रात का रिपोर्टर सम्भवत: आपातकाल के दिनों को लेकर लिखा गया हिन्दी में पहला उपन्यास है, और निर्मल जी के कथा-लेखन में नए मोड़ का सूचक भी।
उपन्यास का कथा-नायक रिशी यहाँ एक ऐसे पत्रकार के रूप में सामने आता है, जिसका आन्तरिक संकट उसके बाह्य सामाजिक यथार्थ से उपजा है... हालात ने उसे जैसे अस्वस्थ और शंकालु बना दिया है। उसके चारों ओर अँधेरे का साम्राज्य है और उसका अन्तर्जगत भी उसकी ज़द में है। ऐसे में यदि वह अपने इर्द-गिर्द के अँधेरे को जाँचने-परखने की कोशिश करता है, तो स्वयं भी उसकी कसौटी पर होता है।
वस्तुतः यह एक ऐसी कथाकृति है, जो एक बुद्धिजीवी की चेतना पर पड़ने वाले युगीन दबावों को रेखांकित करती है और उन्हें उसके व्यवहार में घटित होते हुए दिखाती है। इससे गुज़रते हुए हम जिस माहौल से गुज़रते हैं, वह चाहे हमारे अनुभव से बाहर रहा हो या हम उससे बाहर रहे हों, लेकिन वह हमारी दुनिया की आज़ादी के बुनियादी सवालों से परे नहीं है।
Language | Hindi |
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Format | Paper Back |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 192p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20 X 12.5 X 1 |