साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फ़ॉर्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है।
‘माचिस’ का मंज़रनामा पंजाब के उन हालात का चित्रण करता है जब वहाँ आतंकवाद का साया किसी अभिशाप की तरह मँडरा रहा था। ऐसे में सच और झूठ के बीच फ़र्क़ करना बहुत मुश्किल था। युवा पीढ़ी दिग्भ्रमित थी और व्यवस्था उसे समझने में चूक कर रही थी। पंजाब की हरियाली उदास थी और वहाँ की उमंगें घायल। विडम्बनाओं के भँवर में उलझी ज़िन्दगियों की मर्मस्पर्शी दास्तान प्रस्तुत करता यह मंज़रनामा बहुत ख़ास है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2012 |
Edition Year | 2023, Ed. 2nd |
Pages | 196p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |