Dwabha

Author: Namvar Singh
Edition: 2018, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Dwabha

नामवर सिंह जीते-जी विशिष्ट शख़्सियत की देहरी लाँघकर एक लिविंग ‘लीजेंड' हो चुके थे। तमाम तरह के विवादों, आरोपों और विरोध के साथ असंख्य लोगों की प्रसंशा से लेकर ‘भक्ति-भाव तक को समान दूरी से स्वीकारने वाले नामवर जी ने पिछले दशकों में मंच से इतना बोला कि शोधकर्ता लगातार उनके व्याख्यानों को एकत्रित कर रहे हैं और पुस्तकों के रूप में पाठकों के सामने ला रहे हैं। यह पुस्तक भी इसी तरह का एक प्रयास है लेकिन इसे किसी शोधार्थी ने नहीं उनके पुत्र विजय प्रकाश ने संकलित किया है।

इस संकलन में मुख्यत: उनके व्याख्यान हैं और साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखे-छपे उनके कुछ आलेख भी हैं। नामवर जी ने अपने जीवन-काल में कितने विषयों को अपने विचार और मनन विषय बनाया होगा, कहना मुश्किल है। अपने अपार और सतत अध्ययन तथा विस्मयकारी स्मृति के चलते साहित्य और समाज से लेकर दर्शन और राजनीति तक पर उन्होंने समान अधिकार से सोचा और बोला। इस पुस्तक में संकलित आलेख और व्याख्यान पुन: उनके सरोकारों की व्यापकता का प्रमाण देते हैं। इनमें हमें सांस्कृतिक बहुलतावाद, आधुनिकता, प्रगतिशील आन्दोलन, भारत की जातीय विविधता जैसे सामाजिक महत्त्व के विषयों के अलावा अनुवाद, कहानी का इतिहास, कविता और सौन्दर्यशास्त्र, पाठक और आलोचक के आपसी सम्बन्ध जैसे साहित्यिक विषयों पर भी आलेख और व्याख्यान पढ़ने को मिलेंगे।

पुस्तक में हिन्दी और उर्दू के लेखकों-रचनाकारों पर केन्द्रित आलेखों के लिए एक अलग खंड रखा गया है जिसमेँ पाठक मीरा, रहीम, संत तुकाराम, प्रेमचन्द, राहुल सांकृत्यायन, त्रिलोचन, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, परसाई, श्रीलाल शुक्ल, ग़ालिब और सज्जाद ज़हीर जैसे व्यक्तित्वों पर कहीं संस्मरण के रूप में तो कहीं उन पर आलोचकीय निगाह से लिखा हुआ गद्य पढ़ेंगे।

बानगी के रूप में देश की सांस्कृतिक विविधता पर मँडरा रहे संकट पर नामवर जी का कहना है : ‘संस्कृति एकवचन शब्द नहीं है, संस्कृतियाँ होती हैं...सभ्यताएँ दो-चार होंगी लेकिन संस्कृतियाँ सैकड़ों होती हैँ...सांस्कृतिक बहुलता का नष्ट होते हुए देखकर चिन्ता होती है और फिर विचार के लिए आवश्यक स्रोत ढूँढ़ने पड़ते हैं।’ यह पुस्तक ऐसे ही विचार-स्रोतों का पुंज है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 272p
Translator Not Selected
Editor Vijay Prakash Singh
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Namvar Singh

Author: Namvar Singh

नामवर सिंह

जन्म-तिथि : 28 जुलाई, 1926; जन्म-स्थान : बनारस ज़ि‍ले का जीयनपुर नामक गाँव। प्राथमिक शिक्षा बग़ल के गाँव आवाजापुर में। कमालपुर से मिडिल। बनारस के हीवेट क्षत्रिय स्कूल से मैट्रिक और उदयप्रताप कॉलेज से इंटरमीडिएट। 1941 में कविता से लेखक जीवन की शुरुआत। पहली कविता उसी साल क्षत्रियमित्रपत्रिका (बनारस) में प्रकाशित। 1949 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिन्दी में एम.ए.। 1953 में उसी विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अस्थायी पद पर नियुक्ति। 1956 में पीएच.डी. (पृथ्वीराज रासो की भाषा’)। 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार। चुनाव में असफलता के साथ विश्वविद्यालय से मुक्त। 1959-60 में सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर। 1960 से 1965 तक बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन। 1965 में जनयुगसाप्ताहिक के सम्पादक के रूप में दिल्ली में। इस दौरान दो वर्षों तक राजकमल प्रकाशन (दिल्ली) के साहित्यिक सलाहकार। 1967 से आलोचनात्रैमासिक का सम्पादन। 1970 में जोधपुर विश्वविद्यालय (राजस्थान) के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद पर प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त। 1971 में कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादेमी का पुरस्कार। 1974 में थोड़े समय के लिए क.मा.मुं. हिन्दी विद्यापीठ, आगरा के निदेशक। उसी वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (दिल्ली) के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफ़ेसर के रूप में योगदान। 1987 में वहीं से सेवा-मुक्त। अगले पाँच वर्षों के लिए वहीं पुनर्नियुक्ति। 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष। आलोचना त्रैमासिक के प्रधान सम्पादक। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति रहे। वे आलोचनात्रैमासिक के प्रधान सम्पादक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : बकलम ख़ुद, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कहानी : नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद विवाद संवाद, आलोचक के मुख से, हिन्दी का गद्यपर्व, ज़माने से दो दो हाथ, कविता की ज़मीन ज़मीन की कविता, प्रेमचन्द और भारतीय समाज (आलोचना); कहना न होगा (साक्षात्कार); काशी के नाम (पत्र) आदि। 

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन।

निधन : 19 फरवरी, 2019

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