साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फ़ॉर्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है।
कथाकार, शायर, गीतकार, पटकथाकार गुलज़ार ने लीक से हटकर शरत्चन्द्र की-सी संवेदनात्मक मार्मिकता, सहानुभूति और करुणा से ओत-प्रोत कई उम्दा फ़िल्मों का निर्देशन किया जिनमें ‘मेरे अपने’, ‘अचानक’, ‘परिचय’, ‘आँधी’, ‘मौसम’, ‘ख़ुशबू’, ‘मीरा’, ‘किनारा’, ‘नमकीन’, ‘लेकिन’, ‘लिबास’, और ‘माचिस’ जैसी फ़िल्में शामिल हैं।
‘लिबास’ एक ऐसी फ़िल्म का मंज़रनामा है जिस पर 1986 में फ़िल्म बन गई मगर आज तक रिलीज़ नहीं हुई। हालाँकि अफ़साने की सूरत में यह ‘चाबी’ और ‘सीमा’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।
‘लिबास’ सीमा और सुधीर नाम के थिएटर की दुनिया के एक युगल के बिखरे रिश्तों की कहानी है जिसके केन्द्र में सीमा का चंचल व्यक्तित्व है। वह बहुत दिनों तक एक ही स्थिति में नहीं रह सकती। यहाँ तक कि बोरियत दूर करने के लिए वह अपने पति को छोड़कर दूसरी शादी कर लेती है लेकिन पुनः उसे बोरियत महसूस होने लगती है। मगर शादी लिबास तो नहीं होती कि फट जाए, मैला हो जाए तो बदल लिया जाए।
शब्दों के धनी और संवेदनशील शायर गुलज़ार ने इस मंज़रनामे में थिएटर की दुनिया की भी झलक दिखाई है। निश्चय ही पाठकों को यह कृति एक औपन्यासिक रचना का आस्वाद प्रदान करेगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2006 |
Edition Year | 2023, Ed. 3rd |
Pages | 104p |
Translator | Kamal Naseem |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |