‘यादों की रोशनी में’ परसाई के भाषणों, संस्मरणों, रेखाचित्रों और निबन्धों का संकलन है। वर्ष 1989 में पहली बार प्रकाशित इस पुस्तक में लेखक की जीवन-दृष्टि और सामाजिक सरोकारों का परिचय तो मिलता ही है, उस समय के बारे में भी हमें कई सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
पुस्तक के तीन खंड हैं जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकृति की रचनाओं को विभाजित किया गया है। पहले हिस्से में ‘मतवाला और उसकी भूमिका’ जैसा आलेख जहाँ बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध की साहित्यिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि से परिचित कराता है, वहीं ‘लेखकों का सचेत और सतर्क दायित्व’ शीर्षक उनका अभिभाषण प्रगतिशील लेखकों और संगठनों की सामाजिक भूमिका को रेखांकित करता है। दहेज की समस्या को लेकर लिखे गए दो व्यंग्यात्मक आलेख बताते हैं कि परसाई अपने लेखकीय दायित्व को लेकर कितने सजग थे।
इनके अलावा श्रीकांत वर्मा, ताज भोपाली और बाबा नागार्जुन पर उनके दिलचस्प संस्मरण भी इस पुस्तक का हिस्सा हैं। कुछ और रचनाओं के अलावा ग़ालिब को लेकर चुटीले अन्दाज में लिखा गया एक व्यंग्य भी इस संकलन में शामिल है जिसमें वे अपने प्रिय शायर को अपने ही ढंग से याद करते हैं।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 144p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20 X 13 X 1 |