हिन्दी में प्याज, सेब, समोसा और जलेबी पर कविताएँ लिखी गई हैं, पर संजीव कौशल ने कविता में मिर्च को अमर कर दिया। वह रंगों का विस्फोट, दर्द का लाल डोरा है, जो पिसकर भी अपना सत्त्व नहीं खोती। एक जादुई यथार्थ से मिर्च स्त्री हो जाती है, क्योंकि दोनों की आत्मा में कोई चोट है। प्रकृति यहाँ मानव सापेक्ष है। दराँती से कटी चाँद की एक खाप है बाईपास और तारा प्रेमिका की लौंग का मोती, नदियाँ पृथ्वी की बाँसुरियाँ हैं, शीतल ज्वालामुखी है गुलमोहर, धुंध की चटाई पर सूरज अलसाया पड़ा है। कवि पेड़ की फुनगियों को गुलेल बनाकर उछालता है चाँद। यहाँ गिलहरी, बिल्ली, मुर्ग़ा, फाख्ता के साथ धर्मों को भ्रष्ट करते कबूतर हैं। मछलियों-सी तड़प रही है बच्चों की हँसी। प्रकृति ही प्रकृति है चारों ओर। सूँघना भी रचनात्मक है, कविता यहाँ फूलों की तरह सूँघी जाती हैं। बच्चा फूलों का गुच्छा है जिसे माँ सूँघ रही है। कवि नीम के फूलों-सा महकता है : 'देर तक महकती है तुम्हारी मुस्कान मेरी मुस्कान में।' 'मेट्रो में प्रेम' अद्भुत कविता है, जहाँ बदन ख़ुशबू और लोग पेड़ हो जाते हैं। यहाँ पूरी गृहस्थी है। परिवार, माँ और लड़कियाँ और स्त्री का पूरा जीवन है। घर छीन लेता है स्त्री की छुट्टियाँ। वह शाश्वत मज़दूर है जीवन-भर खटती है, मगर पेट बूढ़ा नहीं होता। बर्तनों-सी खनक रही हैं सहेलियाँ। ख़राब हुए नल से टपकती बूँदों को चिड़िया पीती है, नल ठीक होता तो चिड़िया प्यासी रहती। निष्कर्ष यह है कि चीज़ों का ख़राब होना उनका ज़िन्दा होना है। आँसू दुखों के शब्द हैं और समय अचानक हो गया बूढ़ा। मानवीय विडम्बना है कि जो सब्ज़ियाँ उगाते हैं सब्ज़ियों की तरह ताज़ा नहीं दिखते। छोटी कविताएँ दोहों की तरह मारक हैं। मानवीय गरिमा और कलात्मक ताज़गी से भरपूर है यह संकलन।
—इब्बार रब्बी
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2025 |
Edition Year | 2025, Ed. 1st |
Pages | 168p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |