डॉ. नामवर सिंह हिन्दी आलोचना की वाचिक परम्परा के आचार्य कहे जाते हैं। जैसे बाबा नागार्जुन घूम-घूमकर किसानों और मजदूरों की सभाओं से लेकर छात्र-नौजवानों, बुद्विजीवियों और विद्वानों तक की गोष्ठियों में अपनी कविताएँ बेहिचक सुनाकर जनतांत्रिक संवेदना जगाने का काम करते रहे, वैसे ही नामवर जी घूम-घूमकर वैचारिक लड़ाई लड़ते रहे; रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास, कलावाद, व्यक्तिवाद आदि के खिलाफ चिन्तन को प्रेरित करते रहे; नई चेतना का प्रसार करते रहे हैं। इस वैचारिक, सांस्कृतिक अभियान में नामवर जी एक तो विचारहीनता की व्यावहारिक काट करते रहे, दूसरे वैकल्पिक विचारधारा की ओर से लोक शिक्षण भी करते रहे।
नामवर जी ने मार्क्सवाद को अध्ययन की पद्धति के रूप में, चिन्तन की पद्धति के रूप में, समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन लानेवाले मार्गदर्शक सिद्धान्त के रूप में, जीवन और समाज को मानवीय बनानेवाले सौन्दर्य-सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया था। एक मार्क्सवादी होने के नाते वे आत्मालोचन को भी स्वीकार करके चलते रहे। वे आत्मालोचन करते भी रहे। उनके व्याख्यानों और लेखन में भी इसके उदाहरण मिलते हैं। आलोचना को स्वीकार करने में नामवर जी का जवाब नहीं। यही कारण है कि हिन्दी क्षेत्र की शिक्षित जनता के बीच मार्क्सवाद और वामपंथ के बहुत लोकप्रिय नहीं होने के बावजूद नामवर जी उनके बीच प्रतिष्ठित और लोकप्रिय रहे।
इस पुस्तक में नामवर जी के पाँच व्याख्यान संकलित हैं जो उन्होंने पटना में प्रगतिशील लेखक संघ के मंच से विभिन्न अवसरों पर दिए थे। इन व्याख्यानों को सम्पादित करते हुए भी व्याख्यान के रूप में ही रहने दिया गया है, ताकि पाठक नामवर जी की वक्तृत्व कला का आनन्द भी ले सकें।
नामवर जी हिन्दी के सर्वोत्तम वक्ता रहे और माने भी गए। उनके व्याख्यान में भाषा के प्रवाह के साथ विचारों की लय है। इस लय का निर्माण विचारों के तारतम्य और क्रमबद्धता से होता है। अनावश्यक तथ्यों और प्रसंगों से वे बचते थे और रोचकता का भी ध्यान हमेशा रखते थे।
आज के साहित्य, विचारधारा, सौन्दर्य, राजनीति और आलोचना से जुड़े तथा उनके अन्तरसम्बन्धों के बारे में महत्त्वपूर्ण बातें इन व्याख्यानों में कही गई हैं। हिन्दी आलोचना की यह एक महत्त्वपूर्ण किताब मानी जाएगी।
Language | Hindi |
---|---|
Format | Hard Back |
Publication Year | 2005 |
Edition Year | 2022, Ed.4th |
Pages | 106P |
Translator | Not Selected |
Editor | Khagendra Thakur |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1 |
It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here