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Prithveeraj Raso : Bhasha Aur Sahitya-Hard Cover

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‘पृथ्वीराज रासो’ को हिन्दी का आदि महाकाव्य कहलाने का गौरव प्राप्त है। भाषा की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ में अपभ्रंशोत्तर पुरानी हिन्दी के विविध भाषिक रूपों के प्रयोग प्राप्त होते हैं।

‘पृथ्वीराज रासो : भाषा और साहित्य’ नामक शोधग्रन्थ में इस काव्य-ग्रन्थ की भाषा का व्यवस्थित और सांगोपांग भाषा-वैज्ञानिक विश्लेषण करने का पहला प्रयास किया गया है।

वर्तमान स्थिति में जबकि रासो के सुलभ संस्करण सन्तोषप्रद नहीं हैं और वैज्ञानिक संस्करण अभी भी होने को हैं, भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन के लिए सर्वोत्तम मार्ग यही है कि प्राचीनतम पांडुलिपियों में से किसी एक को आधार बना लिया जाए।

प्रस्तुत ग्रन्थ में धारणोज की लघुतम रूपान्तर वाली प्रति को आधार माना गया है, क्योंकि एक तो इसका प्रतिलिपि-काल (सं. 1667 वि.) अब तक की प्राप्त प्रतियों में प्राचीनतम है और दूसरे, इसमें भाषा के रूप भी अपेक्षाकृत प्राचीनतर हैं। इसके साथ ही नागरी प्रचारिणी सभा में सुरक्षित बृहत् रूपान्तर की उस प्रति से भी सहायता ली गई है जिसका प्रतिलिपि-काल सम्पादकों के अनुसार सं. 1640 या 42।

इस ग्रन्थ में भाषा-वैज्ञानिक विवेचन के साथ ही ‘कनवज्ज समय' का सम्पादित पाठ और उसके सम्पूर्ण शब्दों का सन्दर्भसहित कोश भी दिया गया है। इसके अतिरिक्त यथास्थान शब्द-रूपों की ऐतिहासिकता तथा प्रादेशिकता की ओर संकेत भी किया गया है।

विश्लेषण के क्रम में एक ओर डिंगल-पिंगल तत्त्व स्पष्ट होते गए हैं, तो दूसरी ओर हिन्दी की उदयकालीन तथा अपभ्रंशोत्तर अवस्था की भाषा का स्वरूप भी उद्‌घाटित हुआ है। साथ ही तुलना के लिए तत्कालीन अन्य रचनाओं के भी समानान्तर शब्द-रूप दिए गए हैं।

नवीन परिवर्धित संस्करण का एक अतिरिक्त आकर्षण यह भी है कि इसमें परिशिष्ट-स्वरूप ‘पृथ्वीराज रासो’ की संक्षिप्त साहित्यिक समालोचना भी जोड़ दी गई है।

इस प्रकार यह प्रबन्ध शोधार्थी अध्येताओं के साथ ही हिन्दी के प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी एक आवश्यक सन्दर्भ-ग्रन्थ है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 1956
Edition Year 2022, Ed. 7th
Pages 272p
Price ₹795.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Namvar Singh

Author: Namvar Singh

नामवर सिंह

जन्म-तिथि : 28 जुलाई, 1926; जन्म-स्थान : बनारस ज़ि‍ले का जीयनपुर नामक गाँव। प्राथमिक शिक्षा बग़ल के गाँव आवाजापुर में। कमालपुर से मिडिल। बनारस के हीवेट क्षत्रिय स्कूल से मैट्रिक और उदयप्रताप कॉलेज से इंटरमीडिएट। 1941 में कविता से लेखक जीवन की शुरुआत। पहली कविता उसी साल क्षत्रियमित्रपत्रिका (बनारस) में प्रकाशित। 1949 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिन्दी में एम.ए.। 1953 में उसी विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अस्थायी पद पर नियुक्ति। 1956 में पीएच.डी. (पृथ्वीराज रासो की भाषा’)। 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार। चुनाव में असफलता के साथ विश्वविद्यालय से मुक्त। 1959-60 में सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर। 1960 से 1965 तक बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन। 1965 में जनयुगसाप्ताहिक के सम्पादक के रूप में दिल्ली में। इस दौरान दो वर्षों तक राजकमल प्रकाशन (दिल्ली) के साहित्यिक सलाहकार। 1967 से आलोचनात्रैमासिक का सम्पादन। 1970 में जोधपुर विश्वविद्यालय (राजस्थान) के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद पर प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त। 1971 में कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादेमी का पुरस्कार। 1974 में थोड़े समय के लिए क.मा.मुं. हिन्दी विद्यापीठ, आगरा के निदेशक। उसी वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (दिल्ली) के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफ़ेसर के रूप में योगदान। 1987 में वहीं से सेवा-मुक्त। अगले पाँच वर्षों के लिए वहीं पुनर्नियुक्ति। 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष। आलोचना त्रैमासिक के प्रधान सम्पादक। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति रहे। वे आलोचनात्रैमासिक के प्रधान सम्पादक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : बकलम ख़ुद, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कहानी : नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद विवाद संवाद, आलोचक के मुख से, हिन्दी का गद्यपर्व, ज़माने से दो दो हाथ, कविता की ज़मीन ज़मीन की कविता, प्रेमचन्द और भारतीय समाज (आलोचना); कहना न होगा (साक्षात्कार); काशी के नाम (पत्र) आदि। 

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन।

निधन : 19 फरवरी, 2019

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