Mitti Ki Oar

मिट्टी की ओर’ में संगृहीत निबन्ध छायावाद की कुहेलिका से निकल जन, ज़मीन और जड़ों की ओर बढ़नेवाली हिन्दी कविता को लक्ष्य करके लिखे गए हैं। इनमें दिनकर का जो गहन चिन्तन-मनन और बेबाक कथन-शैली है, वह आलोचना में एक नए रास्ते से परिचित कराने की तरह है।
‘इतिहास के दृष्टिकोण से’ में छायावाद के अलावा अन्य काव्यधारा से जुड़े कवियों पर एक सारगर्भित विश्लेषण है। इसमें दिनकर ने आलोचकों से मतान्तर को भी पूरी साफ़गोई के साथ रखा है। ‘दृश्य और अदृश्य का सेतु’ में ‘भारत-भारती’, ‘प्रियप्रवास’, ‘आँसू’, ‘प्रेम-पथिक’ आदि कृतियों के माध्यम से कविता के नवीन युग की विवेचना की गई है। साथ ही, कविता और पाठक के बीच बढ़ती खाई को कैसे पाटा जा सकता है, इस पर भी लोकानुभूति के हवाले से ज़रूरी बातें कही गई हैं। ‘हिन्दी-कविता पर अशक्तता का दोष’ में भी इसी बिन्दु को एक बड़े परिप्रेक्ष्य में उद्घाटित किया गया है। ‘कला में सोद्देश्यता का प्रश्न’ में दिनकर का मानना है कि कवि-कल्पना और सामाजिक जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित किए बिना साहित्य आयुष्मान् नहीं हो सकता। ‘वर्तमान कविता की प्रेरक शक्तियाँ’ में ब्रजभाषा से लेकर दिनकर ने अपने युग तक की काव्य-यात्रा में प्रेरक तत्त्वों को रेखांकित किया है। ‘समकालीन सत्य से कविता का वियोग’ अतीत और वर्तमान से जुड़े साहित्य के स्थायित्व और अमरत्व पर एक विमर्शात्मक निबन्ध है। ‘हिन्दी-कविता और छन्द’ में छन्द-विधान पर सोदाहरण जो तथ्य रखे गए हैं, कविता की हमारी समझ को समृद्ध करनेवाले हैं। ‘प्रगतिवाद, समकालीनता की व्याख्या’ में प्रगतिवाद के प्रति जो आशंकाएँ थीं, उनको दिनकर ने विमर्श के केन्द्र में रख जो वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की है, वह अमूल्य है।
पुस्तक में तीन निबन्ध मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी और सियारामशरण गुप्त पर एकाग्र हैं। अन्य निबन्ध भी अपने मूल्यांकन में विशिष्टता लिये हुए हैं।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 1946 |
Edition Year | 2022, Ed. 2nd |
Pages | 142p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 20.5 X 13.5 X 1.5 |
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