इतिहास के भीतर जो घटनाएँ होती है, उनके पीछे कोई बहुत ही (अति पवित्र) सर्वमान्य नियम हो, ऐसा कोई ज़रूरी नही है। यह बोध जब आपको हो जाए तो यह ज़रूरी हो जाता है हम सृष्टि के अर्थ को ईश्वर या इतिहास में न देखकर उसे अपने नैतिक अर्थ में पाएँ, और मनुष्य ख़ुद इस नैतिकता का निर्माण करे। इस पुस्तक में शामिल एक साक्षात्कार में अस्तित्ववाद को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए निर्मल वर्मा आगे कहते हैं कि उस दर्शन से जो बहुमूल्य चीज़ मैंने अपने लिए पाई वह यह कि ईश्वर और इतिहास से मुक्त होकर, यह आदमी पर निर्भर है कि वह अर्थ और नैतिकता को जन्म दे; क्या सही है, क्या ग़लत है, इसे तय करने की ज़िम्मेदारी वह ख़ुद उठाए।
मार्क्सवाद से शुरु हुई अपनी वैचारिक यात्रा में अस्तित्ववाद के प्रति अपने आकर्षण को ज़रूरी क़दम मानते हुए वे इन साक्षात्कारों में अपने लेखक, अपने मनुष्य और अपने नागरिक के गहरे दायित्व बोध को बार-बार रेखांकित करते हैं। नई कहानी आन्दोलन में अपनी भूमिका को लेकर किए गए प्रश्न के जवाब में वे कहते हैं कि मेरी कोशिश सिर्फ़ यही थी कि मैं अपने अनुभवों को कितने प्रामाणिक स्तर पर व्यक्त कर पा रहा हूँ।
अपनी रचना प्रक्रिया और लेखकीय नैतिकता के अलावा इन साक्षात्कारों में वे अपने विदेश प्रवास, वहाँ के निर्णायक अनुभवों, साहित्य, कला, विचारधारा और अन्य अनेक ऐसे मुद्दों पर अपनी बात कहते हैं जो आज भी प्रासंगिक और विचारोत्तेजक हैं। इस जिल्द में उनके 1998 से पहले दिए गए साक्षात्कारों को संकलित किया गया है। इसके बाद के साक्षात्कार ‘संसार में निर्मल वर्मा’ के ‘उत्तरार्द्ध’ खंड में संकलित हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Gagan Gill |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 200 |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |
Author: Nirmal Verma
निर्मल वर्मा
निर्मल वर्मा हिन्दी कथा-साहित्य के अन्यतम हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म 3 अप्रैल, 1929 को शिमला में हुआ। वे अपने मौलिक लेखन के लिए जितने लोकप्रिय रहे, उतने ही विश्व-साहित्य के अपने अनुवादों के लिए। वैचारिक चिन्तन और हस्तक्षेप के लिए भी समादृत। लेखन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता और पद्मभूषण सहित अनेक पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले। भारत सरकार द्वारा 2005 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किये गये। उसी वर्ष 25 अक्तूबर को नई दिल्ली में देहावसान।
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