Pran-Bhang Tatha Anya Kavitayen

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Pran-Bhang Tatha Anya Kavitayen
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'मैं वर्तमान संग्रह को अपनी प्रारम्भिक रचनाओं का संग्रह बनाना चाहता था और इसका मुख्य रूप वही है भी। किन्तु पुरानी बहियों को उलटते-पलटते समय कुछ कविताएँ और मिल गईं, जिन्हें प्रारम्भिक रचनाएँ तो नहीं कहा जा सकता; किन्तु जो उसी न्याय से प्रकाश में आने के योग्य हैं, जिस न्याय से कवि की प्रारम्भिक रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं।' दिनकर जी के इस कथन से स्पष्ट है कि यह उनकी प्रारम्भिक कविताओं का संग्रह है। बावजूद इसके यह उनका एक ऐसा संग्रह भी है जिसके महत्त्व को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में उल्लेख किया है।

प्रस्तुत संग्रह में एक लघु खंड काव्य 'प्रण-भंग' नाम से है जो महाभारत युद्ध में घटित श्रीकृष्ण के शस्त्र-ग्रहण की घटना पर आधारित है जिसे दिनकर जी ने खुद 'जयद्रथ-वध' के अनुकरण पर लिखा गया माना है। इस खंड काव्य में परम्परा और आधुनिकता का अन्तर्विरोध अपनी तार्किकता के साथ है। यही नहीं, इसमें भक्ति भी अपनी आस्था के साथ रूपायित हुई है।

‘प्रण-भंग’ के अलावा संग्रह की स्फुट कविताओं–‘शहीद अशफाक के प्रति’, ‘वायसराय की घोषणा पर’, ‘महात्मा गांधी’, ‘शहीदों के नाम पर’, ‘मूक बलिदान’, ‘तपस्या’, ‘शहीद’ आदि–में हम स्वर्णिम अतीत के प्रति संवेदनशीलता और अपने यथार्थ के प्रति अन्तर्विरोध को गहरे लक्षित कर सकते हैं। वहीं पुस्तक के अन्त में संगृहित अट्ठाईस क्षणिकाओं में सामाजिक पीड़ा और सांस्कृतिक चिन्तन है, तो सत्ता की शोषक-प्रवृत्ति के प्रति धारदार नज़रिया भी है जिसे इन पंक्तियों में देखा जा सकता है–‘राजा/तुम्हारे अस्तबल के/घोड़े मोटे हैं।/प्रजा भूखी और नंगी है।/घोड़ों को कोई अभाव नहीं।/लेकिन लोगों को हर तरफ़ की तंगी है।’

‘प्रण-भंग और अन्य कविताएँ’ संग्रह के बारे में दिनकर जी के ही शब्दों को लेकर कहें तो यह उनके 'सम्पूर्ण काव्य-यात्रा पर प्रकाश डालता है।'

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Ramdhari Singh Dinkar

Author: Ramdhari Singh Dinkar

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।

प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता  की  खोज, संस्मरण  और श्रद्धांजलियाँ आदि।

सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर  
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्‍मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974

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