Aalochana Aur Samvad

Author: Namvar Singh
As low as ₹420.75 Regular Price ₹495.00
You Save 15%
In stock
Only %1 left
SKU
Aalochana Aur Samvad
- +

उनका अध्ययन असीम है, स्मृति अथाह और वैचारिक व्याकुलता अविराम। नामवर सिंह के रूप में हिन्दी के पास एक ऐसा व्यक्तित्व है जो सतत चिन्तनशील है, सतत सृजनरत है, सदैव मुखर है। आलोचक या लेखक होना उनके लिए सिर्फ़ एक औपचारिक बाना नहीं है जिसे अवसर देखकर पहना और उतारा जा सके। उनका होना वही होना है जैसा हम उन्हें देखते हैं। जब वे नियमपूर्वक नहीं लिख रहे थे, और ज्‍़यादातर भाषणों और व्याख्यानों में अपनी बात रख रहे थे तब भी उन्होंने बहुत लिखा : कभी किसी पुस्तक की भूमिका के रूप में, कभी किसी आयोजन के लिए और कभी स्वतंत्र किसी पत्र-पत्रिका के लिए।

इस पुस्तक में उनके ऐसे ही असंकलित और कुछ अप्रकाशित आलेखों को संकलित किया गया है। इनमें से जो आलेख किसी पुस्तक की भूमिका के तौर पर लिखे गए, वे भी सिर्फ़ पुस्तक की प्रशस्ति नहीं हैं, उनमें समीक्षा-आलोचना के उन्हीं मानदंडों का निर्वाह किया गया है, जो नामवर सिंह के चिन्तन की पहचान हैं। रचना को अनेक कोणों से जानने की कोशिश और उसके उस मूल तत्त्व को रेखांकित करने का प्रयास जो उस रचना या उस लेखक को विशिष्ट बनाता है।

इस संकलन में हम भारत और विश्व के कुछ ऐसे रचनाकारों को नामवर जी की निगाह से देखेंगे जो निसन्देह अपरिचित नाम नहीं हैं। उन्हें हमने पढ़ा भी है, समझा भी है लेकिन यहाँ नामवर जी की व्याख्या के साथ उन्हें जानना बेशक एक उपलब्धि है। साथ ही भाषा सम्बन्धी विमर्श और अंग्रेज़ी में लिखित कुछ व्याख्यानों का अनुवाद भी यहाँ संकलित है जो पाठकों के लिए निश्चित ही संग्रहणीय है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 224p
Translator Not Selected
Editor Ashish Tripathi
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Aalochana Aur Samvad
Your Rating
Namvar Singh

Author: Namvar Singh

नामवर सिंह

जन्म-तिथि : 28 जुलाई, 1926; जन्म-स्थान : बनारस ज़ि‍ले का जीयनपुर नामक गाँव। प्राथमिक शिक्षा बग़ल के गाँव आवाजापुर में। कमालपुर से मिडिल। बनारस के हीवेट क्षत्रिय स्कूल से मैट्रिक और उदयप्रताप कॉलेज से इंटरमीडिएट। 1941 में कविता से लेखक जीवन की शुरुआत। पहली कविता उसी साल क्षत्रियमित्रपत्रिका (बनारस) में प्रकाशित। 1949 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिन्दी में एम.ए.। 1953 में उसी विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अस्थायी पद पर नियुक्ति। 1956 में पीएच.डी. (पृथ्वीराज रासो की भाषा’)। 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार। चुनाव में असफलता के साथ विश्वविद्यालय से मुक्त। 1959-60 में सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर। 1960 से 1965 तक बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन। 1965 में जनयुगसाप्ताहिक के सम्पादक के रूप में दिल्ली में। इस दौरान दो वर्षों तक राजकमल प्रकाशन (दिल्ली) के साहित्यिक सलाहकार। 1967 से आलोचनात्रैमासिक का सम्पादन। 1970 में जोधपुर विश्वविद्यालय (राजस्थान) के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद पर प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त। 1971 में कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादेमी का पुरस्कार। 1974 में थोड़े समय के लिए क.मा.मुं. हिन्दी विद्यापीठ, आगरा के निदेशक। उसी वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (दिल्ली) के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफ़ेसर के रूप में योगदान। 1987 में वहीं से सेवा-मुक्त। अगले पाँच वर्षों के लिए वहीं पुनर्नियुक्ति। 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष। आलोचना त्रैमासिक के प्रधान सम्पादक। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति रहे। वे आलोचनात्रैमासिक के प्रधान सम्पादक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : बकलम ख़ुद, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कहानी : नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद विवाद संवाद, आलोचक के मुख से, हिन्दी का गद्यपर्व, ज़माने से दो दो हाथ, कविता की ज़मीन ज़मीन की कविता, प्रेमचन्द और भारतीय समाज (आलोचना); कहना न होगा (साक्षात्कार); काशी के नाम (पत्र) आदि। 

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन।

निधन : 19 फरवरी, 2019

Read More
Books by this Author
Back to Top