साहित्य में ‘मंज़रनामा’ एक मुकम्मिल फ़ार्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयाँ अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इंटरप्रेटेशन हो जाता है।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ार्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है।
यह ज़िन्दगी की किताब है जिसे बाबला स्कूल से बाहर शहर में, अपने दोस्त पप्पू के साथ, घर में अपने जीजा और दीदी के रिश्ते की धूप-छाँव में और फिर घर से भागकर माँ तक पहुँचने के अपने दिलचस्प सफ़र में पढ़ता है। और फिर वापस एक नए जज़्बे के साथ स्कूली किताबों के पास लौटता है। फूल को चड्डी पहनानेवाले गुलज़ार की फ़िल्म ‘किताब’ का यह मंज़रनामा फिर साबित करता है कि बच्चों के मनोविज्ञान को समझने में जैसी महारत उन्हें हासिल है, वह दुर्लभ है—फ़िल्मों में भी और साहित्य में भी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2016 |
Edition Year | 2016, Ed. 1st |
Pages | 108p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1 |