Bholaram Ka Jeev

Editor: Ved Prakash
As low as ₹225.00 Regular Price ₹250.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Bholaram Ka Jeev
- +

परसाई के पास एक ऐसी नैतिक दृष्टि है जो गहरे पर्यवेक्षण, अनुभव, अध्ययन और वैचारिकता से बनी है। यह उन्हें साहसी तथा आत्मविश्वासी बनाती है, जो काइयाँ से काँइयाँपन में होड़ लेनेवाली भी है। हम उनके लेखन में बार-बार पाएँगे कि वे कुतर्कियों को यूँ ही बख्श नहीं देते, उनसे प्रतिस्पर्धा करते हैं और खदेड़ते हुए दूर तक उनके पीछे जाते हैं।

परसाई श्रेष्ठ व्यंग्यकार इसलिए हैं कि वे केवल व्यंग्यकार ही नहीं हैं। हर स्थिति में व्यंग्य को नहीं बरतते; जब अनिवार्य होता है, तभी उसका उपयोग करते हैं। इसका सम्बन्ध परसाई के संवेदनशील-विचारधारायुक्त प्रगतिशील व्यक्तित्व से है जो उनके व्यंग्य नए रूपों में नैतिक और कलात्मक बनाता है। जब वे स्वार्थियों, शोषकों, भ्रष्टाचारियों, अहंकारियों, पाखंडियों, नैतिकता का मुखौटा लगाए व्यक्तियों का चित्रण करते हैं तो उनका रूप अलग होता है और सामान्य, शोषित, अभावग्रस्त, प्रतिकूल परिस्थितियों में पिस रहे लोगों का चित्रण करते समय वे एकदम बदल जाते हैं।

कुल मिलाकर परसाई की ये रचनाएँ उनके रचना-संसार का दूसरा पक्ष प्रस्तुत करती हैं। इन रचनाओं में मामूली, सामान्य घरों के युवक-युवतियाँ और साहित्य-राजनीति के क्षेत्र के कुछ व्यक्तित्व मानवीयता और आचरण संहिता का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यह अमानवीयता के नीचे दबी मानवीय सम्भावनाओं का सर्जनात्मक-आग्रहपूर्वक प्रकटीकरण है जो पहले पक्ष का पूरक है और परसाई की रचनाओं के सौन्दर्य-बोध के ढाँचे को समझने में सहायक है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Ved Prakash
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Bholaram Ka Jeev
Your Rating
Harishankar Parsai

Author: Harishankar Parsai

हरिशंकर परसाई

22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश, होशंगाबाद के जमानी गाँव में जन्मे हरिशंकर परसाई का आरम्भिक जीवन कठिन संघर्ष का रहा। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया और फिर ‘डिप्लोमा इन टीचिंग’ का कोर्स भी।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’ (कहानी-संग्रह); ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ (उपन्यास); ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘तुलसीदास चन्दन घिसैं’, ‘हम इक उम्र से वाकिफ हैं’, ‘जाने-पहचाने लोग’, ‘कहत कबीर’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ (व्यंग्य निबन्ध-संग्रह); ‘पूछो परसाई से’ (साक्षात्कार)। ‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में उनकी सभी रचनाएँ संकलित हैं। लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में उनकी रचनाओं के अनुवाद हुए हैं।

उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, मध्य प्रदेश के ‘शिखर सम्मान’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

10 अगस्त, 1995 को उनका निधन हुआ।

Read More
Books by this Author
Back to Top