कविश्री' रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ओजस्वी कविताओं का संग्रह है। कविताओं में प्रखर राष्ट्रवाद, प्रकृति के प्रति उत्कट प्रेम एवं मानव-कल्याण-कामना की मंगल-भावना के दर्शन होते हैं।
'कविश्री' में संगृहीत हैं दिनकर जी की 'हिमालय के प्रति', 'प्रभाती', 'व्याल विजय' एवं 'नया मनुष्य' जैसी प्रसिद्ध प्रदीर्घ कविताएँ, जो हिन्दी काव्य-साहित्य की अमूल्य निधि हैं।
दिनकर का काव्य-व्यक्तित्व जिस दौर में निर्मित हुआ, वह राजसत्ता और शोषण के विरुद्ध हर मोर्चे पर संघर्ष का दौर था। इसलिए 'कविश्री' में संकलित रचनाओं को पढ़ना भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में साहित्य के योगदान से भी परिचित होना है।
अपने ऐतिहासिक महत्त्व के कारण पाठकों के लिए एक संग्रहणीय और अविस्मरणीय संग्रह।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2019 |
Edition Year | 2024, Ed. 3rd |
Pages | 72p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2 |
Author: Ramdhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।
प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता की खोज, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ आदि।
सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974