‘चिट्ठियों के दिन’ निर्मल वर्मा के रमेशचन्द्र शाह, ज्योत्स्ना मिलन और उनकी बेटियों—शंपा शाह व राजुला शाह को लिखे पत्रों का संकलन है।
अस्सी के दशक में लिखे गए इन पत्रों में निर्मल जी की वह दुनिया दिखाई देती है; जिसके बहुत कम हिस्से से हम परिचित हैं। इनमें उनका अकेलापन भी दिखता है, और संवादप्रियता भी, लेखक के रूप में अपनी नियति का सामना करने की तैयारी भी और समकालीनों के षड्यंत्रों-आक्षेपों-प्रहारों को समझते-जानते हुए उनसे अछूते रहने की उनकी नैतिक शक्ति भी।
इसी पुस्तक में शामिल अपने वक्तव्य में रमेशचन्द्र शाह लिखते हैं, ‘निर्मल जी सभा-संगोष्ठियों में शिरकत करते हुए जितना सबके साथ होते थे, उतना ही अपने साथ। अन्तर्मुखता की शर्तों पर ही वे पर्याप्त बहिर्मुखता का भी निर्वाह किस ख़ूबी से कर पाते थे, एक समूची पीढ़ी इसकी गवाह है। यही ख़ूबी उनके ‘पत्रों’ में भी है।... सेल्फ़ रिवीलिंग, स्व-संवेदी, आत्मोद्घाटक; किन्तु स्व-केन्द्रित कदापि नहीं।’
इन पत्रों में अनेक पुस्तकों, लेखकों और पत्र-पत्रिकाओं के हवालों के साथ-साथ तत्कालीन हिन्दी-संसार और विश्व-साहित्य की हलचलों की भी जानकारी प्राप्त होती चलती है जिससे पाठक को उस दौर को जानने और निर्मल जी के कथाकार व चिन्तक रूप को समझने में भी मदद मिलती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 264p |
Translator | Not Selected |
Editor | Gagan Gill |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21 X 13 X 2 |