Bharat Aur Europe : Pratishruti Ke Kshetra

Author: Nirmal Verma
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Bharat Aur Europe : Pratishruti Ke Kshetra
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भारत और यूरोप दो ध्रुवान्तों का नाम है, एक-दूसरे से जुड़कर भी दो अलग-अलग वास्तविकताएँ। खींचकर या सिकोड़कर उन्हें मिलाया नहीं जा सकता। लेखन के प्रति ईमानदार रचनाकार के लिए इस वास्तविकता को ध्यान में रखना आवश्यक है। इसके बिना न सिर्फ़ युग-यथार्थ की पहचान असम्भव हो जाएगी बल्कि उसे उसकी विविधता के साथ रचना में अभिव्यक्त भी नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि कोई भी लेखक सत्य की एकांगिता के सहारे यथार्थ का मुक्त द्रष्टा नहीं हो सकता।

‘भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र’ निर्मल जी के अपरम्परित सोच और निष्कर्षों को अपेक्षाकृत विकसित रूप में निरूपित करती है। भारत और यूरोप की अपनी-अपनी चिन्तन-परम्परा के मूल आधारों को व्याख्यायित करते हुए वे यहाँ उस रचनात्मकता की आलोचना करते हैं, जो अपने स्वाभाविक आधारों की उपेक्षा करती है। उनके अनुसार कला और साहित्य की प्रासंगिकता का सवाल अपनी सांस्कृतिक परम्परा से कटकर हल नहीं किया जा सकता। इस सन्दर्भ में उनके ही शब्दों को उद्धृत किया जाए तो “भारतीय परम्परा में कला और दुनिया के यथार्थ के बीच का सम्बन्ध हमेशा से ही कुछ पवित्र माना जाता रहा है। उसमें एक तरह की आवेगपूर्ण मांसलता रही है और मांसलता ऐन्द्रिक होने के बावजूद एक प्रकार की ईश्वरीय दिव्यता में आलोकित होती है...”

इस पुस्तक में शामिल ‘भारतीय संस्कृति और राष्ट्र’, ‘भारतीय जीवन की निराशाएँ’, ‘क्या साहित्य समाज से कट चुका है?’ और ‘आलोचना के भटकाव’ जैसे प्रश्नाकुल निबन्ध हमारी आज की चिन्ताओं तक आते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 13 X 2
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Nirmal Verma

Author: Nirmal Verma

निर्मल वर्मा

निर्मल वर्मा हिन्दी कथा-साहित्य के अन्यतम हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म 3 अप्रैल, 1929 को शिमला में हुआ। वे अपने मौलिक लेखन के लिए जितने लोकप्रिय रहे, उतने ही विश्व-साहित्य के अपने अनुवादों के लिए। वैचारिक चिन्तन और हस्तक्षेप के लिए भी समादृत। लेखन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता और पद्मभूषण सहित अनेक पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले। भारत सरकार द्वारा 2005 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किये गये। उसी वर्ष 25 अक्तूबर को नई दिल्ली में देहावसान। 

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