फाइटर की डायरी
राजकमल ब्लॉग के इस अंक में पढ़ें, मैत्रेयी पुष्पा के रिपोर्ताज 'फाइटर की डायरी' का एक अंश।

‘तू अपने घर से क्या लाई है? तेरे भाई ने कहा था, दो महीने बाद मोटर साइकिल देगा, हमारे लड़के ने उसका भरोसा किया यही गलती की। हमारा लड़का गाँव का आवारा या निठल्ला नहीं, जो साइकिल पर घूमता फिरे। वह वर्दीवाला जवान है, उसकी इज्जत में तेरे भाई ने क्या दिया? धोखा! न देता मोटर साइकिल, नकदी पकड़ा देता। भरपाई हो जाती। पर बेईमान कैसे होते हैं।’

हिना जो भाई की बातें हरदम काटने को तैयार रहती थी, अम्मी के सामने आज उसी भाई पर तानों की बौछारें सुनकर रोने लगी। उन्हें बेईमान धोखेबाज किस हक से कहा जाता है? ‘अस्सी हजार का मेहर बँधवाया नासपीटे ने और यह घोड़ी हमारे घर में ठेल दी। यह अस्सी हजार के मेहर लायक थी? रंग की गोरी है और कदकाठी की अच्छी मानी जा रही है तो क्या हमें लूट लेगा इसका भाई? ज्यादा से ज्यादा लेने का हीला कर लिया और देने के नाम पर अँगूठा!’

बातों पर बातें, तानों पर ताने! हिना किस बात का जवाब देगी। जवाब देना तो यूँ भी मना है बहू के लिए। अल्लाह, कान क्यों दिए लड़कियों को। वे कुछ सुनें न तभी अच्छा। होश सँभालते ही ऐसी-ऐसी बातें जो बिना दाँतों के ही काटने लगती हैं। अब तो बातें बसूले की तरह उसकी चमड़ी छील रही हैं। रोज-रोज का यही रवैया...

तीन महीने बाद आया खाविन्द। सास ननद की तीन महीने की हिना-रिपोर्ट तैयार की हुई थी, उसके सामने पेश कर दी, उससे पहले जब तक कि वह अपनी बीवी के पास जाए। परिवारों में यह चलन प्रचलित है, ऐसे ही जैसे आॅफिसों में अफसरों के सामने कामगारों की रिपोर्ट रखी जाती है।

उस रिपोर्ट में काम की लापरवाह के साथ यह भी शामिल था कि हिना शौहर की गैरहाजिरी में देवर से ताल्लुकात बढ़ा रही है। पति के गुस्से में धधकता शोला रखने की बुद्धिमानी पर हिना चकित थी। क्या था उस दिन, जब ननद भड़की थी। सास ने हिना के मुँह पर तमाचा मारा था, कहा थाद- बेशरम कुतिया!

याद आया, हिना और देवर भैंस को पानी पिला रहे थे। वह कुएँ से पानी खींच रही थी, नाँद भर रही थी। देवर भैंस हाँककर कुएँ तक लाया था। उसी दौरान हँसकर बोला- भाभी एक बात बताऊँ? हँसोगी तो नहीं?

‘नहीं बिलाल, नहीं हँसूँगी। हँसने की बात होगी तो कैसे रोकूँगी हँसी?’

‘अच्छा चलो हँस लेना। मगर किसी से कहोगी तो नहीं?’

‘हँसी की बात किसी से क्यों नहीं कही जाए? दूसरा भी हँसेगा कितना अच्छा लगेगा। लगेगा न?’

‘वह भी मेरी हँसी उड़ाएगा। चलो, मैं नहीं बताता।’

‘मत बताओ, पर तुम बिना बताए रहोगे नहीं, यह शर्तिया बात है।’

‘नहीं बताता।’

‘मत बताओ,’ कहकर हिना पानी खींचने लगी। जब भैंस ने पानी पी लिया तो एक बाल्टी पानी खींचकर उसने भैंस की पीठ पर डाल दिया। ठंडी हो जाए भैंस। गर्मी बहुत है।

‘भाभी, कोई मुझे चिट्ठी लिखती है।’ वह यकायक बोला।

‘कौन!’ हिना ने खूब मुस्कुराकर पूछा।

‘एक है।’

‘जरूर होगी।’

‘तुमसे मिलना चाहती है। तुम पढ़ोगी उसकी चिट्ठी?’

