Meri Jail Diary

Author: Yashpal
Editor: Anand
Edition: 2014, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Meri Jail Diary
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अपनी क्रान्तिकारी एवं साम्राज्य विरोधी गतिविधियों के लिए पुलिस-मुठभेड़ के बाद यशपाल 23 जनवरी, 1932 को इलाहाबाद में गिरफ़्तार हुए। इसके लिए उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा हुई। अपने कारावास के दौर में वे नैनी, सुल्तानपुर, बरेली, फतेहपुर आदि विभिन्न जेलों में रहे। राजनीतिक बन्दी होने से बी क्लास की सुविधाओं के कारण, जीवन की कोई विशेष आशा न होने पर भी, उन्होंने अपने इस समय को पढ़ने-लिखने और विभिन्न भाषाएँ सीखने में लगाया। उन्होंने कहानियाँ लिखीं और पढ़ी गई सामग्री के विस्तृत नोट्स लिए। दोस्तोवस्की, जुलियस फ्युचिक, ग्राम्शी और भगत सिंह आदि की तरह जेल-जीवन में एक तरह से उनका अधिकतर समय इस रचनात्मक उद्यम में ही बीता। जेल-प्रवास का दौर यशपाल के लिए वस्तुतः ढेर सारे फ़ैसलों का दौर भी था। जीवित बाहर निकलने के बाद भविष्य की चिन्ता तो थी ही, यह भी तय करना था कि अब करना क्या है।

यशपाल की यह डायरी उनकी रचनात्मक तैयारी का साक्ष्य है। इसमें उन अनेक कहानियों का पहला ड्राफ़्ट मिलता है जो बाद में ‘पिंजरे की उड़ान’ और ‘वो दुनिया’ में संकलित की गई। इस सामग्री में महात्मा गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह, लेनिन की राजनीतिक पद्धति और फ़्रायड के मनोविश्लेषण जैसे परस्पर-विरोधी विचार-सरणियों तक पहुँचने और चीज़ों को देखने, समझने की यशपाल की चिन्ता को देखा जा सकता है। कुल मिलाकर यह सारी सामग्री उनकी उस रचनात्मक बेचैनी का साक्ष्य है जिससे उबरकर ही वे एक पत्रकार और लेखक के रूप में अपना रूपान्तरण करते हैं। इन्हें उनके जीवन के समान्तर रखकर पढ़ा जा सकता है। ये सिर्फ़ कुछ उदाहरण हैं कि यशपाल की यह जेल-डायरी उन्हें कैसे एक बेहतर रूप में समझने का अवसर देती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 199p
Translator Not Selected
Editor Anand
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.2 X 14.2 X 1.8
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Yashpal

Author: Yashpal

यशपाल

यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर, 1903 को फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब में हुआ।

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी, डी.ए.वी. स्कूल, लाहौर और फिर मनोहर लाल हाईस्कूल में हुई। 1921 में वहीं से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रारम्भिक जीवन रोमांचक कथाओं के नायकों-सा रहा। भगत सिंह, सुखदेव, बोहरा और आजाद के साथ क्रान्तिकारी कार्यों में खुलकर भाग लिया। 1931 में  हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना के सेनापति चन्द्रशेखर आजाद के मारे जाने पर सेनापति नियुक्त। 1932 में पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में गिरफ्तार। 1938 में जेल से छूटे। तब से जीवनपर्यन्त लेखन कार्य में संलग्न रहे।

उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैंझूठा सच : वतन और देश, झूठा सच : देश का भविष्य, मेरी तेरी उसकी बात, देशद्रोही, दादा कामरेड, मनुष्य के रूप, दिव्या, अमिता, बारह घंटे, अप्सरा का शाप (उपन्यास); लैम्प शेड, धर्मयुद्ध, ओ भैरवी, उत्तराधिकारी, चित्र का शीर्षक, अभिशप्त, वो दुनिया, ज्ञानदान, पिंजरे की उड़ान, तर्क का तूफान, भस्माकृत चिंगारी, फूलो का कुर्ता, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ, उत्तमी की माँ, खच्चर और आदमी, भूख के तीन दिन (कहानी-संग्रह); यशपाल का यात्रा साहित्य और कथा नाटक, लोहे की दीवार के दोनों ओर, राह बीती, स्वर्गोद्यान बिना साँप (यात्रा-वृत्तान्त); मेरी जेल डायरी (डायरी); यशपाल के निबन्ध (दो खंड), राम-राज्य की कथा, गांधीवाद की शव परीक्षा, मार्क्सवाद, देखा, सोचा, समझा, चक्कर क्लब, बात-बात में बात, न्याय का संघर्ष, बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रौबीला है, जग का मुजरा, मैं और मेरा परिवेश, यशपाल का विप्लव (राजनीति/निबन्ध/व्यंग्य); सिंहावलोकन (सम्पूर्ण 1-4) (दस्तावेज) नशे नशे की बात (संस्मरण); यशपाल रचनावली।

उन्हें देव पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘साहित्य वारिधि’, ‘पद्मभूषणआदि से सम्मानित किया गया।

निधन : 26 दिसम्बर, 1976

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