Awara Bheed Ke Khatare

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Awara Bheed Ke Khatare
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‘आवार भीड़ के खतरे’ पुस्तक हिन्दी के अन्यतम व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के निधन के बाद उनके असंकलित और कुछेक अप्रकाशित व्यंग्य-निबन्धों का एकमात्र संकलन है। अपनी कलम से जीवन ही जीवन छलकानेवाले इस लेखक की मृत्यु खुद में एक महत्त्वहीन-सी घटना बन गई लगती है। शायद ही हिन्दी साहित्य की किसी अन्य हस्ती ने साहित्य और समाज में जड़ जमाने की कोशिश करती मरणोन्मुखता पर इतनी सतत, इतनी करारी चोट की हो !

इस संग्रह के व्यंग्य-निबन्धों के रचनाकाल का और उनकी विषय-वस्तु का भी दायरा काफी लम्बा-चौड़ा है। राजनीतिक विषयों पर केन्द्रित निबन्ध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि, उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है। वैसे राजनीतिक व्यंग्य इस संकलन में अपेक्षाकृत कम हैं–सामाजिक और साहित्यिक प्रश्नों पर केन्द्रीकरण ज्यादा है।

हँसने और संजीदा होने की परसाई की यह आखिरी महफिल उनकी बाकी सारी महफिलों की तरह ही आपके लिए यादगार रहेगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2004
Edition Year 2022, Ed. 5th
Pages 156p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Harishankar Parsai

Author: Harishankar Parsai

हरिशंकर परसाई

22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश, होशंगाबाद के जमानी गाँव में जन्मे हरिशंकर परसाई का आरम्भिक जीवन कठिन संघर्ष का रहा। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया और फिर ‘डिप्लोमा इन टीचिंग’ का कोर्स भी।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’ (कहानी-संग्रह); ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ (उपन्यास); ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘तुलसीदास चन्दन घिसैं’, ‘हम इक उम्र से वाकिफ हैं’, ‘जाने-पहचाने लोग’, ‘कहत कबीर’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ (व्यंग्य निबन्ध-संग्रह); ‘पूछो परसाई से’ (साक्षात्कार)। ‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में उनकी सभी रचनाएँ संकलित हैं। लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में उनकी रचनाओं के अनुवाद हुए हैं।

उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, मध्य प्रदेश के ‘शिखर सम्मान’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

10 अगस्त, 1995 को उनका निधन हुआ।

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