‘अरे चिट्ठी तुमको लिखी और पढूँ मैं! मुझे दोष लगेगा।’

‘यही, ऐसे बातें हुई थीं बिलाल से, इसमें मैंने ताल्लुकात क्या बना लिए? वैसे भी हममें देवर-भाभी का रिश्ता है। एक वही है, जो मेरे काम में हाथ बँटाता है। क्या इसलिए ही मुझ पर शक किया गया है?’ हिना ने सोचा तो हाथ की रस्सी ढीली हो गई। बाल्टी कुएँ में गिर गई।

शौहर को इन बातों से क्या मतलब? क्या हुआ, क्या नहीं हुआ, की जाँच-पड़ताल में नहीं जाया करते पति। उन्हें तो एक जुमला हाथ लग गया- इसके ताल्लुकात बढ़ रहे हैं देवर से। इसी जुमले के कोड़े से लहूलुहान करने लगा शौहर। ‘बदचलन औरत’ नाम देकर गालियाँ दे सकता है कोई। इन गालियों को सिर झुकाकर सुनना है। सफाई में कुछ कहकर मर्द को यकीन नहीं दिला सकती औरत, यह हिना ने अपने तजुरबे से जाना। पावों पर सजदा किया तो शौहर को और भी गुनाहगार लगी, जैसे वह अपने किए की माफी माँग रही हो और जुर्म कबूल कर लिया हो।

पाँव पकड़ने के बाद उसने हिना को बाँह से खींचा और आँगन में लाकर इतना मारा कि सहना मुश्किल हो गया। जब हिना गिड़गिड़ाई- ‘खुदा के लिए मुझे छोड़ दो।’ उन्होंने ऐसे छोड़ा कि नल के ऊपर गिरी। नल से सिर टकराया, सिर फट गया। खून से नहा गई वह। सलवार, कमीज सुर्ख जोड़े सा खून से रँग गया।

अम्मी ने कहा था, वहाँ जाकर पढ़ना-लिखना। कुछ भी करना। मगर यहाँ लोग उसके साथ कुछ भी कर रहे हैं, वह अकेली है, खड़ी रहे या गिर जाए। होश में रहे या होश खो दे। इन हालातों में हिना की क्या हिम्मत कि वह कहे- मुझे आगे पढ़ना है।

‘शादी से मुझे क्या मिला?’ हिना ने सोचा और देवर की मदद से भाई को फोन कर दिया, ‘आसिफ भइया, अब मैं कहाँ जाऊँ। जल्दी आओ। बहुत जल्दी नहीं तो ये लोग मुझे मार डालेंगे।’

भइया ने समझाया- ‘तू गुस्से में है हिना। कहना मानेगी तो क्यों मारेंगे? जिद नहीं किया करते मुनियाँ। वे कुछ भी कहते रहें, जवाब मत देना। तेरी जवाब देनेवाली आदत ही फजीहत करा रही है और हाँ, कह देना, मोटर साइकिल का इन्तजाम कर रहा हूँ।’

‘मेरा मन फट गया है।’ हिना ने आखिरी बात यही सोची।

हर बार के वाकये क्या बताए जाएँ, जब किसी पर एक बार हाथ उठ जाता है तो फिर उससे छोटी से छोटी बात पर भी मारपीट से ही निपटा जाता है। बस इसी ढर्रे पर जूता-चप्पल या चिमटा-बेलन, खुरपी जो भी मिले, हिना पर दे मारो।

मार ही नहीं प्यार भी मिलता था इस घर में, शौहर बहुत प्यार करते थे। रात के समय बिस्तर पर बीवी का अंग-अंग चूमते काटते सहलाते और उसे सीने से लगाते। पाँवों को चूमते। नाचीज औरत में आखिर क्या ऐसा है कि शौहर कदमों से माथे तक चुम्बन में नहला देता है, यह पूछने बताने की बात नहीं है, सब जानते हैं, यह अपनी जरूरत और मौज की बात है। क्या हिना इसलिए ही रतिक्रिया में रुचि नहीं दिखाती थी? सोचती भी थी, वे कौन होती हैं, जो इतनी क्रूरताएँ सहकर भी शौहर को पूजती हैं। उसकी उम्र की सलामती माँगती हैं।

हिना बार-बार भइया को फोन किए जा रही थी और कह रही थी, ‘मैं भाग जाऊँगी यहाँ से। देख लेना भाग जाऊँगी।’

यह तीर निशाने पर लगा। बहू भागे तो लड़की के माँ-बाप की बदनामी ज्यादा होती है। भइया-भतीजे मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहते। हिना ने ऐसा गलत कदम उठा लिया तो घर की इज्जत चली जाएगी।

हिना समझ चुकी थी, यहाँ पर आदमी को बहन-बेटी से ज्यादा इज्जत प्यारी होती है और इज्जत लड़की के हाथ ही होती है, उसे डुबो दे या बचा ले।

भइया अकेले नहीं आए। गाँव के कुछ आदमी साथ लाए। सवाल-जवाब होने लगे-

‘हिना की गलती?’

‘बदसलूकी करती है।’

‘कैसी बदसलूकी?’

‘यही कि आप लोगों को फोन कर दिया। घर की बात दूसरे गाँव तक पहुँचा दी। ऐसी होती हैं भले घर की बीवियाँ? इसके अलावा किसी की बात न मानना। जवान लड़की है, काम से जी क्यों चुराती हैं? जवान औरत को गैर मर्द से क्या हँसना-बोलना?’

हँसने-बोलने पर सजा, काम से थक जाने पर दंड, गैर मर्द के सामने जाने पर तोहमत...इसमें बेजा क्या है? ठीक ही तो कहते हैं ससुरालवाले। ऐसे कामों से बचकर रहो बेटी। अपने मरहूम बाप और आसिफ, सादिक जैसे भाइयों की इज्जत पर कीचड़ मत उछालो।

गाँव के लोग भाई के साथ आए और चले गए। समझा-बुझाकर बेफिक्र हुए कि लड़ाई-झगड़ा खत्म हो गया। भाई ने चैन की साँस ली।

गाँव जाकर अम्मी को समझा दिया होगा।

शौहर भी अपनी नौकरी पर चले गए।

अब कलह का मुद्दा यह था कि इस कलमुँही बहू ने गाँव से आदमी बुलाकर उनकी बदनामी करा दी। ससुराल का कायदा नहीं रखा। छह-सात महीने इसी बात का ताना देकर कलहखाना चलाया। हिना को लगता कलह करने का मकसद क्या है, शायद यही कि वह इन सबसे दबी रहे। दबी-घुटी औरत के सामने अपनी माँगें रखें तो वह कहाँ तक नहीं मानेगी?

दो ननदों की शादी साथ-साथ हुई। इस मौके पर हिना से कहा गया कि अब कुछ पैसे चाहिए, मोटर साइकिल का पैसा अपनी माँ से लेकर आ।

हिना गई और लौट आई खाली हाथ।

ननदों की शादी के बाद सुकून हो गया, हिना सोच रही थी, लेकिन घर से कलह जाती नहीं। शौहर शादी में आए थे। शराब के आदी हो चुके थे। रात के प्यार में उन्होंने जिद की कि हिना को भी पीना है। कितना ही मना किया, मगर उसे कसम देकर पिला दी। यह तो वही जानती है कि उसने कसम के कारण पी या डर के कारण। शराबी का क्या भरोसा जुनून पर आए, गर्दन दबा दे। वह पीती रही दो-चार दिन, मगर जल्दी ही बीमार हो गई। एक हफ्ता बीमारी में निकल गया। तब सादिक भइया को बुलाया गया और कहा, यहाँ से इसे ले जाओ। तुम्हारी बहन दारूबाज है। रोज शराब की जिद करती है। यह सास ननद ने नहीं, हिना के शौहर ने कहा। और कहा, ‘दिन-रात लड़ती-झगड़ती है।’

हिना गुस्से से लाल हो गई। लाज-लिहाज का घूँघट फेंका एक तरफ और खुली आवाज में बोली, ‘मैं नहीं रहूँगी तेरे साथ। अपने घर चली जाऊँगी। समझता क्या है?’

शौहर उठा और लात-घूँसे बरसाने लगा, ‘जाएगी! जाएगी? बोल फिर से, जाएगी?’

सँभलती हुई हिना खड़ी हो गई। बाल बिखर गए थे। कपड़े अस्त-व्यस्त थे। भाई बीच-बचाव कर रहा था।

‘हाँ जाऊँगी। जाऊँगी। तू बेशक दूसरा ब्याह कर ले।’

पता नहीं इस बात को सुनकर वह क्यों शान्त हो गया। छोटा भाई रुआँसा-सा बहन की ओर देख नहीं पा रहा था।

हिना ने कहा, ‘भइया, तुम यहाँ कुछ नहीं कर सकते। यहाँ से जाओ। जाओ तुम। यहाँ अब मत आना।’ कहते हुए उसकी दाँती भिचती थी और होंठ काँप रहे थे। इतनी सुन्दर हिना मुँह पर बाल छितराए भयानक लगने लगी।

 

यह रात कैसी रात!

हिना को डंडे से पीटा गया। रीढ़ की हड्डी पर चोटें मारी। ननदों और सास ने हिना को पकड़ लिया, पति ने जी भरकर मारा। पीठ पर खरोचें बनीं या खूनी निशान? जलन भरी टीसें ऐसी थीं कि तड़पना ही साँस लेने देता। बैड पर लिटाकर पीटता पति और उसकी सहायता करती औरतें...हिना की शादी का हासिल है। क्या वह गलत सोच रही थी? या चले आ रहे रीति-रिवाजों के खिलाफ सोचकर औरत बनने से इनकार कर रही थी।

‘मुझे यहाँ से भागना होगा।’

हिना भागती तब तक रात हो गई। पीठ में असहनीय दर्द था। पति आया, उसके हाथों में पानी का गिलास और एक गोली थी। गोली जहर की होती तो भी हिना खा लेती, यही सोचकर गोली निगल ली।

कमरे का दरवाजा बन्द था। पति बहुत प्यार करने के मूड में था। अपनी ताकत दिखाते हुए पिटी-कुचली हिना को वश में करना था। यदि वह कपड़े नहीं उतारने देगी तो डंडा, हंटर से पिटाई होगी। सम्भोग करना है, हर हालत में करना है। चीखने-चिल्लाने और गुहार करने का कोई मतलब नहीं। इसी बीच ‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ’ वाली मीठी-सी आवाज घावों पर नमक छिड़कने जैसा असर करती। वह साथ सोने की जिद पर उतारू हो गया।

और बीवी की दोनों टाँगों को प्यार भरे आतंक के बीच अलग-अलग खाट के पायों से बाँध दिया, जैसे कह रहा हो- तुम्हारी देह मेरी है। इसके किसी हिस्से पर तुम्हारा हक नहीं क्योंकि शादी के बाद पूरी की पूरी औरत शौहर की हो जाती है। अब वह उसके साथ चाहे जैसा व्यवहार करे। बँधी टाँगोंवाली बीवी के साथ उसने जमकर शारीरिक सम्बन्ध बनाया। आनन्द लेता हुआ कहता रहा, आइन्दा तुम इसी तरह टाँगें चौड़ी रखोगी। कोई कपड़ा नहीं पहनोगी। आँख से आँख मिलाकर नहीं देखोगी। हम ड्यूटी से आते हैं, आज्ञा पालन करनी होगी।

हिना जिन्दा थी या मुर्दा? बलात्कार कैसे होते हैं? ऐसे ही न? अगर विरोध किया जाए तो धुनाई होगी। शौहर के ऐसे मनोरंजन पर किसी को क्या ऐतराज? इस पर कौन-सी धारा लगनी चाहिए? यह पुलिस का जवान...क्या समझेगा किसी औरत का दर्द? बीवी का मुखौटा पहने हुए हिना नाम की बीस वर्षीया औरत, मानो वह इनसान नहीं, कोई चीज नहीं, जिसको मनमाने ढंग से नोंचा-बकोटा, काटा-चबाया, दबाया या मसला जा सकता है।

जिन्दगी निरंकुश पति सत्ता के हवाले होकर औरत का शरीर धारण करने की सजा भुगत रही है, वह बेजान मांस के लोंदे में तब्दील होती जा रही है। इसके सिवा हिना कुछ न सोच पाती।

मैत्रेयी पुष्पा की पुस्तकें यहाँ उपलब्ध हैं।