Chitra Ka Shirshak

Author: Yashpal
Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Chitra Ka Shirshak
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यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है। यह आधारभूत प्रस्थान बिन्दु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज़्यादा तरल रूप में, ज़्यादा गहराई के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर आते हैं। उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है। प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही वे कथा-यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचित् विलम्ब से आरम्भ हुआ। कहानीकार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने प्रेमचन्द के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी-कला का विकास किया। उनकी कहानियों में संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वन्द्व जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई, जो आज तक चली आ रही है। वैचारिक निष्ठा, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याय तथा तर्क की कसौटियों पर खरा जीवन—ये कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिन्दी कहानी यशपाल की ऋणी है।

‘चित्रा का शीर्षक’ कहानी-संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं : ‘चित्रा का शीर्षक’, ‘हाय राम!...ये बच्चे!!’, ‘आदमी या पैसा?’, ‘प्रधानमंत्री से भेंट’, ‘मार का मोल’, ‘शहंशाह का न्याय’, ‘स्थायी नशा’, ‘एक सिगरेट’, ‘फूल की चोरी’, ‘अनुभव की पुस्तक’, ‘पाँव तले की डाल’, ‘साहू और चोर’ तथा ‘इसी सुराज के लिए’?

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1952
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 118p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14.5 X 1
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Yashpal

Author: Yashpal

यशपाल

यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर, 1903 को फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब में हुआ।

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी, डी.ए.वी. स्कूल, लाहौर और फिर मनोहर लाल हाईस्कूल में हुई। 1921 में वहीं से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रारम्भिक जीवन रोमांचक कथाओं के नायकों-सा रहा। भगत सिंह, सुखदेव, बोहरा और आजाद के साथ क्रान्तिकारी कार्यों में खुलकर भाग लिया। 1931 में  हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना के सेनापति चन्द्रशेखर आजाद के मारे जाने पर सेनापति नियुक्त। 1932 में पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में गिरफ्तार। 1938 में जेल से छूटे। तब से जीवनपर्यन्त लेखन कार्य में संलग्न रहे।

उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैंझूठा सच : वतन और देश, झूठा सच : देश का भविष्य, मेरी तेरी उसकी बात, देशद्रोही, दादा कामरेड, मनुष्य के रूप, दिव्या, अमिता, बारह घंटे, अप्सरा का शाप (उपन्यास); लैम्प शेड, धर्मयुद्ध, ओ भैरवी, उत्तराधिकारी, चित्र का शीर्षक, अभिशप्त, वो दुनिया, ज्ञानदान, पिंजरे की उड़ान, तर्क का तूफान, भस्माकृत चिंगारी, फूलो का कुर्ता, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ, उत्तमी की माँ, खच्चर और आदमी, भूख के तीन दिन (कहानी-संग्रह); यशपाल का यात्रा साहित्य और कथा नाटक, लोहे की दीवार के दोनों ओर, राह बीती, स्वर्गोद्यान बिना साँप (यात्रा-वृत्तान्त); मेरी जेल डायरी (डायरी); यशपाल के निबन्ध (दो खंड), राम-राज्य की कथा, गांधीवाद की शव परीक्षा, मार्क्सवाद, देखा, सोचा, समझा, चक्कर क्लब, बात-बात में बात, न्याय का संघर्ष, बीबी जी कहती हैं मेरा चेहरा रौबीला है, जग का मुजरा, मैं और मेरा परिवेश, यशपाल का विप्लव (राजनीति/निबन्ध/व्यंग्य); सिंहावलोकन (सम्पूर्ण 1-4) (दस्तावेज) नशे नशे की बात (संस्मरण); यशपाल रचनावली।

उन्हें देव पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘साहित्य वारिधि’, ‘पद्मभूषणआदि से सम्मानित किया गया।

निधन : 26 दिसम्बर, 1976

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