Kashi Ke Naam

Author: Namvar Singh
Editor: Kashinath Singh
Edition: 2006, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Kashi Ke Naam
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हिन्दी की कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास और आलोचनाएँ—यहाँ तक कि साहित्यिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक बहसें भी पिछले पचास वर्षों से अपने को टटोलने और जाँचने-परखने के लिए जिस अकेले एक समीक्षक से वाद-विवाद-संवाद करके सन्तोष का अनुभव करती रही थीं, निर्विवाद रूप से उसका नाम नामवर सिंह था। ‘काशी के नाम’ उन्हीं की चिट्ठियों का संकलन है जो उन्होंने काशीनाथ को लिखी थीं।  

नामवर सिंह हिन्दी के किंवदन्ती पुरुष थे। नब्बे वर्ष की उम्र में भी उतने ही तरो-ताज़ा और ऊर्जावान जितना पहले थे। वे अन्तत: न थके, न झुके। हर समय अपनी कहने को तैयार, दूसरे की सहने को तैयार। असहमति और विरोध तो जैसे उनके जुड़वाँ हों। हर आनेवाली पीढ़ी उन्हें देखना चाहती थी, सुनना चाहती थी लेकिन जानना भी चाहती थी—उनकी शख़्सियत के बारे में, उनके घर-परिवार के बारे में, नामवर के ‘नामवर’ होने के बारे में! क्योंकि वे जितने अधिक ‘दृश्य’ थे, उससे अधिक अदृश्य थे। इसी अदृश्य नामवर को प्रत्यक्ष करता है ‘काशी के नाम’।

ऐसे तो, साहित्य के अनेक प्रसंगों से भरी पड़ी हैं चिट्ठियाँ लेकिन सबसे दिलचस्प वे टिप्पणियाँ हैं जो भाई काशी की कहानियों पर की गई हैं। कोई मुरव्वत नहीं, कोई रियायत नहीं, बेहद सख़्त और तीखी। ऐसी कि दिल टूट जाए। लेकिन अगर काशी का कुछ लिखा पसन्द आ गया तो नामवर का आलोचक सहसा भाई हो जाता है—भाव-विह्वल और आत्मविभोर।

‘काशी के नाम’ चिट्ठियों में जीवन और साहित्य साथ-साथ हैं—एक-दूसरे में परस्पर गुँथे हुए। घुले-मिले! कोई ऐसी चिट्ठी नहीं, जिसमें सिर्फ़ जीवन हो, साहित्य नहीं, या साहित्य हो जीवन नहीं। यदि एक तरफ़ नामवर का संघर्ष है, माँ-पिता हैं, भाई हैं, बेटा-बेटी हैं, भतीजे-भतीजियाँ हैं, उनकी चिन्ताएँ और परेशानियाँ हैं, तो उसी में कहीं न कहीं या तो साहित्यिक हलचलों या गतिविधियों पर टिप्पणियाँ हैं या ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ की ज़रूरतें हैं, या किन्हीं लेखों या कहानियों के ज़िक्र हैं या कथाकार को हिदायतें हैं। यानी परिवार हो या साहित्य-संसार या ये दोनों—इनके झमेलों के बीच नामवर के ‘मनुष्य’ को देखना हो तो किसी पाठक के लिए इन चिट्ठियों के सिवा कोई विकल्प नहीं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2006, Ed. 1st
Pages 276p
Translator Not Selected
Editor Kashinath Singh
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 16.5 X 2.5
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Namvar Singh

Author: Namvar Singh

नामवर सिंह

जन्म-तिथि : 28 जुलाई, 1926; जन्म-स्थान : बनारस ज़ि‍ले का जीयनपुर नामक गाँव। प्राथमिक शिक्षा बग़ल के गाँव आवाजापुर में। कमालपुर से मिडिल। बनारस के हीवेट क्षत्रिय स्कूल से मैट्रिक और उदयप्रताप कॉलेज से इंटरमीडिएट। 1941 में कविता से लेखक जीवन की शुरुआत। पहली कविता उसी साल क्षत्रियमित्रपत्रिका (बनारस) में प्रकाशित। 1949 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिन्दी में एम.ए.। 1953 में उसी विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अस्थायी पद पर नियुक्ति। 1956 में पीएच.डी. (पृथ्वीराज रासो की भाषा’)। 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार। चुनाव में असफलता के साथ विश्वविद्यालय से मुक्त। 1959-60 में सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर। 1960 से 1965 तक बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन। 1965 में जनयुगसाप्ताहिक के सम्पादक के रूप में दिल्ली में। इस दौरान दो वर्षों तक राजकमल प्रकाशन (दिल्ली) के साहित्यिक सलाहकार। 1967 से आलोचनात्रैमासिक का सम्पादन। 1970 में जोधपुर विश्वविद्यालय (राजस्थान) के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद पर प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त। 1971 में कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादेमी का पुरस्कार। 1974 में थोड़े समय के लिए क.मा.मुं. हिन्दी विद्यापीठ, आगरा के निदेशक। उसी वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (दिल्ली) के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफ़ेसर के रूप में योगदान। 1987 में वहीं से सेवा-मुक्त। अगले पाँच वर्षों के लिए वहीं पुनर्नियुक्ति। 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष। आलोचना त्रैमासिक के प्रधान सम्पादक। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति रहे। वे आलोचनात्रैमासिक के प्रधान सम्पादक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : बकलम ख़ुद, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कहानी : नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद विवाद संवाद, आलोचक के मुख से, हिन्दी का गद्यपर्व, ज़माने से दो दो हाथ, कविता की ज़मीन ज़मीन की कविता, प्रेमचन्द और भारतीय समाज (आलोचना); कहना न होगा (साक्षात्कार); काशी के नाम (पत्र) आदि। 

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन।

निधन : 19 फरवरी, 2019

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