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Phool Taaron Ke Daakiye Hain

Author: Sanjeev Kaushal
Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Phool Taaron Ke Daakiye Hain

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हिन्दी में प्याज, सेब, समोसा और जलेबी पर कविताएँ लिखी गई हैं, पर संजीव कौशल ने कविता में मिर्च को अमर कर दिया। वह रंगों का विस्फोट, दर्द का लाल डोरा है, जो पिसकर भी अपना सत्त्व नहीं खोती। एक जादुई यथार्थ से मिर्च स्त्री हो जाती है, क्योंकि दोनों की आत्मा में कोई चोट है। प्रकृति यहाँ मानव सापेक्ष है। दराँती से कटी चाँद की एक खाप है बाईपास और तारा प्रेमिका की लौंग का मोती, नदियाँ पृथ्वी की बाँसुरियाँ हैं, शीतल ज्वालामुखी है गुलमोहर, धुंध की चटाई पर सूरज अलसाया पड़ा है। कवि पेड़ की फुनगियों को गुलेल बनाकर उछालता है चाँद। यहाँ गिलहरी, बिल्ली, मुर्ग़ा, फाख्ता के साथ धर्मों को भ्रष्ट करते कबूतर हैं। मछलियों-सी तड़‌प रही है बच्चों की हँसी। प्रकृति ही प्रकृति है चारों ओर। सूँघना भी रचनात्मक है, कविता यहाँ फूलों की तरह सूँघी जाती हैं। बच्चा फूलों का गुच्छा है जिसे माँ सूँघ रही है। कवि नीम के फूलों-सा महकता है : 'देर तक मह‌कती है तुम्हारी मुस्कान मेरी मुस्कान में।' 'मेट्रो में प्रेम' अद्‌भुत कविता है, जहाँ बदन ख़ुशबू और लोग पेड़ हो जाते हैं। यहाँ पूरी गृहस्थी है। परिवार, माँ और लड़कियाँ और स्त्री का पूरा जीवन है। घर छीन लेता है स्त्री की छुट्टियाँ। वह शाश्वत मज़दूर है जीवन-भर खटती है, मगर पेट बूढ़ा नहीं होता। बर्तनों-सी खनक रही हैं सहेलियाँ। ख़राब हुए नल से टपकती बूँदों को चिड़िया पीती है, नल ठीक होता तो चिड़िया प्यासी रहती। निष्कर्ष यह है कि चीज़ों का ख़राब होना उनका ज़िन्दा होना है। आँसू दुखों के शब्द हैं और समय अचानक हो गया बूढ़ा। मानवीय विडम्बना है कि जो सब्ज़ियाँ उगाते हैं सब्ज़ियों की तरह ताज़ा नहीं दिखते। छोटी कविताएँ दोहों की तरह मारक हैं। मानवीय गरिमा और कलात्मक ताज़गी से भरपूर है यह संकलन।

—इब्बार रब्बी 

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Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 168p
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Sanjeev Kaushal

Author: Sanjeev Kaushal

संजीव कौशल

संजीव कौशल का जन्म 23 नवम्बर, 1977 को उत्तर प्रदेश, अलीगढ़ के अकराबाद गाँव में हुआ। ‘उँगलियों में परछाइयाँ’ तथा ‘घर ख़्वाबों से बनता है’ शीर्षक से दो कविता-संग्रह प्रकाशित और चर्चित। महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, लेख तथा समीक्षाएँ प्रकाशित। विश्व-साहित्य के महत्त्वपूर्ण कवियों की कविताओं के अनुवाद ‘उम्मीद’ में प्रकाशित। हिन्दी के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद। जर्मन कविता के पूरे विकास क्रम को दिखाता कविताओं के अनुवाद का संग्रह ‘ख़्वाहिश है नामुमकिन की’ और ऑस्ट्रियाई कविताओं के अनुवाद का संग्रह ‘नवम्बर की धूप’ शीर्षक से प्रकाशित। ‘मलखान सिंह सिसोदिया पुरस्कार’ (2017) से सम्मानित।

सम्प्रति : प्रोफ़ेसर, अंग्रेज़ी विभाग, इन्दिरा गांधी शारीरिक शिक्षा एवं खेल विज्ञान संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय।

ई-मेल : sanjeevkaushal23@gmail.com 

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