साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फ़ॉर्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है।
कथाकार, शायर, गीतकार, पटकथाकार गुलज़ार ने लीक से हटकर शरत्चन्द्र की-सी संवेदनात्मक मार्मिकता, सहानुभूति और करुणा से ओत-प्रोत कई उम्दा फ़िल्मों का निर्देशन किया जिनमें ‘मेरे अपने’, ‘अचानक’, ‘परिचय’, ‘आँधी’, ‘मौसम’, ‘ख़ुशबू’, ‘मीरा’, ‘किनारा’, ‘नमकीन’, ‘लेकिन’, ‘लिबास’, और ‘माचिस’ जैसी फ़िल्में शामिल हैं।
‘हू तू तू’ इसी नाम से मशहूर एक फ़िल्म का मंज़रनामा है जिसमें गुलज़ार ने संजीदगी से इस बात को रेखांकित किया है कि आज़ादी के पचास सालों में देश की रहनुमाई करनेवाले नेताओं पर कैसे ताक़त का नशा चढ़ा है और नई पीढ़ी किस प्रकार प्रभुत्वशाली वर्ग के भ्रष्टाचार और पक्षपात का शिकार हो रही है। इस नई जेनरेशन में जो बालिग हैं वो ‘भाऊ’ की तरह लड़ रहे हैं तथा जो नाबालिग हैं वो आदि और पन्ना की तरह जानें गँवा रहे हैं।
लेकिन यह कृति पूरी तरह फ़िल्मी नहीं है। फ़िल्म में जो अंश हटा दिए गए थे, वे इस कृति में महफ़ूज़ हैं।
निश्चय ही यह कृति पाठकों को एक औपन्यासिक रचना का आस्वाद प्रदान करेगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2006 |
Edition Year | 2006, Ed. 1st |
Pages | 119p |
Translator | Kamal Naseem |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |