Yashpal Rachanawali : Vols. 1-14

Author: Yashpal
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Yashpal Rachanawali : Vols. 1-14

प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी कथा साहित्य में यशपाल असाधारण महत्त्व के लेखक हैं। उन्होंने गद्य की प्राय: सभी विधाओं में लिखा है। प्रेमचन्द की तरह ही उनका भी लेखन ख़ाली समय को भरने का एक शग़ल-भर नहीं था। उनके लिए सामाजिक परिवर्तन में उसकी एक स्पष्ट और सुनिर्दिष्ट भूमिका थी। अपने लेखन से वे बहुत कुछ वही काम करना चाहते थे जिसके लिए अपनी तरुणाई में वे सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति की ओर मुड़े थे। उनके उपन्यास, कहानियाँ, आत्म-वृत्तान्‍त, वैचारिक लेखन, यात्रा-साहित्य यानी उनका लिखा सब कुछ इसी एक सूत्र में गुँथा और पिरोया गया लगता है। इस सबका एक ही घोषित-अघोषित लक्ष्य है—एक बेहतर दुनिया की खोज और निर्माण। विवादों से बचकर निकलना यशपाल की प्रवृत्ति नहीं है। सब कहीं और प्रायः हमेशा वे जैसे विवादों को आमंत्रित करते हैं, क्योंकि उनका विश्वास था—वादे-वादे जायते तत्त्वबोध।

‘यशपाल रचनावली’ के चौदह खंडों की योजना वस्तुतः उनके साहित्य में निरन्तर बढ़ती हुई इसी दिलचस्पी का परिणाम है। हर बड़े और समर्थ लेखक की तरह यशपाल भी अपने समय के प्रति सच्चे रहकर ही आज हमारे समय के लिए और भी सार्थक, प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं। उनकी रचनावली की सार्थकता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि जिस और जैसे समाज का निर्माण वे करना चाहते थे, उसकी आवश्यकता इधर बहुत शिद्दत से महसूस की जाती रही है। अपने समय और समाज को यशपाल ने जितनी अच्छी तरह समझा और जाना था, उसके उदाहरण भारतीय समाज में अधिक नहीं हैं। इसे जानने और समझने की भरपूर क़ीमत भी उन्होंने चुकाई। इस तरह यह रचनावली प्रकारान्तर से इस सच को भी सामने लाती है कि साहित्य, कला एवं विचार की दुनिया में उठाया जानेवाला जोखिम ही किसी लेखक के बड़े और सार्थक होने की एक ज़रूरी शर्त हो सकता है।

‘यशपाल रचनावली’ के पहले खंड में यशपाल के उपन्यास ‘दादा कामरेड’, ‘देशद्रोही’ और ‘गीता’; दूसरे खंड में ‘दिव्या’, ‘अमिता’ और ‘अप्सरा का शाप’; तीसरे खंड में ‘झूठा सच : वतन और देश’; चौथे खंड में ‘झूठा सच : देश का भविष्य’; पाँचवें खंड में ‘मनुष्य के रूप में’, ‘बारह घंटे’ और ‘क्यों फँसें’; छठे खंड में ‘तेरी मेरी उसकी बात’ और सातवें खंड में उनके दो अनूदित उपन्यास ‘पक्का कदम’ और ‘जुलैखाँ’ शामिल हैं। ‘रचनावली’ के आठवें खंड में यशपाल के कहानी-संग्रह—‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वो दुनिया’, ‘तर्क का तूफ़ान’, ‘अभिशप्त’ और ‘ज्ञानदान’; नौवें खंड में ‘भस्मावृत्त चिंगारी’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘धर्मयुद्ध’, ‘उत्तराधिकारी’ ‘चित्र का शीर्षक’ और ‘तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ’; दसवें खंड में ‘वो भैरवी’, ‘उत्तमी की माँ’, ‘सच बोलने की भूल’, ‘खच्चर और आदमी’, ‘भूख के तीन दिन’ और ‘लैम्प शेड’ शामिल हैं।

वहीं ‘रचनावली’ के ग्यारहवें खंड में निबन्ध-संग्रह—‘मार्क्सवाद’, ‘गांधीवाद की शव-परीक्षा’, ‘रामराज्य की कथा’, ‘देखा सोचा समझा’ और ‘बीवी जी कहती हैं मेरा चेहरा रोबीला है’; बारहवें खंड में ‘न्याय का संघर्ष’, ‘चक्कर क्लब’, ‘बात-बात में बात’ और ‘जग का मुजरा’; तेरहवें खंड में यशपाल के कहानी-संग्रह—‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’, ‘राहबीती’ और ‘स्वर्गोद्यान : बिना साँप’ तथा कथा-नाटक ‘नशे-नशे की बात’ शामिल हैं, तो चौदहवें खंड ‘सिंहावलोकन’ में यशपाल के क्रान्तिकारी जीवन के संस्मरण को शामिल किया गया है।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Edition Year 2007
Pages 427p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
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Author: Yashpal

यशपाल

यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर, 1903 को फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब में हुआ।

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी, डी.ए.वी. स्कूल, लाहौर और फिर मनोहर लाल हाईस्कूल में हुई। 1921 में वहीं से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रारम्भिक जीवन रोमांचक कथाओं के नायकों-सा रहा। भगत सिंह, सुखदेव, बोहरा और आजाद के साथ क्रान्तिकारी कार्यों में खुलकर भाग लिया। 1931 में  हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना के सेनापति चन्द्रशेखर आजाद के मारे जाने पर सेनापति नियुक्त। 1932 में पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में गिरफ्तार। 1938 में जेल से छूटे। तब से जीवनपर्यन्त लेखन कार्य में संलग्न रहे।

उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैंझूठा सच : वतन और देश, झूठा सच : देश का भविष्य, मेरी तेरी उसकी बात, देशद्रोही, दादा कामरेड, मनुष्य के रूप, दिव्या, अमिता, बारह घंटे, अप्सरा का शाप (उपन्यास); लैम्प शेड, धर्मयुद्ध, ओ भैरवी, उत्तराधिकारी, चित्र का शीर्षक, अभिशप्त, वो दुनिया, ज्ञानदान, पिंजरे की उड़ान, तर्क का तूफान, भस्माकृत चिंगारी, फूलो का कुर्ता, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ, उत्तमी की माँ, खच्चर और आदमी, भूख के तीन दिन (कहानी-संग्रह); यशपाल का यात्रा साहित्य और कथा नाटक, लोहे की दीवार के दोनों ओर, राह बीती, स्वर्गोद्यान बिना साँप (यात्रा-वृत्तान्त); मेरी जेल डायरी (डायरी); यशपाल के निबन्ध (दो खंड), राम-राज्य की कथा, गांधीवाद की शव परीक्षा, मार्क्सवाद, देखा, सोचा, समझा, चक्कर क्लब, बात-बात में बात, न्याय का संघर्ष, बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रौबीला है, जग का मुजरा, मैं और मेरा परिवेश, यशपाल का विप्लव (राजनीति/निबन्ध/व्यंग्य); सिंहावलोकन (सम्पूर्ण 1-4) (दस्तावेज) नशे नशे की बात (संस्मरण); यशपाल रचनावली।

उन्हें देव पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘साहित्य वारिधि’, ‘पद्मभूषणआदि से सम्मानित किया गया।

निधन : 26 दिसम्बर, 1976

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