स्वातंत्र्योत्तर भारत के शिखरस्थ लेखकों में प्रमुख यशपाल ने अपने प्रत्येक उपन्यास को पाठक के मन-रंजन से हटाकर उसकी वैचारिक समृद्धि को लक्षित किया है। विचारधारा से उनकी प्रतिबद्धता ने उनकी रचनात्मकता को हर बार एक नया आयाम दिया, और उनकी हर रचना एक नए तेवर के साथ सामने आई ! 'अप्सरा का शाप' में उन्होंने दुष्यन्त-शकुन्तला के पौराणिक आख्यान को आधुनिक संवेदना और तर्कणा के आधार पर पुनराख्यायित किया है।
यशपाल के शब्दों में : 'शकुन्तला की कथा पतिव्रत धर्म में निष्ठा की पौराणिक कथा है। ‘महाभारत’ के प्रणेता तथा कालिदास ने उस कथा का उपयोग अपने-अपने समय की भावनाओं, मान्यताओं तथा प्रयोजनों के अनुसार किया है। उन्हीं के अनुकरण में 'अप्सरा का शाप' के लेखक ने भी अपने युग की भावना तथा दृष्टि के अनुसार शकुन्तला के अनुभवों की कल्पना की है। उपन्यास की केन्द्रीय वस्तु दुष्यन्त का शकुन्तला से अपने प्रेम सम्बन्ध को भूल जाना है, इसी को अपने नज़रिए से देखते हुए लेखक ने इस उपन्यास में नायक 'दुष्यन्त' की पुनर्स्थापना की है और बताया है कि नायक ने जो किया, उसके आधार पर आज के युग में उसे धीरोदात्त की पदवी नहीं दी जा सकती।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2011 |
Edition Year | 2011, Ed. 1st |
Pages | 91p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |