Shatabdi Ke Dhalte Varshon Mein

Author: Nirmal Verma
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Shatabdi Ke Dhalte Varshon Mein
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निबन्ध को निर्मल वर्मा ऐसी विधा मानते हैं जिसका मिज़ाज भले थोड़ा मनमौजी हो लेकिन उसमें विचारों और अनुभवों की एक बड़ी राशि की भूमि बनने की क्षमता होती है। इसके खुलेपन की वजह से वे उसे एक ग़ैर-अभिजात विधा मानते हैं।

‘शताब्दी के ढलते वर्षों में’ उनका बहुत पढ़ा जाने वाला संग्रह है। यहाँ शामिल निबन्धों में स्वयं अपने बारे में और साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता के बारे में रचनाकार के आत्ममंथन की प्रक्रिया ने रूपाकार ग्रहण किया है। एक ऐसी पीड़ित किन्तु अपरिहार्य प्रक्रिया जो ‘अन्य’ के सम्पर्क में आने पर ही शुरू होती है।

निर्मल वर्मा के इन निबन्धों में यूरोप और पश्चिमी संस्कृति की उस ‘अन्यता’ की ऐसी पहचान दिखाई पड़ती है जो उनके लेखन के आरम्भिक वर्षों में उसी रूप में नहीं मिलती, जैसी वह उन्हें बाद के वर्षों में यूरोप प्रवास के दौरान प्रतीत हुई। इस ‘अन्य’ में साम्यवाद की यूरोपीय विचारधारा भी शामिल है, जिसके भीतर विघटन और विनाश के बीजों को निर्मल वर्मा ने पहली बार अपने निबन्धों में निरूपित किया था।

समाज, संस्कृति और धर्म के अलावा शुद्ध साहित्यिक प्रश्नों को तो इनकी विचार-परिधि में समेटा ही गया है, इसके अलावा कुछ विशिष्ट रचनाकारों के सृजन-कर्म पर भी निर्मल वर्मा ने दृष्टि केन्द्रित की है जिनमें प्रेमचंद, अज्ञेय, मलयज और चेख़व प्रमुख हैं। जीवन-जगत के इतने कगारों को उनकी व्यापकता में छूते हुए ये निबन्ध अपने पाट की चौड़ाई से ही नहीं, मोती निकाल लाने की लालसा में गहरे डूबने के प्रयास से भी पाठक को आकर्षित और प्रभावित करते हैं।

बीसवीं शताब्दी के वैचारिक उतार-चढ़ावों को पारदर्शी दृष्टि से अंकित करनेवाले ये निबन्ध स्वयं निर्मल वर्मा की लम्बी चिन्तन-यात्रा के विभिन्न पड़ावों को एक जगह प्रस्तुत करते हैं। 

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 344p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 12.5 X 2
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Nirmal Verma

Author: Nirmal Verma

निर्मल वर्मा

निर्मल वर्मा हिन्दी कथा-साहित्य के अन्यतम हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म 3 अप्रैल, 1929 को शिमला में हुआ। वे अपने मौलिक लेखन के लिए जितने लोकप्रिय रहे, उतने ही विश्व-साहित्य के अपने अनुवादों के लिए। वैचारिक चिन्तन और हस्तक्षेप के लिए भी समादृत। लेखन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता और पद्मभूषण सहित अनेक पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले। भारत सरकार द्वारा 2005 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किये गये। उसी वर्ष 25 अक्तूबर को नई दिल्ली में देहावसान। 

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