के लिए तैयार होगा।...ले जाओ। लो...।

 

[धीरे-धीरे प्रकाश क्षीण होता जाता है। मंच पर सिर्फ़ धानी है। विंग्स से विभिन्न दिशाओं से लोग आते हैं और तीर लेकर वापस लौटते हैं। धानी मंच के अग्रभाग में आता है। प्रकाश सिफषर्् उस पर केन्द्रित है। उसकी भंगिमा बदल चुकी है। वह युवा अभिनेता की भूमिका में है।]

                                         धानी बूढ़े की बरसों की साध पूरी हुई। तीर अभी बँट ही रहे थे...सारे गाँवों में पहुँचे भी नहीं थे कि वे सब आ गए। वे, जिनका सिंहासन हिल रहा था...वे, जिनकी रातों की नींद उड़ चुकी थी...वे, जिनकी इच्छाओं के दास बनकर अब तक जीते रहे थे मुंडा। वे हाथियों पर सवार होकर आए।...वे अपने साथ बंदूकों-हथियारों से लैस सिपाहियों की कुमुक लेकर आए। वे राह दिखाने के लिए लुटेरे, बर्बर, कायर, दलाल और दोगले ज़मींदारों को अपने साथ लिये आए।...वे जब आए, रात हो चुकी थी। आसमान में मेघ गरज रहे थे। वर्षा से भीगे जंगल में अँधेरा पसरा था। पेड़-पहाड़ और पशु-पंछी सब विश्रांति की चादर ओढ़े सोए हुए थे। सिर्फ धरती आबा जगे थे। अपनी कोठरी में बिछावन पर लेटे-लेटे धरती आबा मुंडाओं के जीवन में आनेवाले दिनों के बारे में सोच रहे थे कि उन्होंने घेरा डाल दिया। पुलिस के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट जी.आर.के. मेयर्स के

हाथों कुमुक की कमान थी। आबा के ख़िलाफ़ सरकार को रिपोर्ट भेजनेवाला ऐंग्लिकन मिशन का रेवरेंड लस्टी भी साथ था। रास्ता दिखा रहा था अँगरेज़ों का दलाल ज़मींदार जगमोहन सिंह।

 

[मंच पर बिरसा की गिरफ़्तारी का छाया-दृश्य।]

                                         जंगल के दूर-दराज़ के गाँवों में तीर बाँटते लड़ाकू मुंडा लौटें, इसके पहले ही वे आबा को लेकर चले गए।

 

[प्रकाश पुनः धानी पर केन्द्रित होता है]

                                         वे आबा को लेकर चले गए, और यह बात जंगल में आग की तरह फैली। वे डरे हुए थे कि यह आग कहीं उन्हें और उनके राज-पाट को जलाकर राख न कर दे!...और आबा थे कि शांत और गहन-गम्भीर। उन्होंने आबा पर मुकष्दमा चलाया।

 

[धानी पर से प्रकाश सिमटता है।

मंच के दूसरे भाग में प्रकाश होता है। कर्नल गौर्डन बैठा है। सामने बिरसा खड़ा है।]

 

कर्नल गौर्डन :  जवाब दो।...बोलो?

बिरसा :  यह ज़रूरी नहीं कि मैं तुम्हारी या सरकार की हर बात का जवाब दूँ।

कर्नल गौर्डन : तुम मुंडाओं को भड़काते हो।

बिरसा  :  मैंने कभी किसी को नहीं भड़काया। मैंने हरदम जो सच है वही कहा है।

कर्नल गौर्डन : तुम मुंडाओं से क्या बातें करते हो?

बिरसा  :  मैं उन्हें धर्म की बातें बताता हूँ। मैं उन्हें बताता हूँ कि धर्म का झूठ क्या है और सच क्या?

कर्नल गौर्डन : सारे के सारे मुंडा क्यों आते हैं तुम्हारे पास?

