Dinkar Ki Sooktiyan-Hard Back

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9789389243765
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सूक्तियों की भूमिका अक्सर प्रेरक होती है। वे हमारी संवेदना और विचारों को स्पर्श कर परिष्कृत करने का काम करती हैं। वे किसी भी भाषा में लिखी गई हों, बोलचाल में इस तरह घुलमिल जाती हैं कि उद्देश्य हो या उपदेश उसकी पूर्व पीठिका की तैयारी में सहज ही उदाहरण बन व्यक्त हो जाती हैं, और बात की प्रामाणिकता तनिक बढ़ जाती है।

सूक्ति-संग्रह का रिवाज उर्दू में रहा है, मगर हिन्दी में यह यदा-कदा ही देखने को मिलता है। संस्कृत में भी एक समय सुभाषित-संचय की प्रथा ख़ूब बढ़ी थी। ऐसे शब्द-समूह, वाक्य या अनुच्छेदों को सुभाषित कहते हैं जिसमें कोई बात सुन्दर ढंग से या बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़े से कही गई हो। शायद इसी से प्रेरित हो कभी दिनकर जी ने भी कई सुभाषित रचे थे जो उनके ‘नये सुभाषित’ संग्रह में शामिल हैं। और दिनकर जी की मानें तो ‘वर्तमान संग्रह में नए सुभाषित से एक पंक्ति भी नहीं ली गई है। इस संग्रह की सभी सूक्तियाँ मेरे नाना काव्य-संग्रहों में से चुनी गई हैं।’ निस्सन्देह, ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ एक राष्ट्रकवि की एक ऐसी कृति है जो विचारोत्तेजक और मार्गदर्शक तो है ही, प्रखर चिन्तन और मानवतावादी दर्शन का एक अनुपम संग्रह भी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1963
Edition Year 2019, Ed. 1st
Pages 160p
Price ₹395.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 20.5 X 13.5 X 1.5
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Ramdhari Singh Dinkar

Author: Ramdhari Singh Dinkar

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।

प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता  की  खोज, संस्मरण  और श्रद्धांजलियाँ आदि।

सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर  
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्‍मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974

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