ऊपर-ऊपर सब स्वाँग, कहीं कुछ नहीं सार,
केवल भाषण की लड़ी, तिरंगे का तोरण।
कुछ से कुछ होने को तो आज़ादी न मिली,
वह मिली ग़ुलामी की ही नक़ल बढ़ाने को।
'पहली वर्षगाँठ' कविता की ये पंक्तियाँ तत्कालीन सत्ता के प्रति जिस क्षोभ को व्यक्त करती हैं, उससे साफ़ पता चलता है कि एक कवि अपने जन, समाज से कितना जुड़ा हुआ है और वह अपनी रचनात्मक कसौटी पर किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं। यह आज़ादी जो ग़ुलामों की नस्ल बढ़ाने के लिए मिली है, इससे सावधान रहने की ज़रूरत है। देखें तो 'नीम के पत्ते' संग्रह में 1945 से 1953 के मध्य लिखी गई जो कविताएँ हैं, वे तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों की उपज हैं; साथ ही दिनकर की जनहित के प्रति प्रतिबद्ध मानसिकता की साक्ष्य भी। अपने दौर के कटु यथार्थ से अवगत करानेवाला ओजस्वी कविताओं का यह संग्रह दिनकर के काव्य-प्रेमियों के साथ-साथ शोधार्थियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, संग्रहणीय है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2019 |
Edition Year | 2024, Ed. 3rd |
Pages | 62p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21 X 14 X 1 |
Author: Ramdhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।
प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता की खोज, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ आदि।
सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974