बिरसा :  मुझे नहीं मालूम। यह उनसे ही पूछो। जब मुंडा मिशनवालों के पास जाते थे तो तुमने उनसे क्यों नहीं पूछा?

कर्नल गौर्डन :  सवाल मत पूछो। जवाब दो। मुंडाओं ने लगान देना क्यों बंद कर दिया?

बिरसा :  मुझे नहीं मालूम। जो लगान नहीं देते, उनसे सवाल करो।

कर्नल गौर्डन :  तुमने उनकी खेती बंद करवा दी है।

बिरसा :  नहीं।    

कर्नल गौर्डन :  फिर वे खेती क्यों नहीं करते?

बिरसा : यह भी वे ही बताएँगे।

कर्नल गौर्डन : तुम सरकार के दुश्मन हो। तुम मुंडाओं को राज के ख़िलाफ़ उकसाते हो।

बिरसा  :  मैंने कहा, मैं उन्हें सिरफ धर्म की बातें बताता हूँ।

कर्नल गौर्डन :  तुम होते कौन हो उनको धर्म की बातें बतानेवाले?

बिरसा :  मैं भगवान हूँ।...मुंडाओं का भगवान।...मैं इस धरती का आबा हूँ।

कर्नल गौर्डन :  तुम झूठ बोल रहे हो। तुम्हें अच्छी तरह से मालूम है कि तुम भगवान नहीं हो। यह सच नहीं है।

बिरसा :  तो तुम मुंडाओं को सच क्यों नहीं बता देते! अगर तुम सच्चे हो और मुंडा तुम्हारी बात पर भरोसा करने को तैयार हों, तो जाकर उन्हें बता दो कि मैं भगवान नहीं।

कर्नल गौर्डन :  तुम भगवान नहीं एक धोखेबाज़ हो। फरेबी।

बिरसा :  मैं भगवान हूँ।...उनकी धरती का आबा।

कर्नल गौर्डन :  भगवान होते तो पुलिस के हाथों पकड़े जाते? कष्ैद होते?

बिरसा  :  कैदी हो जाने से भी भगवान भगवान ही रहता है।

कर्नल गौर्डन :  नहीं।

बिरसा  :  तुम्हें न तो इतिहास मालूम है और न ही धर्म के बारे में। हमारा एक भगवान तो जेहल में ही पैदा हुआ था। वह भी काला था, हमारी तरह, पर वह दिकुओं का...ज़मींदारों का...आनंद पांडे...सुखनाथ पांडे... जगमोहन सिंह का भगवान है। और तुम्हें अपना यीशु याद नहीं है? भूल गए तुम कि यीशु को कष्ैद हुई थी?...मौत की सज़ा मिली थी?

कर्नल गौर्डन :  शट-अप! मूर्ख!...पागल!...धोखेबाज़!

बिरसा  :  यह मेरी बातों का जवाब नहीं है। जवाब दो।

कर्नल गौर्डन :  मैं तुम्हारे सवालों का जवाब देने के लिए लाचार नहीं हँू। मेरे सवालों का तुम जवाब दोगे। समझे?

बिरसा  :  मैं भी तुम्हारे सवालों का जवाब देने के लिए लाचार नहीं हूँ।

कर्नल गौर्डन :  तुम अंग्रेज़ी जानते हो?

बिरसा  :  तुम्हारे फाइल में लिखा होगा। नहीं लिखा?

कर्नल गौर्डन :  लिखा है कि मामूली जानते हो।

बिरसा  :  ठीक ही लिखा होगा।

कर्नल गौर्डन :  तुम पर मुकष्दमा चलेगा।...हम कोर्ट में साबित कर देंगे कि तुम भगवान नहीं, धोखेबाज़ हो। तुम्हें वकील चाहिए?

बिरसा  :  नहीं। तुम्हारी दया नहीं चाहिए मुझे।...वकील कुछ नहीं कर पाएगा। मैं जानता हूँ, वकील हो या न हो, मुंडाओं को जेहल मिलती ही है। जब जेहल जाना ही है, तो वकील क्यों!

 

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