Aadhunik Bodh : Dinkar Granthmala

— इस पुस्तक में आधुनिकता पर केन्द्रित निबन्ध संकलित हैं। एक युगद्रष्टा राष्ट्रकवि के मौलिक चिन्तन से ओतप्रोत विचारोत्तेजक ये निबन्ध आधुनिकता के महत्त्व को इस तार्किकता के साथ रेखांकित करते हैं कि पाठकों को अपने राष्ट्र के प्रति एक नई दृष्टि मिल सके।
आधुनिकता की परिभाषा क्या है? धर्म, साहित्य और समाज को वह किस सीमा तक प्रभावित करती है? क्या नैतिकता, सौन्दर्यबोध की भाँति आधुनिकता का भी कोई शाश्वत मूल्य है? विज्ञान, औद्योगिकी और टेक्नोलॉजी के निरन्तर प्रसार के सामने हम अपनी संस्कृति का सार किस तरह बचा सकते हैं? प्रस्तुत संग्रह के निबन्धों में दिनकर जी ने इन ज्वलन्त प्रश्नों पर न केवल गहराई से विचार किए हैं, वरन् भारतीय संस्कृति के सनातन जीवन-मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में उनके समाधान भी दिए हैं।
निस्सन्देह, 'आधुनिक बोध' रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के चिन्तकस्वरूप को उद्घाटित करनेवाली एक श्रेष्ठ बौद्धिक कृति है।
Language | Hindi |
---|---|
Format | Hard Back |
Publication Year | 2019 |
Edition Year | 2019, 1st Ed. |
Pages | 152P |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here
Author: Ramdhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।
प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता की खोज, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ आदि।
सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974