22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश, होशंगाबाद के जमानी गाँव में जन्मे हरिशंकर परसाई का आरम्भिक जीवन कठिन संघर्ष का रहा। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया और फिर ‘डिप्लोमा इन टीचिंग’ का कोर्स भी।
उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’ (कहानी-संग्रह); ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ (उपन्यास); ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘तुलसीदास चन्दन घिसैं’, ‘हम इक उम्र से वाकिफ हैं’, ‘जाने-पहचाने लोग’, ‘कहत कबीर’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ (व्यंग्य निबन्ध-संग्रह); ‘पूछो परसाई से’ (साक्षात्कार)। ‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में उनकी सभी रचनाएँ संकलित हैं। लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में उनकी रचनाओं के अनुवाद हुए हैं।
उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, मध्य प्रदेश के ‘शिखर सम्मान’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।