‘रश्मिरथी’ आधुनिक हिन्दी साहित्य की एक कालजयी काव्य-कृति है। यह ‘दिनकर’ की सबसे प्रशंसित काव्य-कृतियों में से एक है।
इस काव्य के केन्द्र में कर्ण का जीवन है जो ‘महाभारत’ में अविवाहित कुन्ती (पांडु की पत्नी) का पुत्र था, और जिसे उन्होंने जनमते ही छोड़ दिया था। कर्ण एक वर्णसंकर जाति में बड़ा हुआ, फिर भी अपने समय के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक बन गया। कौरवों की ओर से कर्ण का लड़ना पांडवों के लिए एक बड़ी चिन्ता थी, क्योंकि वह ऐसा महारथी था जिसे युद्ध में कोई हरा नहीं सकता था। दिनकर जी ने नैतिक दुविधाओं में फँसे कर्ण की मानव भावनाओं के सभी रंगों के साथ जो कहानी प्रस्तुत की है, वह उल्लेखनीय और अद्भुत है।
दिनकर जी के शब्दों में—“कर्ण-चरित के उद्धार की चिन्ता इस बात का प्रमाण है कि हमारे समाज में मानवीय गुणों की पहचान बढ़नेवाली है। कुल और जाति का अहंकार विदा हो रहा है। आगे, मनुष्य केवल उसी पद का अधिकारी होगा जो उसके अपने सामर्थ्य से सूचित होता है, उस पद का नहीं, जो उसके माता-पिता या वंश की देन है। इसी प्रकार, व्यक्ति अपने निजी गुणों के कारण जिस पद का अधिकारी है, वह उसे मिलकर रहेगा, यहाँ तक कि उसके माता-पिता के दोष भी इसमें कोई बाधा नहीं डाल सकेंगे। कर्ण-चरित का उद्धार एक तरह से, नई मानवता की स्थापना का ही प्रयास है…!”
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 1952 |
Edition Year | 2023, Ed 43rd |
Pages | 191p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 20.5 X 13.5 X 2 |