प्रस्‍तुत काव्‍य-संग्रह ‘नील कुसुम’ में राष्ट्रकवि ‘दिनकर' की सौन्‍दर्यान्‍वेशी वृत्ति काव्यमयी हो जाती है, पर यह अँधेरे में ध्‍येय सौन्दर्य का अन्वेषण नहीं, उजाले में ज्ञेय सौन्दर्य का आराधन है। कवि के स्वर का ओज नए वेग से नए शिखर तक पहुँच जाता है। वह काव्यात्मक प्रयोगशीलता के प्रति आस्थावान है। स्वयं प्रयोगशील कवियों को जयमाल पहनाने और उनकी राह फूल बिछाने की आकांक्षा उसे विकल कर देती है। नवीनतम काव्यधारा से सम्बन्ध स्थापित करने की कवि की इच्छा स्पष्ट हो जाती है।

प्रस्तुत पुस्तक में पाठक कवि के भाषा-प्रवाह, ओज अनुभूति की तीव्रता और गहरे छूती संवेदना का अनुभव करेंगे।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1954
Edition Year 2016, Ed. 3rd
Pages 120p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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You're reviewing:Neel Kusum
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Ramdhari Singh Dinkar

Author: Ramdhari Singh Dinkar

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।

प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता  की  खोज, संस्मरण  और श्रद्धांजलियाँ आदि।

सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर  
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्‍मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974

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