Naye Subhashit

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सुभाषित संस्कृत काव्‍य-साहित्य की एक प्रचलित शैली है जिसमें रचित पदों में दृष्टि, सत्‍य, सौन्‍दर्य आदि का अद्भुत समन्‍वय देखने को मिलता है। कम शब्‍दों में बात कहने की कला इस शैली की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। राष्‍ट्रकवि दिनकर की इस पुस्‍तक में इसी शैली में रचे गए हिन्‍दी-पद शामिल हैं।
सुभाषित हमेशा वाक्-कौशल लिये होते हैं। इनमें अन्‍तर्निहित सन्‍देश ऐसी चतुराई से पद्य-बद्ध किए जाते हैं कि इन्‍हें याद भी किया जा सकता है और अपने व्‍यावहारिक जीवन में उपयोग भी किया जा सकता है। इस पुस्‍तक के सुभाषित विभिन्‍न विषयों से सम्‍बन्धित हैं और इनका कैनवस बहुत बड़ा है। ये अनुभव और अध्‍ययन के साँचे में ढले हुए सुभाषित हैं। इसलिए इनमें जो एक अलग छन्‍दात्‍मक रंग देखने को मिलता है, उसके प्रभाव में ग़ज़ब का आकर्षण और माधुर्य है। व्‍यंग्‍य-विनोद का पुट तो ख़ास है ही।
दिनकर ने अपने इन सुभाषितों में जिस काव्‍य-कौशल का परिचय दिया है, वह अपनी सम्‍प्रेषणीयता में एक मिसाल है। मिसाल इस मायने में भी कि आम पाठकों को ध्‍यान में रखकर भी ऐसे काव्‍य की रचना की जानी चाहिए। यही कारण है कि ये सुभाषित पढ़नेवाले को अपनी ही कहन का हिस्‍सा लगने लगते हैं और हृदयतल को छू वहीं ठहर जाते हैं।
इस पुस्‍तक में ऐसे कई सुभाषित हैं जो आज के उथल-पुथल-भरे समय में साठ साल पहले लिखे जाने के बाद भी प्रासंगिक हैं। इसलिए यह पुस्‍तक सिर्फ़ पठनीय ही नहीं, एक ज़रूरी पुस्‍तक भी है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1957
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 124p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 20.5 X 13 X 1.5
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Ramdhari Singh Dinkar

Author: Ramdhari Singh Dinkar

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।

प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता  की  खोज, संस्मरण  और श्रद्धांजलियाँ आदि।

सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर  
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्‍मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974

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